संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गुरुवार को घोषणा की कि उनका प्रशासन अमेरिकी आयात पर कर लगाने वाले प्रत्येक देश पर पारस्परिक शुल्क (Reciprocal Tariffs) लगाने पर विचार कर रहा है. ट्रम्प ने ओवल ऑफिस में पत्रकारों से कहा, 'व्यापार के मामले में, मैंने निष्पक्षता के उद्देश्य से निर्णय लिया है कि मैं पारस्परिक टैरिफ लगाऊंगा, मतलब जो भी देश अमेरिका पर टैरिफ लगाएंगे, हम भी उन पर टैरिफ लगाएंगे. न ज्यादा, न कम.'
उन्होंने एक ज्ञापन ( Memo) पर भी हस्ताक्षर किए, जिसमें उनकी टीम को अन्य देशों द्वारा लगाए जाने वाले शुल्कों के अनुरूप शुल्कों की गणना शुरू करने और गैर-शुल्क बाधाओं जैसे वाहन सुरक्षा नियमों, जो अमेरिकी वाहनों को बाहर रखते हैं, और मूल्य-वर्धित करों, जो उनकी लागत बढ़ाते हैं, का प्रतिकार (counteract) करने का आदेश दिया गया. ट्रम्प ने यह भी कहा कि वाशिंगटन भारत को पारस्परिक शुल्क से नहीं बख्शेगा.
पारस्परिक शुल्क (Reciprocal tariffs) क्या है?
पारस्परिक शुल्क का मतलब है कि जब एक देश किसी दूसरे देश के सामान पर टैक्स (शुल्क) लगाता है, तो दूसरा देश भी उसी तरह से जवाब देता है. उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि अमेरिका भारत से आने वाले कपड़ों पर 20% टैक्स लगा देता है. जवाब में, भारत भी अमेरिका से आने वाली चीजों (जैसे कारें या शराब) पर 20% टैक्स लगा सकता है. कुल मिलाकर कहा जाए तो ये शुल्क दूसरे देश से आयातित वस्तुओं पर लगाए जाने वाले कर हैं. आयातक को यह शुल्क सरकार को देना होता है. पीटीआई के अनुसार, आम तौर पर, कंपनियां इन करों का बोझ अंतिम उपभोक्ताओं पर डालती हैं. जैसे, अगर कोई कंपनी किसी दूसरे देश से 10 प्रतिशत सीमा शुल्क वाला कोई उत्पाद आयात कर रही है, जिसकी कीमत 100 रुपये है, तो उत्पाद की कीमत 110 रुपये हो जाएगी. ये शुल्क, जो अप्रत्यक्ष कर हैं, किसी देश के लिए राजस्व का स्रोत हैं. विश्लेषकों का मानना है कि पारस्परिक शुल्क का मतलब आयात पर दरों में बढ़ोतरी करना है, जो अन्य देशों द्वारा अमेरिकी उत्पादों पर लागू किए जाने वाले स्तर से मेल खाती है.
भारत पर इसका क्या होगा असर?
डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने से कुछ घंटे पहले ही हर देश पर पारस्परिक टैरिफ लगाने की अपनी योजना की घोषणा की. गुरुवार को आदेश पर हस्ताक्षर करते समय, उन्होंने विशेष रूप से भारत का उल्लेख करते हुए कहा: 'भारत में लगभग किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक टैरिफ हैं.' बाद में, व्हाइट हाउस में प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के बाद, ट्रंप ने भारत के खिलाफ अपने बात को दोहराया. ट्रंप ने व्हाइट हाउस में मोदी की मौजूदगी में कहा, 'भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा टैरिफ़ लगाने वाला देश है.' 'भारत जो भी शुल्क लगाता है, हम भी उसी पर शुल्क लगाते हैं.'
अमेरिका को कई देशों, खासकर चीन के साथ भारी व्यापार असंतुलन का सामना करना पड़ रहा है. भारत के साथ अमेरिका का 2023-24 में वस्तुओं के मामले में 35.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा है. इस अंतर को पाटने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ये शुल्क लगा रहे हैं. वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डॉ. नरेंद्र ठाकुर का कहना है कि अमेरिका में भारी बेरोजगारी का आलम चल रहा है ऐसे में वह टैरिफ शुल्क बढ़ा रहा है. प्रोफेसर नरेंद्र के अनुसार डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ बढ़ाना, भारत में निम्न तरीके से असर डालेगा:
नौकरियों पर असर
प्रोफेसर नरेंद्र का कहना है कि अगर अमेरिका टैरिफ बढ़ाता है तो भारतीय कंपनियों का बिजनेस घटेगा. बिजनेस घटेगा तो वे खर्चे कम करने के लिए नौकरियां भी कम करेंगी. खासकर science, technology, engineering, mathmatics (STEM), आईटी सेक्टर, मैन्युफैक्चरिंग, फार्मा और टेक्सटाइल में काम करने वालों पर असर पड़ सकता है. नए लोग जो नौकरी ढूंढ रहे हैं, उन्हें अच्छी जॉब मिलने में मुश्किल हो सकती है.
मॉर्गन स्टेनली के विश्लेषकों ने भी भविष्यवाणी की है कि भारत और थाईलैंड में टैरिफ में 4 से 6 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती है. हालांकि, 'भारत के पास अमेरिकी रक्षा उपकरण, ऊर्जा और विमान की खरीद बढ़ाने की गुंजाइश हो सकती है.'
भारत से अमेरिका सामान बेचने वालों को दिक्कत
जब भारतीय कंपनियां अमेरिका को सामान बेचती हैं (जैसे टेक्सटाइल, दवाइयां, आईटी सेवाएं, मशीनें वगैरह), तो अगर अमेरिका ज्यादा टैक्स लगा देगा, तो वे चीजें महंगी हो जाएंगी. इसका मतलब है कि अमेरिकी ग्राहक या कंपनियां शायद भारत से कम खरीदें, जिससे भारतीय कंपनियों की बिक्री घट सकती है.
रुपये पर असर
अगर अमेरिका कम सामान खरीदेगा, तो भारत को डॉलर कम मिलेंगे, जिससे रुपये की कीमत घट सकती है. रुपये की कीमत गिरने से भारत में तेल, गैस और विदेश से आने वाली चीजें महंगी होंगी और इससे महंगाई बढ़ेगी.
अमेरिका में काम करने वालों के लिए भी मुश्किलें
ट्रंप का टैरिफ और उनकी 'अमेरिकियों के लिए नौकरी' वाली नीति का मतलब यह भी हो सकता है कि H-1B वीजा जैसी नौकरियों में कटौती हो. यानी जो भारतीय अमेरिका में नौकरी करना चाहते हैं, उनके लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
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अगर ट्रंप का टैरिफ बढ़ता है, तो भारतीय कंपनियों का बिजनेस घट सकता है, जिससे नौकरियां प्रभावित हो सकती हैं. महंगाई बढ़ने का खतरा रहेगा और अमेरिका में काम करने वालों के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. हालांकि, भारत सरकार कूटनीतिक तरीके से अमेरिका से बातचीत कर सकती है, ताकि इसका असर कम किया जा सके. हालांकि, विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि टैरिफ बढ़ाने से न ही अमेरिका ग्रेट बनेगा और न ही कोई अन्य देश. इसलिए इस मुद्दे पर बदले की भावना से ज्यादा कूटनीतिक तरीके से बात करनी चाहिए.
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