डीएनए हिंदी: राज्यसभा ने मंगलवार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियों व उनकी सेवा शर्तों को विनियमित करने के लिए एक विधेयक पारित किया, जिसका विरोध करते हुए विपक्ष ने उच्च सदन से वॉकआउट किया. राज्यसभा ने मंगलवार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति और सेवा शर्तों को विनियमित करने के लिए एक विधेयक पारित किया, जिसमें उनके आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए उनके दर्जे को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के बराबर बनाए रखने, चयन समिति का उन्नयन करने और उन्हें अदालती मामलों से बचाने के लिए एक नया प्रावधान जोड़ने जैसे महत्वपूर्ण संशोधन शामिल हैं.
विधेयक ध्वनिमत से पारित हो गया जबकि विपक्षी सदस्यों ने आरोप लगाया कि प्रस्तावित विधेयक चुनाव प्राधिकार को कार्यपालिका के अधीन करता है और संविधान का उल्लंघन करता है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह सीईसी और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पर उच्चतम न्यायालय के आदेश को दरकिनार करने का प्रयास है और मंत्री के जवाब पर नाखुशी जाहिर करते हुए सदन से वॉकआउट किया. इस साल अगस्त में जब उच्च सदन में विधेयक पेश किया गया था तो विपक्षी दलों और कुछ पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्तों ने निर्वाचन आयोग के सदस्यों की तुलना कैबिनेट सचिव से किए जाने पर आपत्ति जताई थी.
उन्होंने दावा किया था कि इस कदम से संस्थान की स्वतंत्रता से समझौता होगा. वर्तमान में सीईसी और निर्वाचन आयुक्तों को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश का दर्जा प्राप्त है. संशोधन लाकर सरकार ने उस दर्जे को बरकरार रखा है. बहस का जवाब देते हुए कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि चयन समिति के ढांचे में सुधार के लिए कुछ संशोधन लाए गए हैं, जिसे पहले कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में प्रस्तावित किया गया था. उन्होंने कहा कि इसके बजाय यह कानून मंत्री की अध्यक्षता में होगा जिसमें दो केंद्रीय सचिव सदस्य होंगे.
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सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर मिलेगा वेतन
मेघवाल ने कहा कि उनके द्वारा पेश किए गए एक अन्य संशोधन के तहत सीईसी और अन्य आयुक्तों को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के बराबर वेतन का भुगतान किया जाएगा. विधेयक में पहले प्रस्ताव किया गया था कि सीईसी और निर्वाचन आयुक्तों का वेतन कैबिनेट सचिव के वेतन के बराबर होगा. कानून मंत्री ने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के खिलाफ अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए की गई कार्रवाई के लिए कानूनी कार्यवाही शुरू करने से संरक्षण से संबंधित एक नया प्रावधान भी संशोधनों के माध्यम से पेश किया गया है. तेलंगाना उच्च न्यायालय ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार और कई अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पुलिस को दिए गए ‘निर्देश’ के सिलसिले में एक विशेष सत्र न्यायाधीश को निलंबित कर दिया था.
कानून मंत्री ने विपक्ष के आरोपों का किया खंडन
मेघवाल ने विपक्ष के इन आरोपों का भी खंडन किया कि यह विधेयक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियों से संबंधित उच्चतम न्यायालय के एक फैसले को दरकिनार करने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा कि यह विधेयक जो हम लाए हैं वह उच्चतम न्यायालय के खिलाफ नहीं है. इसे उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार लाया गया है. यह अनुच्छेद 324 (2) के तहत सूचीबद्ध प्रावधानों के अनुसार है. यह संविधान के अनुच्छेद 50 के तहत सूचीबद्ध शक्तियों के पृथक्करण का भी अनुसरण करता है.
विपक्ष ने जताया विरोध
यह विधेयक तब लाया गया था जब मार्च में उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति इन आयुक्तों की नियुक्ति पर संसद द्वारा कानून बनाए जाने तक सीईसी और चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी. विधेयक के अनुसार, प्रधानमंत्री चयन समिति के प्रमुख होंगे जबकि लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री अन्य दो सदस्य होंगे. बहस के दौरान कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि प्रस्तावित कानून संविधान की मूल भावना को पूरी तरह नकारता है और उसका उल्लंघन करता है. उन्होंने आरोप लगाया, ‘यह निर्वाचन आयोग को पूरी तरह नकारता है और कार्यपालिका के अधिकार के अधीन करता है और यह स्वेच्छा से, दुर्भावनापूर्ण तरीके से उच्चतम न्यायालय के फैसले को खत्म करता है और यही कारण है कि यह कानून मृत बच्चे की तरह है.’ (इनपुट-भाषा)
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राज्यसभा में CEC-EC की नियुक्ति से जुड़ा बिल पारित, विपक्ष ने किया विरोध