डीएनए हिंदी: अब सिर्फ 45 घंटे बचे हैं और अगर सब कुछ तय मुताबिक रहा तो भारत इतिहास रचने में कामयाब हो जाएग. ISRO के वैज्ञानिकों का चंद्रयान-3, अभी तक अपने रास्ते पर ही है। वो धीरे धीरे अपने सभी चरणों को पूरा करता हुआ, चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ रहा है. देर रात करीब 2 बजे चंद्रयान-3 का दूसरा De-boosting चरण पूरा हो गया था. अब इस वक्त चंद्रयान-3, चंद्रमा के सबसे करीब चक्कर लगा रहा है. डीबूस्टिंग की मदद से चंद्रयान-3 की रफ्तार को कम किया जाता है. फिलहाल चंद्रयान-3 का लैंडर विक्रम चंद्रमा के सतह से, निकटतम दूरी 25 किलोमीटर और अधिकतम दूरी 134 किलोमीटर पर है. डीएनए शो में खास तौर पर इस पर विस्तार से चर्चा की गई कि चांद पर लैंडिंग इतनी जटिल क्यों होती है.

बुधवावर को होगी चंद्रयान-3 की लैंडिंग

चंद्रयान-3 अब 23 अगस्त को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा. शाम 5 बजकर 45 मिनट के बाद से ही, उसकी Fine Breaking प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. यानी चंद्रयान-3 के आखिरी चंद वो मिनट होंगे, जिसमें चंद्रयान-3 को Thrusters की मदद से रफ्तार कम करते हुए Soft Landing करवाई जाएगी. Soft Landing के लिए isro के वैज्ञानिक सूर्योदय का इंतजार कर रहे हैँ। चंद्रमा पर सूरज की रोशनी आते ही चंद्रयान-3 की Soft Landing प्रक्रिया शुरू की जाएगी.

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क्या आपको मालूम है कि चंद्रमा के ऑर्बिट में कोई और भी था, जो चंद्रयान-3 के स्वागत के लिए पहले से ही मौजूद था? 'कोई' से हमारा मतलब Alien से नहीं है। चंद्रयान-3 जब चंद्रमा के Lower Orbit में पहुंचा तो वहां पर चंद्रयान-2 का Orbiter मौजूद था.

इसरो के लिए ये खुशी का मौका था कि चंद्रयान-2 के Orbiter और चंद्रयान-3 के Lander विक्रम का कम्युनिकेशन कनेक्शन बन गया. दोनों के बीच में संपर्क हुआ, चंद्रयान-2 ने चंद्रयान 3 का स्वागत किया. चंद्रयान-2 ने चंद्रयान-3 से कहा- WELCOME BUDDY...यानी 'स्वागत है दोस्त' ये संपर्क एक दो-तरफा कम्यूनिकेशन था, जिसका मकसद चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर की स्थिति का पता लगाना और चंद्रयान-3 से संपर्क बनाकर ये बताना, कि मिशन सही रास्ते पर है. हालांकि यहां हम आपको बता दें कि चंद्रयान-3 से ISRO CENTRE तक होने वाला संपर्क, Propulsion Module के जरिए ही किया जा रहा है, जो चंद्रमा के Orbit में चक्कर लगा रहा है.

चंद्रयान-3 का लैंडर विक्रम अब चंद्रमा के सबसे करीब चक्कर लगा रहा है. उसने अपने कैमरों से चांद की शानदार तस्वीरें भेजी हैं। हम आपको उससे मिल रही तस्वीरों को dna में दिखाते रहे हैं. इस बार उसने चंद्रमा के अनदेखे इलाकों की तस्वीरें भेजी हैं. विज्ञान के छात्र या ऐसे दर्शक, जिन्हें अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि है, वो जानते होंगे कि पृथ्वी से पूरे चंद्रमा को देखना नामुमकिन है. हम चंद्रमा का सिर्फ वही हिस्सा देख पाते हैं, जो पृथ्वी की तरफ होता है. जिस हिस्से को पृथ्वी पर रहने वाले लोग नहीं देख पाते हैं, उसे चंद्रमा का Far Side Of The Moon कहा जाता है.

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चंद्रयान 3 ने भेजी अनदेखी तस्वीरें

चंद्रयान-3 ने अपने कैमरे से इसी हिस्से की तस्वीरें भेजी हैं. चंद्रयान-3 से आई तस्वीरों में इस हिस्से के क्रेटर्स भी दिखाई दे रहे हैं. चंद्रयान-3 के Lander विक्रम ने जो तस्वीरें भेजी हैं, वो Lander Hazard Detection & Avoidance Camera यानी LHDAC से भेजी गई हैं.  LH-DAC वो कैमरा है, जो Lander विक्रम की Soft Landing सुनिश्चित करेगा। इस कैमरे की मदद से Soft Landing की सबसे अच्छी जगह का चुनाव किया जाएगा. यानी Landing की एक ऐसी जगह चुनी जाएगी,जहां गड्ढे या बड़े पत्थर वगैरह ना हों.

राजीव चंद्रशेखर ने इस बारे में कहा, चंद्रमा हमारे लिए हमेशा से ही एक रहस्य रहा है चंद्रमा का अपना कोई वायुमंडल नहीं है और वहां का गुरुत्वाकर्षण भी, पृथ्वी के मुकाबले काफी कम होता है। दिन में चंद्रमा का तापमान 127 डिग्री सेल्सिलयस तक और रात में तापमान माइनस 130 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है.
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यही नहीं, चंद्रमा के दोनों ध्रुवों पर तापमान माइनस 250 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. चंद्रमा को लेकर 100 से ज्यादा मिशन लॉन्च किए जा चुके हैं। लेकिन पिछले 50 वर्षों में चीन के अलावा कोई भी देश, वहां Soft Landing नहीं कर पाया है.

अभी तक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कोई भी देश Soft Landing नहीं कर पाया है। चंद्रमा पर Soft Landing की रेस में अभी तक अमेरिका, चीन और रूस ही रहे हैं. लेकिन दक्षिणी ध्रुव को लेकर इन देशों ने कभी कोई विचार नहीं किया था. इस बार रूस ने जरूर luna-25 के जरिए कोशिश की जो कि नाकामयाब हो गई.

भारत के चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई को चंद्रमा के लिए उड़ान भरी थी,  और वो 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतरने की कोशिश करेगा. लेकिन दक्षिण ध्रुव पर Soft Landing करने की रेस में रूस ने भारत से पहले जाने की कोशिश की थी। रूस ने इसी महीने 11 अगस्त को Luna-25 नाम से Moon Mission launch किया था। जो चांद के Orbit से होते हुए चांद के दक्षिणी ध्रुव पर Land करने जा रहा था. यानी रूस का अंतरिक्ष यान, भारत के कई दिन बाद Launch किया गया था, और 21 अगस्त को उसे चांद पर Land करना था। लेकिन रूस इस रेस में फिलहाल पीछे रह गया क्योंकि Luna-25 Mission Fail हो गया.

अब भारत का चंद्रयान-3, 23 अगस्त को Soft Landing की कोशिश करने वाला है. अगर भारत कामयाब हो जाता है, तो वो दुनिया का पहला देश बन जाएगा, जिसने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर Soft Landing की. इस सफलता के बाद भारत की अंतरिक्ष एजेंसी isro, रूस के मुकाबले काफी आगे हो जाएगी.

अब सवाल ये है कि आखिर चांद पर Soft Landing करना इतना चुनौतीपूर्ण क्यों हैं?
- चंद्रमा पर सबसे पहली सॉफ्ट लैंडिंग वर्ष 1966 में ही कर ली गई थी और ये Soft Landing रूस के Luna-9 अंतरिक्ष यान ने की थी.
- इसके एक महीने बाद अमेरिका ने भी चंद्रमा पर Soft Landing की थी. ये सॉफ्ट लैंडिंग अमेरिका के 'Surveyor-1' (सर्वेयर-1) ने की थी.

-यही नहीं अमेरिका ने तो वर्ष 1969 (उन्नीस सौ उनहत्तर) में चंद्रमा पर इंसान पहुंचा दिए थे। Apollo-11 मिशन में ही Neil Armstrong और Buzz Aldrin गए थे.

- आखिरी बार चंद्रमा पर किसी इंसान ने वर्ष 1972 में कदम रखा था, इस बार भी अमेरिका ने ही अपने Apollo-17 मिशन के जरिए इंसानों को चंद्रमा पर भेजा था.

- वर्ष 1969  (उन्नीस सौ उनहत्तर) से 1972 तक यानी 3 वर्षों में अमेरिका के 12 अंतरिक्ष यात्रियों ने चांद पर कदम रखा था.

- सोवियत यूनियन की चांद पर आखिरी Soft Landing वर्ष 1976 में luna-24 के जरिए हुई थी.

- वर्ष 1966 से 1976 के बीच में सोवियत यूनियन ने चंद्रमा पर 10 सफल Soft Landing की थी। बावजूद इसके Luna-25, चांद पर उतरने में नाकामयाब हो गया। मतलब ये है कि चंद्रमा पर Soft Landing की वो तकनीक जिसे सोवियत यूनियन, 50 वर्ष पहले से जानता है, उसके लिए भी चंद्रमा पर Soft Landing कराना चुनौतीपूर्ण है.

पिछले 10 वर्षों में दुनिया के 4 देश चंद्रमा पर Soft Landing कराने में असफल रहे हैं.

इसमें से एक भारत है, जिसका चंद्रयान-2 मिशन, वर्ष 2019 में फेल हो गया था.
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इसमें दूसरा नाम रूस का है जिसका LUNA-25 1 दिन पहले ही चंद्रमा पर Crash हो गया था.
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तीसरा नाम इजरायल का है, जिसने वर्ष 2019 में Bere-sheet (बेरे शीट) अंतरिक्ष यान के जरिए चंद्रमा पर उतरने की नाकाम कोशिश की.
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चौथा नाम जापान का है, जिसका Hakuto (हकूतो) अंतरिक्ष यान, इसी वर्ष अप्रैल में चांद पर Crash हो गया था.

ये विफलताएं बताती हैं कि अभी भी दुनियाभर की अंतरिक्ष एजेंसियों के लिए चांद पर Soft Landing करवाना एक चुनौती है। मतलब ये है कि चांद पर उतरना उतना भी आसान नहीं है, जितना एक सामान्य इंसान समझता है.

वर्ष 1976 में luna-24 की Soft Landing के बाद 37 वर्षों तक चंद्रमा पर कोई सफल Landing नहीं हुई।

वर्ष 1976 के बाद वर्ष 2013 में चीन का chang-3 अंतरिक्ष यान, चांद पर Soft Landing में कामयाब रहा था।

इसके साथ ही चीन, दुनिया का तीसरा देश बन गया था, जिसने चंद्रमा पर Soft Landing की थी।

देखा जाए तो वर्ष 1976 के बाद से चीन ही अकेला वो देश है, जो सफल Landing कर पाया है।

वर्ष 2013 में चीन का chang-3, 2019 में chang-4, और 2020 में chang-5 भी चांद पर Soft Landing करने में कामयाब रहे हैं।

सवाल अब भी वही है कि चांद पर Soft Landing करवाना इतना चुनौतीपूर्ण क्यों है। क्या ये मान लिया जाए कि वर्ष 1970 के दशक में चांद पर उतरना आसान था और आज के High Tech  उपकरणों के बावजूद, चांद पर उतरना इतना मुश्किल है? तो इस सवाल का जवाब हमें, सत्तर के दशक में चलाए जा रहे Moon Mission के मकसद को समझकर मिलेगा।
 
मून मिशन थी अमेरिका और रूस के बीत प्रतिद्वंद्विता की वजह
उस दौरान शीत युद्ध अपने चरम पर था और Moon Mission का मुख्य मकसद, अंतरिक्ष में अपना शक्ति प्रदर्शन करना था। ये Moon Mission काफी महंगे हुआ करते थे, और ये तकनीकी रूप से भी ज्यादा सुरक्षित और सटीक नहीं माने जाते थे। मतलब ये है कि जिन mission को चांद पर भेजा जाता था, उनके पहुंचने की कोई गारंटी नहीं होती थी. ये हिट एंड ट्रायल तरीके पर चलते थे. इनमें कुछ असफल हुए, तो कुछ को अप्रत्याशित सफलताएं मिलीं.
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कई मून मिशन रहे फेल 
वर्ष 1963 से 1976 के बीच चंद्रमा पर उतरने की 42 कोशिशें हुईं, जिसमें सिर्फ 21 सफल रहीं, यानी 50 प्रतिशत कोशिशें असफल रहीं. इन सफल मिशन में से 6 ऐसे थे, जिनमें इंसान भी थे. अब इसे किस्मत कहिए या कुछ और, लेकिन जितने भी मैन्ड मून मिशन भेजे गए वो सारे ही चंद्रमा तक पहुंचने में कामयाब रहे. केवल अमेरिका का एक मैन मून मिशन Appolo 1 fail हो गया था, हालांकि इसका Rocket Take Off ही नहीं कर पाया था. इसमें 3 अंतरिक्ष यात्रियों की मृत्यु हो गई थी. 

सोवियत यूनियन ने इस दौरान 28 बार चंद्रमा पर Soft Landing की कोशिश की। लेकिन इनमें से सिर्फ 10 मिशन ही कामयाब रहे। इससे साफ है कि शीत युद्ध के दौरान भले ही Soft Landing हुई, लेकिन इनमें से आधे Mission, Fail भी रहे। देखा जाए तो शीतयुद्ध के दौरान इन देशों ने 50 प्रतिशत असफल होने की संभावनाओं के बीच, चांद पर पहुंचने का जुआ खेला था।

आज के समय में कोई भी अंतरिक्ष एजेंसी ऐसा नहीं करना चाहेगी. वो चांद तक पहुंचने का पूरा प्लान बनाकर ही, चांद तक जाने की कोशिश करेगी. इसी वजह से चांद तक पहुंचने के लिए Space Agencies ने अपनी टेक्निक भी बदली है.

जिन चार देशों को पिछले 10 वर्षों में चांद तक पहुंचने में असफलता मिली है, उसमें सिर्फ भारत ही ऐसा है, जिसने पहली विफलता के बाद, अगले 4 साल में ही दूसरा Moon Mission Launch कर दिया। ये isro का दृढ़ संकल्प भी दिखाता है।
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वर्ष 2009 में भारत के चंद्रयान-1 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की मौजूदगी की तस्वीरें भेजी थीं. उसके बाद से ही अन्य देशों में दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने की रुचि बढ़ी है. अगर भारत दक्षिणी ध्रुव पर Soft Landing करने वाला पहला देश बन जाता है, तो इस क्षेत्र पर भारत का दावा मजबूत होगा.

भारत में हर ओर हो रही है दुआ 
चंद्रयान-3 पर पूरे देश की नजर है. हर व्यक्ति इसकी सफलता की कामना कर रहा है। देश का हर नागरिक इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनना चाहता है। चंद्रयान-2 की असफलता ने पूरे देश को निराश किया था, लेकिन ISRO के वैज्ञानिकों के दृढ निश्चय ने देशवासियों को एक बार फिर गौरवान्वित होने का मौका दिया है. चंद्रयान-3 की सफलता के लिए पूरे देश में हवन पूजन चल रहा है. आगरा में चंद्रयान-3 की सफल landing के लिए विशेष हवन आयोजित किया गया । इसमें लोगों ने चंद्रयान-3 के लिए ईश्वर से आशीर्वाद मांगा कि वो आराम से चंद्रमा की सतह पर उतर सके. इसी तरह से शिरडी में भी साईं बाबा से चंद्रयान-3 की सफलता का आशीर्वाद मांगा गया। चंद्रयान-3 को लेकर हो रहे ये हवन-पूजन बताते हैं, कि इसको लेकर लोगों में कितना क्रेज है। तो आप भी तैयार हो जाइए, 23 अगस्त को चंद्रयान-3 की Soft Landing के  LIVE TELECAST के लिए, जो शाम 5 बजकर 20 मिनट से शुरू हो जाएगा.

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DNA Show: चांद पर रूस ही नहीं अमेरिका का मिशन भी रहा फेल, जानें पूरा इतिहास
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DNA Show: चांद पर रूस ही नहीं अमेरिका का मिशन भी रहा फेल, जानें पूरा इतिहास

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