हमें अक्सर देखने को मिलता है कि भारतीय दक्षिणपंथी ख़ेमे में हिंदुत्व को लेकर दो तरह की विचारधाराएं मौजूद हैं. इनमें से एक विचारधारा के मुताबिक़ भारत में रहने वाला, यहां पैदा होने वाला हर शख्स ‘हिंदू’ है. ऐसा ही बयान पिछले साल संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी दिया था. वहीं दूसरी तरफ एक विचारधारा है जिसके मुताबिक़ जो यहां के धर्म को मानता है वहीं हिंदू है. यहां के धर्म का मतलब हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म से है. जिन धर्मों की शुरुआत यहां की भूमि और संस्कृति से हुई है. हिंदुत्व को लेकर इन अलग-अलग विचारों की शुरुआत हिंदू महासभा के संस्थापक वीर सावरकर और संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलराम हेडगेवार से हुई है. सावरकर जहां पितृभूमि पर जोर देते थे, वहीं हेडगेवार की विचारधारा मातृभूमि की थी.आइए इसे विस्तार से समझते हैं.

सावरकर की विचारधारा
हिंदुत्व शब्द को सावरकर ने ही चलन में लाया था. उन्होंने अपनी किताब में इसे परिभाषित किया था, उनकी किताब का नाम 'हिंदुत्व हू इज हिंदू' (1923) है. इस किताब में उन्होंने हिंदुत्व और हिंदू तीन पहचान बताए हैं. इनमें एक राष्ट्र, एक जाति और एक संस्कृति शामिल है. उनके मुताबिक हिंदू वो है जो 'हिन्दुस्थान' को अपना पितृभूमि और पुण्यभूमि समझता है.

हेडगेवार की विचारधारा
वहीं डॉक्टर जी केशव बलराम हेडगेवार के अनुसार इस देश में जन्मा हर शख्स हिंदू है. डॉक्टर जी ने संगठन के लिए 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' नाम क्यों चुना. डॉ. हेडगेवार के अनुसार, 'राष्ट्रीय' शब्द का स्वाभाविक अर्थ 'हिंदू' है. 'राष्ट्रीय' शब्द के स्थान पर 'हिंदू' शब्द का प्रयोग करने से हिंदुओं का महत्व कम हो जाएगा और वे केवल भारत में रहने वाले एक समुदाय तक सीमित रह जाएंगे तथा यह वास्तविकता छिप जाएगी कि यह भूमि उनकी है.

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How Savarkar and Hedgewar had different thought on hindutva What was their thinking regarding Motherland and
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Hindutva: कैसे अलग था सावरकर और हेडगेवार का 'हिंदुत्व', ‘मातृभूमि’ और ‘पितृभूमि’
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Hindutva: कैसे अलग था सावरकर और हेडगेवार का 'हिंदुत्व', ‘मातृभूमि’ और ‘पितृभूमि’ को लेकर क्या थी सोच?

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