डीएनए हिंदी: जम्मू कश्मीर में हिंदी भाषा को लेकर बड़ा विवाद हो गया है. राज्य के सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में हिंदी भाषा पढ़ाने का फैसला लिया जा सकता है. इसको लेकर जम्मू-कश्मीर स्कूल शिक्षा बोर्ड के सभी स्कूलों से सुझाव भी मांगे हैं. इसके बाद इस संबंध में एक प्रस्ताव लाया जा सकता है जिसके बाद सभी स्कूलों में हिंदी भाषा पढ़ाना जरूरी हो जाएगा. ऐसे में अब इस मुद्दे पर राजनीति भी गर्म हो गई है और इस मुद्दे को लेकर विरोध शुरू हो गया है.
दरअसल, जम्मू और कश्मीर स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (JKSCERT) ने सरकारी और निजी स्कूलों में हिंदी भाषा को लेकर एक समिति बनाई है. इस समिति के जरिए हिंदी भाषा पढ़ाने को लेकर सुझाव मांगे गए हैं. निदेशक ने पूछा है कि आखिर कैसे पहली से दसवीं तक के बच्चों को हिंदी भाषा पढ़ाई जाए, सुझावों को लेकर बनाई गई 8 लोगों की समिति की रिपोर्ट के आधार पर कोई बड़ा फैसला किया जा सकता है.
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समिति में मौजूद होंगे ये पदाधिकारी
सवाल यह भी है जो समिति बनाई गई है, उसमें कौन-कौन से लोग शामिल हैं. इसको लेकर बताया गया है कि इसमें जेकेबीओएसई के चेयरमैन के साथ निदेशक स्कूल शिक्षा जम्मू, निदेशक स्कूल शिक्षा कश्मीर, परियोजना निदेशक समग्र शिक्षा जेके, जेकेबीओएसई के निदेशक अकादमिक, संयुक्त निदेशक, एससीईआरटी मंडल कार्यालय जम्मू, संयुक्त निदेशक एससीईआरटी मंडल कार्यालय कश्मीर और संयुक्त निदेशक एससीईआरटी सेंट्रल जेके शामिल किए जाएंगे. स्कूलों के सुझावों के आधार पर यह समिति काम करेगी और रिपोर्ट तैयार कर हिंदी भाषा पढ़ाने को लेकर अपना मत देगी.
राजनीतिक दलों का विरोध
हिंदी भाषा पढ़ाने को लेकर उठाए जा रहे प्रस्तावित कदम को लेकर राजनीतिक दलों के बीच टकराव भी सामने आ गया है. हिंदी को अब तक एक वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाया जाता रहा है, जिसका अर्थ था कि छात्र अंग्रेजी के अलावा हिंदी या उर्दू के बीच चयन कर सकते हैं. अब राजनीतिक दलों का कहना है कि बच्चों पर हिंदी भाषा थोपी जा रही है. राजनीतिक दल इसके पीछे केंद्र सरकार की साजिश बता रहे हैं.
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अभी क्या है व्यवस्था
बता दें कि जम्मू के बच्चे हिंदी को भाषा के रूप में पढ़ने का विकल्प चुनते हैं, जबकि कश्मीर में अभी हिंदी पढ़ाने की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में घाटी के बच्चों को हिंदी पढ़ने को नहीं मिल पा रही है क्योंकि वहां कोई हिंदी पढ़ाने वाला टीचर तक मौजूद नहीं है. बता दें कि 1990 के बाद से हिंदी पढ़ाने वाले कश्मीरी पंडित घाटी से पलायन कर गए थे जिसके बाद से कश्मीर में हिंदी भाषा पढ़ाने वालों की बड़ी कमी हो गई है.
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जम्मू-कश्मीर में अब पढ़ाई जाएगी हिंदी भाषा, फैसले को लेकर गर्म हुई सियासत