दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान के बाद अब नतीजों का इंतजार है. शनिवार यानी 8 फरवरी को वोटों की गिनती के साथ यह तय हो जाएगा कि दिल्ली पर किसका राज होगा. एग्जिट पोल्स में आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर लेकिन भाजपा को बढ़त का अनुमान जताया गया है. भाजपा चाहेगी कि एग्जिट पोल्स के नतीजे सही साबित हों और दिल्ली में उसका वनवास खत्म हो. ऐसा वनवास जो प्याज की वजह से शुरू हुआ था और 27 साल बीतने के बाद भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है.
वह 1998 का साल था. दिल्ली में भाजपा की सरकार थी, लेकिन विधानसभा चुनाव सर पर थे. तभी अचानक प्याज की कीमतों में उछाल आया. तब 4-5 रुपए प्रति किलो बिकने वाले प्याज की कीमत 50 रुपए से भी ज्यादा पहुंच गई. प्याज की कीमतों को लेकर कांग्रेस ने माहौल बनाना शुरू किया तो भाजपा ने मुख्यमंत्री बदलने का फैसला किया. साहेब सिंह वर्मा की जगह सुषमा स्वराज को सीएम बनाया गया.
काम नहीं आया सीएम बदलने का नुस्खा
सुषमा पांच साल के अंदर भाजपा की तीसरी मुख्यमंत्री बनीं. कुछ सप्ताह बाद विधानसभा चुनावों का ऐलान हो गया. प्रचार के दौरान कांग्रेस ने प्याज की कीमतों को बड़ा मुद्दा बनाया. नतीजा ये हुआ कि 1993 के चुनावों में 49 सीटें जीतने वाली भाजपा लुढ़ककर 15 पर पहुंच गई. वहीं, पिछली बार 14 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस ने 52 सीटें जीत लीं. इसी के बाद दिल्ली में शीला दीक्षित युग की शुरुआत हुई. वे 2013 तक लगातार मुख्यमंत्री रहीं. 2013 के चुनाव में शीला दीक्षित खुद तो चुनाव हारीं ही, आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को भी सत्ता से बाहर कर दिया.
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प्याज से हारी भाजपा
बहरहाल, चर्चा भाजपा के प्याज के आंसुओं की. प्याज की कीमतें जब बढ़नी शुरू हुईं तो व्यापारियों ने जमाखोरी शुरू कर दी. मार्केट में प्याज की कमी का माहौल बन गया. नतीजा ये हुआ कि कीमतें कम होने की बजाय बढ़ती ही चली गईं. सुषमा स्वराज ने पद संभालते ही प्याज की कीमतें नियंत्रित करने की भरसक कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुईं. उनके पास समय भी कम था. वे 52 दिनों तक ही मुख्यमंत्री रहीं. इधर, जब चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने एक-दूसरे को प्याज की माला पहनाकर जीत का जश्न मनाया. नतीजों के अगले दिन हर अखबार में ये तस्वीरें छपीं.
महंगाई से परेशान लोग
1998 के आसपास का वो ऐसा दौर था जब खाने-पीने की कई चीजों के दाम बढ़ने लगे थे. लोग महंगाई से परेशान थे. दाम जितने बढ़ते थे, उससे ज्यादा अफवाहें फैलती थीं. कभी अचानक अफवाह फैलती कि नमक की कीमतें बढ़ने वाली हैं. देखते ही देखते नमक खरीदने की होड़ लग जाती. 2, 4, 10, 15 किलो...जितना संभव था, लोग दुकानों से नमक खरीदना शुरू कर देते. इसका सारा गुस्सा भाजपा को 1998 के दिल्ली चुनाव में झेलना पड़ा. लोगों के गुस्से की वजह भी थी- दिल्ली के साथ केंद्र में भी भाजपा की सरकार थी. सुषमा स्वराज इस गुस्से की जद में आ गईं. शीला दीक्षित, जो उस समय दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष थीं, को इसका फायदा मिला. 15 साल तक कांग्रेस की सरकार रहने के बाद आम आदमी पार्टी सत्ता में आई. भाजपा तब से इंतजार ही कर रही है.
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लोकसभा चुनाव में अलग माजरा
ताज्जुब की बात है कि भाजपा को लोकसभा चुनाव में दिल्ली के लोग दिल खोलकर वोट देते हैं. 2024 में भी दिल्ली की सभी सातों सीटें भाजपा ने ही जीती थीं. वही लोग विधानसभा चुनाव में भाजपा को अपना वोट नहीं देते. इसका साफ मतलब है कि दिल्ली की सत्ता के लिए वे भाजपा के स्थानीय नेताओं के मुकाबले अरविंद केजरीवाल को बेहतर मानते हैं. एग्जिट पोल ने इशारा किया है कि इस बार लोगों की पसंद बदल सकती है. यदि ऐसा हुआ तो भाजपा को शायद प्याज के आंसुओं से निजात मिले.
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दिल्ली में 27 साल से 'प्याज के आंसू' रो रही भाजपा, एग्जिट पोल ने वनवास खत्म होने की जगाई उम्मीद