डीएनए हिंदी: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का आज  राष्ट्रीय अधिवेशन होगा. इस दौरान ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन भी हो जाएगा. यह माना जा रहा है कि एक बार फिर आसानी से पूर्व सीएम अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ही पार्टी के अध्यक्ष बन जाएंगे लेकिन आज हम अखिलेश की नहीं उनके पिता और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की है जो कि लोहियावादी राजनीति के पुरोधा माने जाते हैं. 

मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी विचारधारा का बड़ा नाम माना जाता था. राजनीति से पहले वे एक अध्यापक थे. उनके राजनीतिक गुरु और विधायक गुरु नत्थू सिंह ने उन्हें  जसवंत नगर से साल 1967 में चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था.  उन्‍होंने अपनी सीट से मुलायम को मैदान में उतारने का फैसला लिया. इस मामले में लोह‍िया से पैरवी की गी और उनके नाम पर मुहर लग गई.

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पहली बार हराया दिग्गज को चुनाव

मुलायम सोशल‍िस्‍ट पार्टी के उम्मीदवार बने, उन्होंने पहली बार चुनाव में हेमवती नंदन बहुगुणा को हराया था. वे उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के विधायक बने थे. राममनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) के निधन के बाद मुलायम जय प्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) के साथ आपातकाल में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के विरोध में कूद पड़े थे और उनका राजनीतिक करियर यहीं से एक नई उड़ान भरने लगा था. 

केन्द्र और उत्‍तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी और वह राज्य सरकार में मंत्री बनाये गए. इसके बाद में चौधरी चरण सिंह की पार्टी लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष बने. विधायक का चुनाव लड़े और हार गए. वे 1967, 74, 77, 85, 89 में वह विधानसभा के सदस्य रहे. 1982-85 में विधानपरिषद के सदस्य भी रहे. 8 बार राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे. 1992 में समजावादी पार्टी का गठन किया. वे तीसरे मोर्चे की सरकार में देश के रक्षामंत्री भी बन चुके हैं.

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पहली बार बने थे मुख्यमंत्री 

मुलायम सिंह यादव भारतीय जनता पार्टी (BJP) के समर्थन से पांच दिसंबर 1989 में पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने थे. इसके बाद श्रीराम जन्मभूमि मुद्दे के चलते उनके भाजपा से संबंध  खराब हो गए थे. मुलायम ने भाजपा की इस यात्रा को सांप्रदायिक बताया था और 1990 में वीपी सरकार के गिरते ही मुलायम ने जनता दल की सदस्यता ले ली और कांग्रेस के समर्थन से वे सीएम बने रहे. वर्ष 1991 में मुलायम सरकार कांग्रेस से समर्थन वापस लेते ही उनकी सरकार गिर गई.

बनाई समाजवादी पार्टी

1991 में सरकार गिरने के बाद मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी की नींव रख दी थी. उन्होंने 1993 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया था. मतभेदों के कारण इस गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका था लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें जनता दल और कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था और वे दोबारा सीएम बन गए.

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बेटे अखिलेश को बनाया सीएम

इसके बाद वे 2002 में भाजपा से गठबंधन कर बसपा से सरकार बनवाई थी. वहीं भाजपा को यह गठबंधन मंजूर नहीं था तो 2003 में भाजपा इस गठबंधन से अलग हो गई. तब बसपा के बागी और सभी निर्दलीय विधायकों के समर्थन से मुलायम सिंह यादव तीसरी बार मुख्यमंत्री बने थे और इसके बाद साल 2012 में सपा ने जब पूर्ण बहुमत हासिल किया था तो  उन्होंने अपने बेटे को मुख्यमंत्री बना दिया था. 

अखिलेश ने ही दिया धोखा

साल 2017 में बेटे अखिलेश की मनमानियों के चलते भाई शिवपाल सिंह यादव और  अखिलेश में तनाव हो गया था. मुलायम सिंह यादव  इस मुद्दे पर शिवपाल के साथ दिखे तो पार्टी में अपनी ताकत दिखाकर पार्टी अध्यक्ष  की गद्दी हासिल कर ली थी. मुलायम की दूसरी पत्नी साधना का पिछले महीने ही निधन हुआ था. यह माना जाता है कि पार्टी में अखिलेश से शिवपाल के टकराव में उनकी अहम भूमिका थी. 

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सक्रिय राजनीति से दूर हैं मुलायम

मुलायम सिंह यादव ने एक विधानसभा से लेकर राष्ट्रीय राजनीति तक में अपनी अहम जगह बनाई लेकिन उन्हें अपने बेटे से ही अहम चुनौतियां मिली. फिलहाल वे पार्टी में दरकिनार किए जा रहे हैं और पार्टी अखिलेश के हाथों में है. मुलायम के सक्रिय राजनीति से दूर हटने के बाद साल 2014, 2017,  2019 और 2022 के चुनावों में पार्टी की हालत बुरी होती चली गई.

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Mulayam Singh Yadav Wrestler became CM first time support BJP son setback political arena
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BJP के समर्थन से पहली बार CM बना यह पहलवान, बुढ़ापे में बेटे ने किया चित्त
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BJP के समर्थन से पहली बार CM बना यह पहलवान, बुढ़ापे में बेटे ने किया चित्त