डीएनए हिंदी: इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके बारे में कहा जाता है, 'ये काम इसी के लिए बना है, इससे बेहतर इसे शायद ही कोई कर पाए.' कुछ ऐसी ही शख्सियत थे टीएनबी कॉलेज के रिटायर्ड शिक्षक डॉ अंजनी श्रीवास्तव. बीते शुक्रवार की सुबह करीब 5:30 बजे एक निजी क्लीनिक में उन्होंने आखिरी सांस ली. 

जेपी विवि, छपरा के कुलपति फारूक अली बताते हैं, 79 वर्षीय अंजनी कैंसर से पीड़ित थे. उन्हें तीन बार कैंसर रह चुका है फिर भी कभी बीमारी के आगे हार नहीं मानी. हफ्ते में तीन से चार दिन विभाग जाकर मुफ्त में कक्षा लेना उनका रूटीन था. पढ़ाना और पढ़ने वाले लोग उन्हें शुरू से ही पसंद थे. तभी टीएमबीयू के कई शिक्षकों के भी शिक्षक रह चुके अंजनी अक्टूबर 2005 में कॉलेज से रिटायर होने के बाद भी कॉलेज जाकर बच्चों को पढ़ाया करते थे. यह सिलसिला देहांत होने के लगभग डेढ़ महीने पहले तक जारी रहा. बीते 2 अगस्त को उन्होंने कॉलेज के जूलॉजी विभाग के ओवरऑल टॉपर को अवार्ड भी दिया. ये अवार्ड वे हर साल अपने खुद के पैसों से स्टूडेंट्स को दिया करते थे.  

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श्रीवास्तव ने टीएनबी कॉलेज में 2 जनवरी 1967 से पढ़ाना शुरू किया था. उस वक्त उन्हें 400 रुपये वेतन मिलता था. वे हर साल स्नातक में जूलॉजी के ओवरऑल टॉपर को अवार्ड देते थे. इसके लिए उन्होंने बैंक में ढाई लाख रुपये जमा कराए थे. बाद में अपने और अपनी पत्नी गीता श्रीवास्तव के नाम पर जूलॉजी में छात्राओं की टॉपर को भी अवार्ड देने लगे. इसके लिए भी उन्होंने सवा लाख रुपये जमा कराए थे. 

फारूक अली कहते हैं, 'जब रिटायरमेंट लेने के बाद भी अंजनी क्लास लेने आते थे तो मैं हमेशा उनसे कहता था कि सर आप आराम कीजिए. इस पर वे जवाब देते थे कि फारूक अगर मैं पढ़ाऊंगा नहीं तो मर जाऊंगा. वे अक्सर कहा करते थे कि जिस संस्थान से मेरा जीवन चला है अब वहां के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाकर मैं अपना मेहनताना चुका रहा हूं.'

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JP University VC Faruque Ali said Anjani Srivastava used to take classes for free even after retirement
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रिटायरमेंट के बाद भी मुफ्त में क्लास लेते थे अंजनी श्रीवास्तव: फारूक अली
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रिटायरमेंट के बाद भी मुफ्त में क्लास लेते थे अंजनी श्रीवास्तव, कहते थे-पढ़ाऊंगा नहीं तो मर जाऊंगा: फारूक अली