डीएनए हिंदी: मोदी सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को बताया था कि केंद्र के अलावा किसी भी राज्य को जनगणना या इस तरह की कोई प्रक्रिया अपनाने का अधिकार नहीं है. शीर्ष अदालत में विचार के लिए संवैधानिक और कानूनी स्थिति रखते हुए बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में केंद्र ने यह हलफनामा दाखिल किया था. लेकिन सरकार ने अब इस हलफनामे से यूटर्न लिया है. केंद्र ने हलफनामे में संसोधन करते हुए पैरा-5 को हटा दिया है. इसके साथ ही नया शपथपत्र दाखिल किया है.
केंद्र सरकार के हलफनामे के पैरा-5 में दावा किया गया था कि केंद्र सरकार ही जनगणना या इस तरह की कोई भी कार्रवाई करने के लिए अधिकृत है. केंद्र ने कहा था कि जनगणना एक वैधानिक प्रक्रिया है, जो जनगणना अधिनियम 1948 के तहत शासित है. इसका अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है. मोदी सरकार की तरफ से दावा किया गया कि जनगणना का विषय 7वीं अनुसूची में संघ सूची प्रविष्टि 69 में शामिल है.
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नए हलफनामे से क्या हटाया?
केंद्र ने अब नए हलफनामे में पैरा-5 को हटा लिया है. जिसमें लिखा था 'जनगणना जैसी कोई अन्य प्रक्रिया' का भी राज्य को अधिकार नहीं है. हालांकि अपने नए शपथपत्र में यह अभी भी कहा गया कि अधिनियम 1948 के तहत सिर्फ केंद्र सरकार को ही समग्र जनगणना कराने का अधिकार है.
बता दें कि जनगणना का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची में प्रविष्टि 69 के तहत संघ सूची में शामिल है और जनगणना अधिनियम, 1948 केवल केंद्र सरकार को जनगणना करने का अधिकार देता है. इसने यह भी स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार भारत के संविधान और अन्य लागू कानूनों के प्रावधानों के अनुसार एससी/एसटी/एसईबीसी और ओबीसी के उत्थान के लिए सभी सकारात्मक कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है.
सुप्रीम कोर्ट ने 21 अगस्त को केंद्र सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था, जब केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि वह मामले की संवैधानिक और कानूनी स्थिति को रिकॉर्ड पर रखना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट में बड़ी संख्या में विशेष अनुमति याचिकाएं बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने वाले पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देती हैं. याचिकाएं सोमवार को सूचीबद्ध नहीं हो सकीं, लेकिन 28 अगस्त को सुनवाई होनी थी.
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हाईकोर्ट ने दी थी हरी झंडी
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सर्वेक्षण प्रक्रिया गोपनीयता कानून का उल्लंघन करती है और केवल केंद्र सरकार के पास भारत में जनगणना करने का अधिकार है, उन्होंने कहा कि बिहार सरकार के पास जाति आधारित सर्वेक्षण कराने और अधिसूचित करने का कोई अधिकार नहीं है. वहीं नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने कहा है कि बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण पूरा हो गया है और परिणाम जल्द ही सार्वजनिक हो जाएगा. 1 अगस्त को पारित अपने आदेश में पटना उच्च न्यायालय ने कई याचिकाओं को खारिज करते हुए सर्वेक्षण कराने के राज्य सरकार के फैसले को हरी झंडी दे दी थी. बिहार सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के बाद उसी दिन प्रक्रिया फिर से शुरू की और शेष सर्वेक्षण प्रक्रिया को तीन दिनों के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया.
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जनगणना के अधिकार पर केंद्र का यू-टर्न, हलफनामे में बदला ये पैरा, SC में सौंपा नया शपथपत्र