डीएनए हिंदी: भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त हुए दंगे और हिंसा को दुनिया की भीषण त्रासदियों के तौर पर गिना जाता है. 200 साल से लंबे संघर्ष के बाद मिली आजादी में दोनों ही देशों से एक बड़ी आबादी को अपना घर और मिट्टी छोड़ना पड़ा था. इन दंगों में खास तौर पर महिलाओं के साथ हुई हिंसा ने पूरे विश्व को झकझोर दिया था. दंगे और हिंसा के उस दौर में बहुत से परिवारों ने अपनी बेटियों और घर की औरतों को दूसरे समुदाय के पहुंचने और हमले से पहले खुद ही मार दिया था. इन घटनाओं को दोनों देशों के इतिहासकारों ने दर्ज भी किया है. रावलपिंडी के पास ऐसे ही एक गांव में 90 सिख महिलाओं ने दंगों से बचने के लिए गांव के कूएं में कूदकर अपनी जान दे दी थी. जानें वह झकझोर देने वाली कहानी.
75,000 से ज्यादा महिलाओं का हुआ अपहरण
कमला भसीन और रितु मेनन ने अपनी किताब ‘बॉर्डर्स एंड बाउंड्रीज़: वूमेन इन इंडियाज पार्टिशन‘ में बताया है कि आधिकारिक तौर पर बंटवारे के समय पाकिस्तान जाते समय 50,000 महिलाओं का अपहरण हुआ था जबकि भारत आते समय 33,000 महिलाओं का अपहरण किया गया था. हालांकि दोनों नारीवादी लेखिकाओं ने माना था कि असल आंकड़ा इससे बहुत ज्यादा का था. बड़े पैमाने पर महिलाओं को उनके परिवार की हिंसा का भी शिकार होना पड़ा था जिसमें दंगाइयों के आक्रमण के दौरान बेटियों को बचाने के लिए उन्हें जहर देने जैसी घटनाएं शामिल हैं.
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खालसा थुआ गांव की 90 महिलाओं की शहादत
महिलाओं के साथ हिंसा की घटनाओं के बारे में उर्वशी बुटालिया ने अपनी किताब में विस्तार से लिखा है. उन्होंने अपनी किताब में बताया है कि बंटवारे की भीषण त्रासदी के दौरान रावलपिंडी के पास खालसा थुआ गांव की 90 औरतों ने कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी थी. दंगाइयों से बचने के लिए इन महिलाओं ने मौत का रास्ता चुना. आज भी दिल्ली के गुरुद्वारे में हर साल 13 मार्च को इन महिलाओं की याद में शहादत दिवस मनाया जाता है. उन दिवंगत महिलाओं की स्मृति में प्रार्थना की जाती है.
खालसा थुआ गांव के बारे में कहा जाता है कि दशकों तक मुस्लिम बहुल इस गांव में लोग प्यार से रहे. रावलपिंडी और आसपास का पूरा इलाका 1947 से पहले भी मुस्लिम बाहुल्य था. छिटपुट झड़प की घटनाएं छोड़ दें तो वहां किसी बड़े दंगे की कोई वारदात नहीं हुई थी. हालांकि 1947 की जहरीली हवा में सब तितर-बितर हो गया और इस गांव और आसपास की रहने वाली सिख आबादी या तो मारी गई या जो बच गई वह जैसे-तैसे भारत लौट आई. 75 साल से ज्यादा वक्त बीतने के बाद भी वह टीस आज भी जिंदा है.
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परिवार से बिछड़ी महिलाओं के लिए लाया गया रिकवरी एक्ट
बंटवारे के दौरान भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों से कई महिलाएं और बच्चियां अपने परिवारों से बिछड़ गई थीं. इनमें से कुछ को किसी दूसरे परिवार ने अपना भी लिया लेकिन बहुत सी महिलाओं को परिवार से बिछड़ने के बाद भयानक हिंसा का सामना करना पड़ा था. इसमें शारीरिक और मानसिक हिंसा के साथ ही यौन शोषण भी शामिल है. ऐसी ही महिलाओं को फिर से उनके परिवार से मिलाने के उद्देश्य से रिकवरी ऐक्ट 1949 की स्थापना की गई थी. इस कानून के तहते परिवार से बिछड़ी महिलाओं को उनके मूल परिवार तक पहुंचाने की कोशिश की गई.
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बंटवारे की त्रासदी में रावलपिंडी की 90 सिख महिलाओं ने दी शहादत, जानें वह कहानी