दिल्ली के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने लगे हैं. अब तक के रुझानों और नतीजों से दिल्ली में बदलाव के आसार दिख रहे हैं. भाजपा ने रुझानों में शुरुआत से ही बढ़त बना ली और वो बहुमत के आंकड़े से आगे निकलती दिख रही है. यदि ये रुझान नतीजों में तब्दील होते हैं तो 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में बीजेपी की वापसी हो सकती है.
दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले तक बदलाव के आसार कम दिख रहे थे. भाजपा के पास अरविंद केजरीवाल के मुकाबले का कोई चेहरा नहीं था. लेकिन जैसे-जैसे चुनाव प्रचार आगे बढ़ा, माहौल बदलता गया और भाजपा रेस में आगे बढ़ती गई. भाजपा की इस सफलता के कई कारण हैं, जिनमें शराब घोटाले के चलते आप की बदनामी और पीएम मोदी के वादों पर लोगों का भरोसा शामिल हैं.
शराब घोटाला
शराब नीति घोटाला मामला आप के गले की हड्डी बन गया है. इसके चलते पार्टी के कई बड़े नेताओं को जेल तक जाना पड़ा. इस मामले में भ्रष्टाचार हुआ या नहीं, इसका फैसला अदालत करेगी, लेकिन दिल्ली के लोगों को ये रास नहीं आया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाकर बनी पार्टी आज खुद उन्हीं आरोपों में उलझी हुई है.
पीएम मोदी पर भरोसा
दिल्ली में भाजपा के पास अरविंद केजरीवाल से मुकाबला करने वाला चेहरा नहीं है. यही कारण है कि पार्टी ने यहां किसी को अपना सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं किया. चुनाव प्रचार के बीच में जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद मोर्चा संभाला, उससे माहौल बदल गया. लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट देने वाले हर चार में से एक वोटर ही अब तक विधानसभा चुनाव में पार्टी को वोट देता था. पीएम मोदी ने अपनी रैलियों में दिल्ली की जनता की सेवा करने का अवसर मांगा, जिससे इसमें बदलाव आया. वोटर्स ने मोदी की बातों पर भरोसा किया और भाजपा के पक्ष में मतदान किया.
मुस्लिम इलाकों में सेंधमारी
इन चुनावों में सबसे रोचक रुझान मुसलमान-बहुल इलाकों जैसे मुस्तफाबाद, ओखला, सीलमपुर आदि से देखने को मिल रहे हैं. इनमें से अधिकांश सीटों पर भाजपा ने शुरुआत से ही बढ़त बना रखी है. सीलमपुर जैसी सीट, जहां भाजपा कभी नहीं जीती, वहां भी आप का उम्मीजदवार पीछे चल रहा है. स्पष्ट है कि इन सीटों पर मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ है. मुसलमानों ने आप और कांग्रेस के साथ असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के पक्ष में भी मतदान किया जिसका फायदा भाजपा को मिलता दिख रहा है.
आप-विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण
शुरुआती ट्रेंड्स के मुताबिक कांग्रेस को इस चुनाव में करीब 6 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं. दूसरी ओर, भाजपा के वोटों का आंकड़ा 50 प्रतिशत के करीब रह सकता है. इससे साफ है कि भाजपा, आप-विरोधी वोटों को अपने पक्ष में गोलबंद करने में सफल रही. इसका दूसरा मतलब यह भी है कि आप के विकल्प के रूप में दिल्ली के लोगों को कांग्रेस स्वीकार नहीं है.
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एंटी इनकंबेंसी
भाजपा की जीत का शायद सबसे बड़ा कारण आप के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है. 2013 से दिल्ली में आप की सरकार थी. अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने मुफ्त बिजली, मोहल्ला क्लीनिक, स्कूलों में सुधार आदि के जरिए लोगों का समर्थन हासिल किया और पिछले दो चुनावों में अपने दम पर बहुमत हासिल किया, लेकिन समय के साथ इनका असर कमजोर पड़ने लगा. बीते पांच साल में पार्टी कुछ नया सामने नहीं ला सकी और धीरे-धीरे एंटी इनकंबेंसी फैक्टर जोर पकड़ने लगा. इसका नतीजा शनिवार को नतीजों के रूप में देखने को मिल रहा है.
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