सूर्य ग्रहण की घटना तो हम हर साल देखते और सुनते ही रहते हैं. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) इस साल अपने प्रोबा-3 मिशन के माध्यम से एक कृत्रिम सूर्य ग्रहण लगाने जा रही है. ग्रहण को लेकर हिंदू धर्म में मान्यता कुछ यूं है कि जब ग्रहण लगता है तब एक राक्षस सूर्य का भक्षण कर लेता है. प्राचीन चीनी संस्कृति में, यह एक ड्रैगन है और नॉर्स पौराणिक कथाओं में इसे भेड़िये की संज्ञा दी गई है.
गिरीश लिंगन्ना के अनुसार, अब, कल्पना कीजिए एक ऐसे घटनाक्रम की जहां इन सभी चिंतित लोगों को यह समझाना है कि हम कृत्रिम रूप से ग्रहण को प्रेरित करने की योजना बना रहे हैं.
इससे पहले कि लोग यह समझ पाते कि ग्रहण प्राकृतिक खगोलीय घटनाएं हैं, कई संस्कृतियों में उनके लिए अपनी-अपनी कहानियां और व्याख्याएं थीं. रोचक ये कि इनमें से कई में सूर्य या चंद्रमा को खाने वाले पौराणिक जीवों को दिखाया गया था, जिसके कारण लोग ग्रहण को एक बुरा शगुन के रूप में देखते हैं.
प्रोबा-3: कृत्रिम ग्रहण मिशन
सितंबर से नवंबर के बीच, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) एक असाधारण मिशन जिसका नाम प्रोबा-3 है, की शुरुआत करने वाली है. इसे कृत्रिम ग्रहण बनाने वाली दुनिया की पहली मशीन कहा जा सकता है. इस अनोखी परियोजना में अंतरिक्ष में लंबे समय तक चलने वाला कृत्रिम सूर्य ग्रहण बनाने के लिए एक साथ काम करने वाले दो उपग्रहों का इस्तेमाल किया जाता है. ध्यान रहे इससे पहले अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है.
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बताते चलें कि प्रोबा-3 में दो उपग्रह, जो एक दूसरे के बीच 144 मीटर की सटीक दूरी रखते हुए, एक दूसरे के करीब उड़ान भरेंगे. यह सेटअप एक उपग्रह को दूसरे पर छाया डालने में सहायक होगा.जिससे दूसरे उपग्रह के लिए एक कृत्रिम सूर्य ग्रहण बनेगा. हालांकि, अगर कोई पृथ्वी पर बड़े बदलाव की उम्मीद कर रहा है, तो शायद वह उस तरह का ग्रहण न देख पाए जिससे हम अभी तक रू-ब-रू हुए हैं.
ये रहा अंतरिक्ष एजेंसी का प्लान?
मिशन का मुख्य उद्देश्य एक “कृत्रिम दीर्घवृत्त” (अंडाकार) बनाना है, जिसमें एक उपग्रह सूर्य को कवर करता है और दूसरा अंतरिक्ष यान को. इसकी मदद से अज्ञात सौर कोरोना का पता लगाने की अनुमति मिलती है. कोरोना हमारे विशाल तारे के वायुमंडल का सबसे बाहरी हिस्सा है. सूर्य की सतह की तीव्र चमक से अवरोध के कारण यह अध्ययन और जांच के लिए एक चुनौती है.
मिशन: सूर्य की प्रमुख चमक
यह मिशन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसबार सूर्य सभी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करेगा. इसकी चमकदार किरणें इतनी शक्तिशाली हैं कि वे बाकी सब चीज़ों को अवरुद्ध कर देंगी, जिससे विशिष्ट प्रकार के विकिरणों का पता लगाना मुश्किल हो जाता है.
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इसके बाद अब आप उस स्थिति की कल्पना करें जहां आपको एक जुगनू, जिसे विज्ञान एक बायोल्यूमिनसेंट कीट कहता है, को देखना है. इसे देखना आपके लिए मुश्किल होगा. भले ही ये प्रकाश उत्पन्न करने के कारण हमें अक्सर अंधेरे में चमकता हुआ दिखाई दे मगर जब कृतिम ग्रहण होगा तो ऐसा प्रतीत होगा कि किसी जंगल में भीषण आग लगी है और वहां से एक अजीब रोशनी निकल रही है.
सूर्य की आंतरिक एवं बाह्य परतें
आंतरिक परतें
कोर लेयर : यह 15 मिलियन°C, के साथ लगभग 150,000 किमी तक फैला हुई होती हैं.
विकिरण क्षेत्र: यह 7 मिलियन डिग्री सेल्सियस के साथ लगभग 500,000 किमी तक विस्तृत होती हैं.
संवहनीय क्षेत्र: यह 2 मिलियन°C के साथ लगभग 700,000 किमी तक फैली हुई होती हैं.
बाह्य परतें
टोस्फीयर: 5,500 डिग्री सेल्सियस के साथ लगभग 500 किमी मोटी , सूर्य की सतह, जिसे फोटोस्फीयर कहा जाता है, एक विजिबल परत है और इसे सूर्य का 'ब्राइट फेस' कहा जाता है जो पृथ्वी से दिखाई देने वाला प्रकाश उत्सर्जित करता है. फोटोस्फीयर का तापमान लगभग 5,500 डिग्री सेल्सियस है और यह लगभग 500 किमी मोटी है.
क्रोमोस्फेयर: यह 4,320°C के साथ 2,000 किमी तक फैली हुई होती हैं.
कोरोना: यह 1-3 मिलियन डिग्री सेल्सियस के साथ, अंतरिक्ष में लाखों किलोमीटर तक फैली हुई है.
प्रोबा-3 का प्राथमिक वैज्ञानिक लक्ष्य
प्रोबा-3 का मुख्य वैज्ञानिक लक्ष्य सूर्य के कोरोना का अध्ययन करना है, जो सूर्य की चमकीली रोशनी से छिपी हुई बाहरी परत है. प्रोबा-3 सूर्य के 'ब्राइट फेस' को अवरुद्ध करेगा. यदि ऐसा हो जाता है तो हमें कोरोना का एक दुर्लभ और लंबे समय तक चलने वाला दृश्य देखने को मिलेगा.
इस पूरी प्रक्रिया की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस मिशन को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा संचालित पीएसएलवी-एक्सएल रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा.
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