डीएनए हिंदी: अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले के एक गांव में कद्दू की खेती ने अवैध रूप से की जाने वाली अफीम की खेती की जगह ले ली है, जिससे किसानों को मानसिक शांति और पैसा दोनों मिल रहा है. राज्य की राजधानी ईटानगर से 300 किलोमीटर और लोहित जिला मुख्यालय तेजू से 27 किलोमीटर दूर स्थित मेदो गांव अफीम के केंद्र के रूप में बदनाम था.

पिछले कुछ वर्षों में अफीम के खिलाफ सरकार की लड़ाई और उसके द्वारा शुरू की गई योजनाओं के परिणामस्वरूप किसान लोकप्रिय सब्जी कद्दू के अलावा अदरक, सरसों और चाय जैसी नकदी फसलों की खेती कर रहे हैं. बाहर से आने वाले लोगों को कुछ साल पहले तक अफीम के फूलों से भरे खेत दिखाई देते थे जो अब कद्दू के पौधों से लहलहा रहे हैं.

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वाकरो परिक्षेत्र के अतिरिक्त सहायक आयुक्त तमो रीबा ने कहा, "अफीम पर राज्य सरकार के बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने की नीति ने कारगर तरीके से काम किया, क्योंकि अधिकांश किसान अब सब्जी की खेती को तरजीह दे रहे हैं."

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रीबा ने कहा कि यह खतरा अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है क्योंकि जिले के कुछ किसान कथित तौर पर अफीम की खेती कर रहे हैं. अफीम के बीज से मादक पदार्थ के रूप में इस्तेमाल होने वाली अफीम निकाली जाती है. यह परिवर्तन राज्य सरकार द्वारा 2021 में शुरू की गई आत्मनिर्भर कृषि योजना का परिणाम है.

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उन्होंने कहा कि सामाजिक संगठन अफीम के खिलाफ लड़ाई में प्रशासन की सहायता कर रहे हैं. अप्रैल से अक्टूबर तक मनियुलियांग, टिश्यू और अन्य जैसी छोटी-छोटी बस्तियों वाले गांव में कद्दू से लदे ट्रकों की आवाजाही देखी जा सकती है क्योंकि पड़ोसी असम के व्यापारी सब्जी की सर्वोत्तम किस्मों को खरीदने के लिए मेदो में आते हैं.

कृषि विकास अधिकारी विजय नामचूम ने कहा कि कद्दू अब मेदो में एक प्रमुख फसल है और वाकरो क्षेत्र के लगभग 500 से अधिक किसान 1000 हेक्टेयर से अधिक के क्षेत्र में इसकी खेती करते हैं. इस क्षेत्र में सालाना औसतन 5000 से अधिक मीट्रिक टन कद्दू उगाते हैं.

सरकार ने पिछले साल सितंबर में आत्म निर्भर कृषि योजना और आत्म निर्भर बागवानी योजना शुरू की और प्रत्येक के लिए 60 करोड़ रुपये आवंटित किए. मेदो में 10 हेक्टेयर में सब्जी की खेती करने वाले सोफ्राई तौसिक ने मांग और उत्पादन परिदृश्य के बारे में बताया.

उन्होंने कहा, "पिछले साल उत्पादन अच्छा था लेकिन आय कम थी क्योंकि खरीदारों ने केवल तीन रुपये प्रति किलो का भुगतान किया था. इस साल आय अच्छी हुई क्योंकि उपज पर सात रुपये प्रति किलो की आय हुई."

बाजोंगसो मन्न्यू ने अफसोस जताया कि इस साल अत्यधिक बारिश के कारण वह अपने दस एकड़ के भूखंड में अन्य वर्षों के 10-15 टन की तुलना में केवल लगभग चार टन सब्जी का उत्पादन कर सके. कम उपज के बावजूद, उन्होंने पिछले साल 40,000 रुपये के मुकाबले 32,000 रुपये कमाए.

 उन्होंने जिला कृषि विभाग को बीज, दवाएं, स्प्रे मशीन और तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करके सहायता प्रदान करने के लिए सराहना की. उपमुख्यमंत्री चौना मीन ने कहा कि जब तक ‘कठोर नीति’ नहीं अपनाई जाती तब तक राज्य में अफीम की खेती को समाप्त नहीं किया जा सकता.

(भाषा)

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गुड न्यूज! अरुणाचल के गांवों में अफीम की जगह ले रही है कद्दू की खेती
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