लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election) पहले फेज (First Phase) की वोटिंग (Voting) कल संपन्न हो चुकी है. अब दूसरे फेज को लेकर चुनाव प्रचार अपने चरम पर है. पहले फेज में देशभर में औसतन करीब 60 प्रतिशत वोटिंग हुई है. इस वोटिंग में मौसम में आज हम चुनावी स्याही (Election Ink) के बारे में जानेंगे. साथ ही इसके निर्माण से लेकर इसके इस्तेमाल तक के सारे ही पहलुओं पर चर्चा की जाएगी. 

क्या है ये स्याही?
दरअसल, मतदान करने के बाद मतदानकर्मी आपकी उंगली पर बैगनी रंग की स्याही लगाते हैं. ये इसलिए लगाया जाता है कि इससे मतदाता ने मतदान किया है ये चिन्हित हो सके. ये स्याही हल्दी उतरती नहीं है. इसके निशान छूटने में कई-कई दिन लग जाते हैं. असल में ये स्याही कुछ और नहीं बल्कि सिल्वर नाइट्रेट है. ये इंसान के स्कीन और नाखून में लगते ही चिपक जाता है, साथ ही इसका स्वरूप चमकीला हो जाता है. यही वजह है कि इसका निशान कई दिनों तक हमारी उंगली में चिपका रहता है. ये तभी हटता है जब स्कीन पर नई कोशिकाएं बनती हैं, साथ ही जब नए नाखून बन जाते हैं.


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इसका इतिहास और निर्माण
वो साल 1962 का लोकसभा चुनाव था, जब मतदान के दौरान उंगली में स्याही लगाना प्रारंभ हुआ था. ये फैसला उस वक्त के चुनाव आयोग की तरफ से लिया गया था. इस फैसले का मूल उद्देश्य चुनाव में धांधली को रोकना था. इसके पश्चात सभी लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय चुनावों में इसका आधिकारिक उपयोग किया जाने लगा. 1962 में चुनाव आयोग ने स्याही वाले निर्णय के बाद कानून मंत्रालय, नेशनल फिजिकल लैबोरेट्री और नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के साथ मिलकर मैसूर पेंट्स के साथ एक मसौदे पर साइन किया. इसके तहत चुनावी सियाही बनाने का अधिकार मैसूर पेंट्स कंपनी को दिया गया. हमारी उंगलियों पर लगने वाली स्याही दरअसल इसी कंपनी में तैयार होकर आती है. चुनाव स्याही में सिल्वर नाइट्रेट के साथ दूसरे पदार्थों का भी उपयोग किया जाता है. इसे बनाने की विधि को शेयर नहीं किया जाता है. ऐसा करना प्रतिबंधित है. 

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क्यों नहीं उतरती है चुनावी स्याही? जानें कैसे होता है इसका निर्माण
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