आखिरकार राजनीतिक रूप से कांग्रेस के गांधी परिवार का नाता यूपी से खत्म होने वाला है. आज के DNA TV Show में हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि गांधी परिवार की राजनीति में रायबरेली एक आखिरी किला बाकी था, जहां से सोनिया गांधी लोकसभा सदस्य थीं लेकिन आज सोनिया गांधी ने राजस्थान से राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन कर दिया है. इस तरह से ये बात साफ हो गई है कि अब सोनिया गांधी रायबरेली में किसी उम्मीदवार को चुनौती नहीं देने वाली हैं, तो क्या ये मान लिया जाए कि अब यूपी से गांधी परिवार का राजनीतिक नाता, पूरी तरह से खत्म हो गया है, क्योंकि आखिरी किला भी ढहने वाला है?
हालांकि कांग्रेस ऐसा नहीं मानती हैं. आज सोनिया गांधी राज्यसभा नामांकन के लिए जब जयपुर पहुंची थीं, तब उनके साथ राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा भी थे. इस नामांकन के बाद कांग्रेस पार्टी के सदस्य काफी खुश हैं. कांग्रेस नेताओं को अपनी वरिष्ठ नेता और सर्वेसर्वा रहीं सोनिया गांधी के पक्ष में कुछ ना कुछ कहना था, इसीलिए उन्होंने वही कहा जो पार्टी धर्म कहता था लेकिन राजनीतिक विरोधियों को भी अपना धर्म निभाना था इसीलिए सभी एक सुर में ये बात कह रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक जड़ें, उत्तर प्रदेश की सीटों से पूरी तरह से खत्म हो चुकी हैं. आने वाले चुनाव में रायबरेली नाम का आखिरी किला भी गिरने वाला था इसीलिए सोनिया गांधी ने बुद्धिमानी दिखाते हुए, राज्यसभा का रुख कर लिया, ताकि विदाई सम्मानजनक रहे.
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चुनाव दर चुनाव खराब हो रही कांग्रेस की हालत
पिछले दो लोकसभा चुनाव से कांग्रेस की हालत देश में खराब होती रही है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की 44 सीटें थीं, और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें 52 सीटें मिली थीं. इन दोनों लोकसभा चुनावों में यूपी के अमेठी और रायबरेली से राहुल गांधी और सोनिया गांधी ही उम्मीदवार बने. 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अमेठी से और सोनिया गांधी जीतकर लोकसभा पहुंचे लेकिन 2019 चुनाव में बीजेपी ने खेल बदल दिया था.
इसका अंदाजा कांग्रेस पार्टी को भी हो गया था. इसीलिए इस बार राहुल गांधी अमेठी ही नहीं, केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़े. ऐसा लगता है कि जैसे कांग्रेस को पता था कि अमेठी सीट, इस बार गांधी परिवार नहीं जीत पाएगा. हुआ भी यही. अमेठी में राहुल गांधी हार गए लेकिन सोनिया गांधी एक बार फिर 2019 चुनाव में रायबरेली सीट जीतकर लोकसभा पहुंच गई.
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अब 2024 चुनाव से पहले एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी को संदेह है कि सोनिया गांधी, रायबरेली सीट जीत पाएंगी. यही वजह है कि इस बार उन्हें राज्यसभा का नामांकन करवाया गया है, ताकि वो संसद में राज्यसभा सदस्य बनकर पहुंच सकें. क्या ये मान लिया जाए कि कांग्रेस को अंदाजा हो गया है कि गांधी परिवार अपना एक और किला खोने वाला है? बजट सत्र में लोकसभा के अंदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन आपको याद होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि एक प्रोडक्ट लॉन्च करने के चक्कर में कांग्रेस पार्टी को दुकान बंद करने नौबत आ गई है, उसी संबोधन में उन्होंने सोनिया गांधी के राज्यसभा जाने के संकेत भी दिए थे.
PM मोदी ने कसा था तंज
अपने इस संबोधन में प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पार्टी लड़ने वाली सोच खत्म हो जाने की बात कही थी और अब जब रायबरेली से सोनिया गांधी के चुनाव लड़ना मुश्किल दिख रहा है, तो इससे साफ है कि वो कहीं ना कहीं सही हैं. देश की जितनी भी राष्ट्रीय पार्टियां हैं, वो जानती हैं कि सरकार बनाने के लिए अगर किसी राज्य को टारगेट करना जरूरी है तो राज्य है उत्तर प्रदेश. यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं. इसी वजह से गांधी परिवार ने भी यूपी की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना, अपना लक्ष्य बनाया था.
पिछले चुनाव में कांग्रेस पार्टी यूपी में 1 और 2014 के चुनाव में कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं. ये दोनों सीटें अमेठी और रायबरेली ही थीं. हालांकि, उससे पहले यानी 2009 के चुनाव में कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं, जो 90 के दशक के बाद यूपी में उनके राजनीतिक इतिहास का काफी अच्छा प्रदर्शन कहा जाता है.
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नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ रहा उत्तर प्रदेश
जवाहर लाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक, सभी ने यूपी की किसी ना किसी सीट को अपना गढ़ बनाया था. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू फूलपुर से चुनाव लड़ते थे. फूलपुर, प्रयागराज में पड़ता है. जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने यूपी की रायबरेली को अपना गढ़ बनाया. इंदिरा गांधी के पति फिरोज़ गांधी ने भी रायबरेली से ही चुनाव जीता था. जवाहर लाल नेहरू के चचेरे भाई की पत्नी उमा नेहरू ने यूपी के सीतापुर से चुनाव जीता. जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने भी फूलपुर से चुनाव लड़ा था. इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी और राजीव गांधी ने अमेठी से चुनाव लड़ा था.
राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ा. राजीव और सोनिया के बेटे राहुल गांधी भी अमेठी से ही चुनाव लड़ते रहे. उमा नेहरू के नाती अरुण नेहरू रायबरेली से चुनाव लड़े. संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी यूपी के पीलीभीत से और इनके बेटे वरुण गांधी सुल्तानपुर से चुनाव लड़ते रहे हैं. हालांकि ये दोनों पिछला चुनाव बीजेपी की टिकट पर लड़कर जीते हैं.
इन सभी सीटों में से रायबरेली ऐसी सीट रही है, जहां पर कांग्रेस आज़ादी के बाद हुए 17 चुनावों में केवल 3 बार हारी है. इसी तरह से वर्ष 1967 में बनी अमेठी सीट पर भी कांग्रेस केवल 3 बार ही हारी है.
इलाहाबाद रहा राजनीति का केंद्र
नेहरू-गांधी परिवार की जड़ें भले ही कश्मीर से जुड़ी बताई जाती हों लेकिन नेहरू परिवार के राजनीतिक इतिहास की शुरुआत उत्तर प्रदेश से ही होती है. जवाहर लाल नेहरू और उनके पिता मोतीलाल नेहरू, दोनों ही ब्रिटिश हुकूमत में इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकील थे. जवाहर लाल नेहरू का तो जन्म भी इलाहाबाद में ही हुआ था. इलाहाबाद का मौजूद नाम प्रयागराज है. मोतीलाल और जवाहर लाल नेहरू, दोनों ही इलाहाबाद में रहते हुए ही कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए. इलाहाबाद इन दोनों ही नेताओं की राजनीतिक कर्मभूमि थी.
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जवाहर लाल नेहरू ने वर्ष 1952 में आजाद भारत का अपना पहला चुनाव इलाहाबाद के पास फूलपुर सीट से ही जीता था. जवाहर लाल नेहरू ने 1962 में अपना आखिरी चुनाव भी फूलपुर से ही लड़ा था. उस चुनाव में नेहरू ने राम मनोहर लोहिया को 50 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. वर्ष 1964 में जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने फूलपुर से ही चुनाव लड़ा और जीता था.
परिवार की तीसरी सदस्य जाएंगी राज्यसभा
वर्ष 1962 में ही जवाहर लाल नेहरू के चचेरे भाई श्याम लाल की पत्नी उमा नेहरू राज्य सभा पहुंची थीं. ये पहली बार था जब गांधी परिवार का कोई सदस्य राज्यसभा गया हो. इसके बाद वर्ष 1964 में इंदिरा गांधी वो दूसरी नेता थीं जो यूपी से ही राज्यसभा गई थीं. ये अलग बात है कि राज्यसभा में 3 वर्ष बिताने के बाद ही इंदिरा ने 1967 में लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया था. सोनिया गांधी, कांग्रेस के गांधी परिवार की तीसरी सदस्य हैं, जो राज्यसभा जाने वाली हैं, यानी करीब 57 साल बाद गांधी परिवार से कोई सदस्य कांग्रेस की ओर से राज्यसभा में जाने वाला है.
जहां तक इंदिरा गांधी की बात है तो वर्ष 1967 से 1977 तक इंदिरा गांधी रायबरेली सीट से लोक सभा सदस्य रहीं. इससे पहले उनके पति फ़िरोज़ गांधी रायबरेली सीट से ही वर्ष 1952 और 1957 में चुनाव जीते थे. अपने पति की सीट पर ही इंदिरा ने चुनाव लड़ना शुरू किया. अमेठी लोक सभा सीट पहली बार वर्ष 1967 में बनी थी। तभी से नेहरू-गांधी परिवार का कोई ना कोई सदस्य या करीबी, इस सीट से चुनाव जीतते रहे हैं. वर्ष 1975 के आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में हुए लोक सभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली और उनके बेटे संजय गांधी ने अमेठी सीट से चुनाव लड़ा. हालांकि, इस चुनाव में इंदिरा और संजय गांधी, दोनों की करारी हार हुई.
यूपी से ही होता रहा डेब्यू
आजादी के बाद वर्ष 1977 का चुनाव वो पहला मौका था, जब नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य, यूपी में किसी भी रूप से प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा था. हालांकि वर्ष 1980 के लोक सभा चुनाव में इंदिरा और संजय गांधी, दोनों रायबरेली और अमेठी सीट जीतने में कामयाब रहे थे. संजय गांधी के बाद उनके भाई राजीव गांधी ने भी वर्ष 1981 में अमेठी लोक सभा सीट से ही अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की.
राजीव गांधी ने वर्ष 1981 और वर्ष 1991 तक हुए चार चुनावों में अमेठी सीट से ही चुनाव लड़ा और जीता. इस समयकाल में रायबरेली सीट से नेहरू-गांधी परिवार के ही अरुण नेहरू और फिर शीला कौल लोक सभा सदस्य बने. 1991 राजीव गांधी की मृत्यु के बाद, अमेठी सीट 1998 तक कांग्रेस फिर बीजेपी के पास रही. हालांकि, वर्ष 1999 में सोनिया गांधी ने और फिर वर्ष 2004 में राहुल गांधी ने अमेठी सीट से ही अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की.
2019 में अमेठी हार गए राहुल गांधी
सोनिया गांधी ने इसके बाद रायबरेली को अपना गढ़ बनाया और अमेठी को राहुल गांधी के हवाले कर दिया. वर्ष 2004 से लेकर वर्ष 2019 यानी लगातार चार बार रायबरेली सीट से सोनिया ही लोकसभा सदस्य बनती रहीं. वहीं, राहुल गांधी वर्ष 2004 से लेकर वर्ष 2014 तक यानी लगातार तीन बार अमेठी सीट से जीते. हालांकि वर्ष 2019 में यानी पिछले चुनाव में स्मृति ईरानी ने अमेठी सीट पर राहुल गांधी को करारी शिकस्त दी. राहुल गांधी दूसरी चुनावी सीट वायनाड से जीत गए थे, इसीलिए लोकसभा पहुंच गए.
देखा जाए तो अब ऐसा लग रहा है कि वर्ष 1977 के बाद अब 2024 में आजाद भारत में दूसरी मौका होगा, जब नेहरू-गांधी परिवार का शायद कोई भी सदस्य उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व ना कर पाए. हालांकि, आपका ये जानना भी जरूरी है कि इस समय नेहरू-गांधी परिवार के दो सदस्य उत्तर प्रदेश से ही लोक सभा सदस्य हैं. ये दो लोग हैं मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी. ये अलग बात है कि ये दोनों ही लोग बीजेपी के टिकट पर लोकसभा में पहुंचे हैं.
आने वाले चुनाव में यूपी में कांग्रेस के गांधी परिवार की जो स्थिति बनने की आशंका है, वो हालात वर्ष 1977 में तब बने थे, जब देश पर इंदिरा गांधी के शासन में आपातकाल लगाया गया था लेकिन आज की कांग्रेस के राजनीतिक हालत, आपातकाल के बाद वाली कांग्रेस से भी खराब हैं.
विधानसभा चुनावों में भी बुरा हाल
वर्ष 1977 के चुनाव में आपातकाल के बावजूद कांग्रेस पार्टी को लोकसभा में 154 सीटें मिली थीं लेकिन 2014 में कांग्रेस सिर्फ 44 और 2019 में महज 52 सीटें ही जीत पाई. यही नहीं वर्ष 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी 403 में से महज 2 सीटें ही जीत पाई है. कांग्रेस पार्टी तो अपने गढ़ रायबरेली और अमेठी में पड़ने वाली 10 विधान सभा सीटों को भी नहीं बचा पाई. यूपी विधानसभा चुनावों में तो कांग्रेस के हालात इतने ख़राब थे कि रायबरेली की 6 में से 3 सीटों पर जमानत जब्त हो गई थी.
आपको जानकर हैरानी होगी कि यूपी से कांग्रेस का सफाया होना लगभग तय है. पिछले विधानसभा चुनाव का उदाहरण लें तो कांग्रेस ने यूपी की 403 सीटों में से 399 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें से 387 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. यानी यूपी की करीब 97 प्रतिशत सीटों पर जनता ने कांग्रेस को नकार दिया था. शायद ये एक बड़ा कारण हो सकता है, जिसकी वजह से कांग्रेस को लगने लगा हो, कि रायबरेली से सोनिया गांधी का चुनाव लड़ना, भूल साबित होगा. इसीलिए कांग्रेस ने दूरदर्शिता दिखाते हुए सोनिया को लोकसभा की सक्रिय राजनीति से सम्मानजनक विदाई दी है.
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