History Repeating Politics: वर्तमान समय में जाति जनगणना, कश्मीर में अशांति, हिंदी को लेकर उत्तर-दक्षिण का विवाद आज से नहीं बल्कि इतिहास में भी इन सब मुद्दों पर चर्चा हो चुकी है. जैसा पैटर्न इन मुद्दों पर आज दिखता है वैसा ही तब था. इसी कड़ी में बीते गुरुवार आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने एनडीए सरकार द्वारा जाति जनगणना कराए जाने की टाइमिंग पर सवाल उठाया. उन्होंने दावा किया कि इस समय इस पर बात इसलिए की जा रही है ताकि पहलगाम आतंकी हमले से लोगों का ध्यान हट सके.
राज्यसभा सांसद ने कहा, 'पूरा देश यह देखने के लिए इंतजार कर रहा था कि सरकार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को वापस लेने और आतंकवादियों को खत्म करने के लिए क्या कदम उठाएगी. इसके बजाय, 26 निहत्थे और निर्दोष पर्यटकों को मार दिया गया. आतंकवादियों ने हमारी ही धरती पर हमें चुनौती दी और सरकार जाति जनगणना के मुद्दे को उठाकर लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है.' सिंह ने आगे कहा, 'पहलगाम में 2,000 से अधिक लोग मौजूद थे, और फिर भी आतंकवादी आए और अपनी मर्जी से हत्याएं कीं. यह मोदी सरकार की सीधी विफलता है. सरकार को जवाब देना चाहिए और जिम्मेदारी लेनी चाहिए. इसके बजाय, प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक छोड़कर बिहार में चुनाव प्रचार करना चुना.'
दिलचस्प बात यह है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की घोषणा की थी, तब कांग्रेस के नेतृत्व वाले तत्कालीन विपक्ष ने कश्मीर की स्थिति का हवाला देते हुए उनकी टाइमिंग पर भी सवाल उठाए थे.
राजीव गांधी का 1990 का भाषण
1990 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की घोषणा की, जिसमें केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की गई थी, तो उन्हें विपक्ष की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा, जिसमें राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस भी शामिल थी.
6 सितंबर, 1990 को लोकसभा में राजीव गांधी ने कश्मीर टेंशन की पृष्ठभूमि में मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के सरकार के कदम के समय पर सवाल उठाया.
राजीव गांधी ने कहा था, 'महोदय, जब कोई प्रधानमंत्री द्वारा की गई घोषणा के समय को देखता है, तो एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक सामने आता है. यह एक ऐसा समय है जब राष्ट्र कई गंभीर, शायद गंभीर समस्याओं से गुजर रहा है. कश्मीर में स्थिति आजादी के बाद से सबसे खराब है. पंजाब में स्थिति शायद पहले से भी बदतर है... वास्तव में, अगर मुझे सही से याद है, तो प्रधानमंत्री ने इसी सदन में बोलते हुए राष्ट्र को युद्ध के लिए तैयार रहने या कुछ ऐसे शब्दों में कहा था- युद्ध के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार रहने के लिए.'
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उत्तर-दक्षिण का विवाद
यह वह समय था जब उग्रवाद अपने चरम पर था और 1990 के शुरुआती महीनों में कई कश्मीरी हिंदुओं की हत्या की गई थी, जिसके कारण घाटी से उनका पलायन शुरू हो गया था. वी.पी. सिंह को कश्मीर की स्थिति और कश्मीरी पंडितों के जबरन पलायन को लेकर बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ा था. राजीव गांधी ने उस समय उत्तर-दक्षिण विभाजन का भी हवाला दिया था. उन्होंने कहा था, 'इसके अलावा, भाषा के सवाल पर हमारे पास पहले से ही उत्तर-दक्षिण तनाव है क्योंकि केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ मुख्यमंत्रियों ने भाषा का मुद्दा उठाया है और उत्तर-दक्षिण विभाजन का कारण बना है.' 2025 तक, राष्ट्रीय शिक्षा नीति और परिसीमन अभ्यास के माध्यम से कथित हिंदी थोपने को लेकर केंद्र सरकार और दक्षिणी राज्यों के बीच वाकयुद्ध जारी है.
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मंडल पॉलिटिक्स, कश्मीर में अशांति, उत्तर-दक्षिण का विवाद- इतिहास ही नहीं, सियासत भी खुद को रिपीट करती है, भरोसा न हो तो ये देखिए