Manmohan Singh News: डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर 10 वर्षों तक सेवा दी. उनका हाल ही में दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया है. 92 वर्षीय मनमोहन सिंह लंबे समय से गंभीर उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे. अर्थशास्त्र में अपनी पढ़ाई पूरी कर सार्वजनिक जीवन में कदम रखने वाले मनमोहन सिंह के जीवन में कई ऐसे मौके आए जब उनके पद और प्रतिष्ठा को सार्वजनिक रूप से चुनौती दी गई. फिर भी, उन्होंने हमेशा देशहित में अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता दी और अपमान के बावजूद अपने काम जारी रखे.
मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था कि प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद वे इतिहास से अपने प्रति उदार होने की उम्मीद करते हैं. उनके जीवन के कुछ प्रमुख क्षणों में अपमान सहने के बावजूद उन्होंने देश की सेवा जारी रखी.
1. राजीव गांधी का 'जोकर आयोग' अपमान
साल 1986 में जब मनमोहन सिंह योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे. उन्होंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी को एक विकास योजना प्रस्तुत की. इसके बाद, राजीव गांधी ने योजना आयोग को 'जोकर आयोग' कहकर आलोचना कर दी थी. मनमोहन सिंह इस टिप्पणी से नाराज हो गए थे और इस्तीफा देने का मन बना लिया था, लेकिन अंत में उन्होंने दोस्तों की सलाह पर पद नहीं छोड़ा.
2. कांग्रेस सांसदों का विरोध
1991 में, प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया गया. उनका बजट जो आर्थिक उदारीकरण का प्रतीक था, कांग्रेस के सांसदों द्वारा ही विरोध का सामना करने लगा. इस विरोध के बावजूद, मनमोहन सिंह ने अपना काम जारी रखा और देश की आर्थिक स्थिति सुधारने की दिशा में कदम उठाए.
3. पीएम की कुर्सी मिली, लेकिन शक्ति नहीं
2004 में सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया, लेकिन उन्हें पूरी शक्ति नहीं मिली थी. कांग्रेस हाईकमान के दबाव के कारण मनमोहन सिंह को कई मंत्रिमंडल निर्णयों में सीमित अधिकारों का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद, उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों को निभाया था.
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4. राहुल गांधी का अध्यादेश फाड़ना
2013 में, जब सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति में अपराधियों की एंट्री रोकने के लिए एक फैसला सुनाया. तो मनमोहन सिंह की सरकार ने इस फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश लाने का निर्णय लिया. जब राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से इस अध्यादेश को फाड़ने की बात कही, तो मनमोहन सिंह को गहरी चोट पहुंची. बावजूद इसके, उन्होंने इस्तीफा देने का विचार छोड़ दिया और देशहित में चुपचाप इस स्थिति को स्वीकार किया.
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Manmohan Singh के वो चार पल, जब अपमान सहकर भी देशहित में अपना कर्तव्य निभाया