डीएनए हिन्दी: कश्मीर में कैसे नौजवानों की जिंदगी बर्बाद की जा रही है इस पर हमारे सहयोगी चैनल जी मीडिया ने एक बेहतरीन स्टोरी की है. पढ़े, अमित भारद्वाज की विस्तृत रिपोर्ट...
कश्मीर के बारे में अक्सर कहा जाता है कि अगर स्वर्ग कहीं है तो यहीं है. कोई इसे धरती का स्वर्ग कहता है तो कोई इसे हिंदुस्तान का ताज. किसी को मीलों बिछी हुई सफेद बर्फ की चादर पसंद है तो कोई डल झील की नीलिमा में डूब जाना चाहता है. यह उस कश्मीर के बारे में हम आपको बता रहे हैं, जो न जाने कितने लोगों ने अपने ख्वाबों में बसाया हुआ है. लेकिन, इस गुल, गुलशन, गुलफाम पर कुछ नापाक लोगों की गंदी नजर पड़ गई. लुभाने वाले कश्मीर की खूबसूरती पर एक भद्दा दाग लग गया है. यहां देवदार के पेड़ों की सरसराहट में उन मां की चीखें हैं, जिनके बच्चे रातों-रात आतंक के रास्ते पर चल निकले और फिर लौटकर नहीं आए. झेलम के पानी में जाने कितनी ही खिलखिलाहटों का खून मिला हुआ है. कश्मीर की जमीन के हर रकबे में सेब, केसर,अखरोट के साथ जुल्म और खौफ की कहानियां ज्यादा उगती हैं.
खौफनाक हकीकत की एक सच्ची कहानी आज हम आपको बताएंगे. जिनके घर में राजनीतिक आतंकी घुसे और बहला फुसला कर अपने साथ ले गए. उन्हीं में एक जो बैरिस्टर बनने का सपना देखता था वह इनके चंगुल में फंसकर कश्मीर का पहला पत्थरबाज बनाया गया. इस युवक को पहला पत्थरबाज हम इसलिए कह रहे हैं कि देश में जो पत्थरबाजी (Stone Pelting) की पहली FIR दर्ज हुई उसमें यही युवक पकड़ा गया. इस पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) लगा और कई सालों तक परिवार वालों ने चेहरा तक नहीं देखा. इस शख्स का नाम है जिया उस इस्लाम.
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जिया कहते हैं लोग भले ही कश्मीर को जन्नत कहें, लेकिन हमारे लिए यह जहन्नुम है. जन्नत वह होती है, जहां सुकून हो, मोहब्बत हो. यहां तो घर पर दस्तक होते ही लगता है कि आतंकी तो नहीं लौट आए. जिया ने जी मीडिया नेटवर्क से एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए बताया कि वह मात्र 16 साल के थे जब उसने अपने हाथ में पत्थर उठाया. जी से बात करते हुए जिया बोले कि जब 2008 में मुझ पर PSA लगा था मैं पहला युवक था जिसकी उम्र 16 साल की थी. उस समय गुलाम नबी आजाद हमारे मुख्यमंत्री थे और महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार थी. लेकिन, महबूबा ने उस समय यह कहा कि गुलाम नबी ने कश्मीरियों की जमीन बेच दी हैं तो यह बात फैल गई. फिर सभी लोग हुकूमत के खिलाफ काले झंडे लेकर निकल गए और उसमें मैं भी शामिल हो गया. हालात बेहद खराब हो गए. पत्थरबाजी शुरू हो गई.
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जिया आगे कहते हैं, मैं उन सब में पहला शख्स हूं जिस पर स्टोन पेल्टिंग मामले में पहली बार PSA लगा. यहां प्रोग्राम होने लगे कि मुजफ्फराबाद चलो, ईदगाह चलो, श्रीनगर चलो. ऐसे सभी कार्यक्रमों में मैं जाने लगा. हर जगह मैंने पत्थरबाजी की. बाद में मुझे गिरफ्तार किया गया. इसके बाद 25 अगस्त 2008 को मुझे जेल भेजा गया. उस वक्त मैं छोटा था. मुझे लगता था कि हुर्रियत और मेरा माइंड सेट भी ऐसा ही था जैसा कि हुर्रियत व अन्य देश विरोधी लोगों ने बनाया था हम सब को डर दिखाया गया था कि हमारी सभी ने बेच दी गई हैं और हमारे हाथ कुछ नहीं बचेगा. हमारे सामने यह तस्वीर रखी जाती थी कि भारत हमारा दुश्मन है यही तस्वीर दिखा कर हमें पत्थरबाज बनाया जाता था इसमें हुर्रियत के नेता और लोकल पॉलीटिशियन शामिल थे. सब अपने पॉलिटिकल फायदे के लिए ही कर रहे थे.
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आगे जिया बताते हैं, अफवाह फैलाकर ही बच्चों के दिमाग से खेला जाता है और जब मैं पत्थरबाज बना तब भी यही नैरेटिव बनाया गया कि हमारी जमीन बाहर के लोग खरीद लेंगे और हमारे हाथ कुछ नहीं बचेगा. हमें साइडलाइन कर दिया जाएगा. जेल में मुझसे कड़ा व्यवहार किया जरूर गया, लेकिन जेल में जो एसपी से कुछ इतना कड़ा व्यवहार करते थे उससे ज्यादा प्यार भी करते थे और मुझे समझाते थे. मुझे तब झटका लगा, जब मेरे साथ एक हुर्रियत का नेता भी जेल में बंद था और मैंने उससे पूछा कि क्या आपका बेटा भी पत्थरबाज है, जवाब मिला, मेरा बेटा तुम लोगों जैसा पागल नहीं है. उसने कहा मेरे बच्चे बाहर पढ़ते हैं. मुझे तुरंत समझ में आ गया कि ये लोग फायदे के लिए हमें इस्तेमाल कर रहे हैं.
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जिया अपने सपने को याद करते हुए कहते हैं, मैं भी बैरिस्टर बनना चाहता था, आगे बढ़ना चाहता था, लेकिन इन लोगों ने मेरा पूरा भविष्य खराब कर दिया. जब सियासत बदली तो कुछ अच्छे अफसरों ने मेरी मदद की और आज किताबों से मेरी दोस्ती हो गई है. मैं सोशल वर्क का काम कर रहा हूं. अब मैं सही मायने में अपने मुल्क और अपने कश्मीर की सेवा कर रहा हूं.
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