डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को कहा कि चुनाव लड़ना संविधान की तरफ से दिए गए मौलिक अधिकारों का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह कानून की तरफ से मिला अधिकार है. शीर्ष अदालत ने दो पुराने मामलों में अपने ही फैसलों का जिक्र करते हुए चुनाव लड़ने को मौलिक अधिकार घोषित करने की मांग खारिज कर दी. साथ ही याचिकाकर्ता पर अदालत का समय खराब करने के लिए एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

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क्या था पूरा मामला

विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh) नाम के याचिकाकर्ता को प्रस्तावक नहीं होने के कारण राज्य सभा (Rajya Sabha) चुनाव के लिए नामांकन करने की अनुमति नहीं मिली थी. इसके चलते उन्होंने भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission Of India) की अधिसूचना के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi HighCourt) में याचिका दाखिल की थी, जिसमें प्रस्तावक होने की अनिवार्यता दी गई थी. 

दिल्ली हाई कोर्ट के सामने सिंह ने यह तर्क दिया था कि चुनाव लड़ने से रोकना उनकी बोलने व अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार के साथ ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है. हालांकि हाई कोर्ट ने उनके तर्क को खारिज कर दिया था. इसके बाद सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

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शीर्ष अदालत ने कहा- चुनाव लड़ना सामान्य कानून अधिकार भी नहीं

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हेमंत गुप्ता (Justice Hemant Gupta) और जस्टिस सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) की बेंच ने इस मुद्दे पर सुनवाई की. बेंच ने जावेद बनाम हरियाणा राज्य, (2003) 8 SCC 369 और राजबाला बनाम हरियाणा राज्य (2016) 2 SCC 445 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के आधार पर सिंह की याचिका को परखा. बेंच ने इन फैसलों का जिक्र करते हुए कहा, चुनाव लड़ने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही सामान्य कानूनी अधिकार. यह एक कानून की तरफ से मिला अधिकार है. इसे किसी भी तरह मौलिक अधिकार से नहीं जोड़ा जा सकता है.

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संसद में बना कानून तय करेगा चुनाव लड़ने का हक

बेंच ने राजबाला मामले का जिक्र किया और कहा, इसके फैसले में माना जा चुका है कि राज्य सभा या लोकसभा में किसी एक सीट के लिए चुनाव लड़ने के अधिकार से संवैधानिक प्रतिबंध जुड़े हैं. इसे केवल संसद में बना कानून ही प्रतिबंधित कर सकता है. 

बेंच ने सिंह की याचिका खारिज करते हुए कहा कि हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका भी पूरी तरह से गलत थी. बेंच ने कहा, सिंह को संसद में बने कानून के अनुसार राज्यसभा का चुनाव लड़ने का कोई अधिकार नहीं है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के साथ चुनाव आचरण नियम, 1961 में भी नामांकन फॉर्म भरते समय उम्मीदवार के नाम को प्रस्तावित करने की व्यवस्था है. कोई व्यक्ति इस शर्त को अपने मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं बता सकता. 

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चुनाव लड़ने का हक संविधान से मिला मौलिक अधिकार नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा
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Election लड़ने का हक संविधान से मिला मौलिक अधिकार नहीं, जानिए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा