डीएनए हिंदी: आज पूरे विश्व की निगाहें ज़मीन के उस टुकड़े पर है, जो इजरायल और फिलिस्तीन के बीच छिड़े भयंकर युद्ध के लिए ज़िम्मेदार है. चारों तरफ से युद्ध पर चिंता प्रकट की जा रही है और देश अपनी-अपनी सुविधा और कूटनीति के हिसाब से अलग-अलग पक्ष के साथ खड़े हैं. इन दोनों देशों के बीच विवाद का इतिहास मूल रूप से दो देशों का न होकर दो मज़हबों का है. हालांकि, इस्लाम के अस्तित्व में आने से करीब 2000 साल पहले यहूदी धर्म अस्तित्व में आ गया था, उससे भी अधिक हैरानी की बात ये है कि ये दोनों मज़हब ही अब्राहम को पूज्यनीय मानते हैं. उन्हीं के परिवार से आगे कई पीढ़ियां चलकर यहूदी धर्म का जन्म हुआ. इस्लाम में भी इनको पूजनीय माना गया है. इसके अलावा इस्लाम को मानने वाले जो आज काबा की दिशा में नमाज़ पढ़ते हैं, जाना से पहले जेरुसलम की दिशा में ही नमाज़ पढ़ते थे. हज़रत मूसा जो साल 1000 ईसापूर्व के आसपास थे उनका भी दोनों ही धर्म सम्मान करते हैं. इन सब समानताओं के बावजूद आज जेरूसलम हिंसा का एक बड़ा कारण बना है.

विश्व के अलग-अलग धर्मों की अगर बात की जाए तो धर्म के लिए सबसे उपजाऊ ज़मीन या तो भारत रहा है या फिर मध्य एशिया. इसी मध्य एशिया में शुरुआत हुई सबसे नए धर्म बहाई की. बहाई धर्म की जड़ें ईरान में हैं, ये दुनिया का सबसे नया धर्म है. इसकी स्थापना बहाउल्लाह ने साल 1863 में ईरान में की थी. आज विश्व में करीब 80 लाख लोग इस धर्म को मानते हैं. एकेश्वरवाद में यक़ीन करने वाले इस धर्म के लोग बहाउल्लाह को भगवान् बुद्ध ,भगवान कृष्ण, ईसा, मूसा आदि की वापसी ही मानते हैं. उनकी धार्मिक किताब 'किताब-ए-अक़दस' बहाइयों का मुख्य धार्मिक ग्रंथ है.

बहाई धर्म का पूजा स्थल है लोटस टेंपल
भारत में भी इस धर्म को मानने वाले लाखों लोग रहते हैं. दिल्ली का लोटस टेम्पल वैसे तो भारत में एक पर्यटन केंद्र के रूप में जाना जाता है लेकिन कम ही लोगों को मालूम होगा कि ये दरअसल बहाई धर्म का पूजा स्थल है. बहाई धर्म के नियमों के मुताबिक, किसी और धर्म के व्यक्ति से चंदा, दान या दक्षिणा लेना प्रतिबंधित है. किसी भी बहाई पूजा स्थल या कोई दूसरी धार्मिक या अन्य ईमारत के निर्माण के लिए केवल बहाई लोगों से ही सहयोग लिया जा सकता है. बहाई धर्म के किसी भी व्यक्ति को राजनीति में आने की भी इजाजत नहीं है इसलिए इस धर्म का कोई भी व्यक्ति कभी भी चुनाव नहीं लड़ सकता. बहाई लोगों को फिल्मों या इससे जुड़े किसी दूसरे धंधे में आने के लिए भी प्रोत्साहित नहीं किया जाता.

बहाई समुदाय में पूजा पद्धति का भी कोई नियम नहीं है. साथ ही, मंदिर जाने के लिए भी कोई निर्धारित नियम नहीं बनाए गए हैं. इसलिए बहाई समुदाय का मंदिर फिलहाल केवल एक महाद्वीप में एक ही है. बहाई धर्म को बनाने वाले बहाउल्लाह का कहना था कि अपनी मातृभाषा के अलावा पूरे विश्व की भी एक सर्वमान्य भाषा होनी चाहिए जिससे मानवता को एक दूसरे को समझने में और आसानी होगी अपने जीवन के 40 साल जेल में बिताने के बावजूद बहाउल्लाह ने एक ऐसे धर्म की स्थापना की जिसके अनुयाई आज दुनिया के हर कोने में हैं. 

दिल्ली स्थित बहाई मंदिर यानी लोटस टेंपल का निर्माण साल 1985 में किया गया था. इसके निर्माण में उपयोग किया गया सफेद पत्थर को ग्रीस से पहले इटली भेजा गया. वहां से तराशी के बाद हर पत्थर को एक नंबर दिया गया और फिर उसी नंबर के हिसाब से इन पत्थरों को मंदिर में लगाया गया था. विश्व के सभी धर्म प्रेम और सद्भावना का संदेश देते हैं लेकिन उन धर्मों को मानने वाले उन्हीं धर्मों के नाम पर हिंसा फैलाते हैं. आज पूरे विश्व को ये सोचने कि ज़रूरत है कि मानवता से धर्म है धर्म से मानवता नहीं है. आज श्रम से अधिक मानवता कूप बचाने की ज़रूरत है.

नोट: यह लेख वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र सिंह श्योराण ने लिखा है. लेख में व्यक्ति विचार उनके निजी विचार हैं. 

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OPINION: मजहबों का संघर्ष और बहाई धर्म का विकास
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