डीएनए हिंदी: बिहार (Bihar) की राजनीति में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) पर एक बार फिर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच सबकुछ ठीक नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और अमित शाह (Amit Shah) दोनों से नीतीश कुमार खुश नहीं हैं. अटकलें लगाई जा रही हैं कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) के साथ भी नीतीश कुमार के रिश्ते सामान्य नहीं रहे हैं. ऐसे में यह भी आशंका जताई जा रही है कि बिहार में एक बार फिर एनडीए गठबंधन में दरार पड़ सकती है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह के इस्तीफे के बाद जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने दोनों पार्टियों के बीच तल्खियां और बढ़ा दी हैं. हिंदुस्तान आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड ने विधानमंडल की बैठक बुलाई है. इस बैठक की वजह से और तल्खियां बढ़ती नजर आ रही हैं. दावा किया जा रहा है कि नीतीश कुमार के तेवर बीजेपी के साथ नर्म नहीं पड़ने वाले हैं.
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कांग्रेस-नीतीश के बीच क्या पक रही है खिचड़ी?
कांग्रेस ने अपने विधायकों से कहा है कि आने वाले 3 दिनों तक सभी कांग्रेसी विधायक पटना में ही रहें. दावा किया जा रहा है कि सोनिया गांधी और नीतीश कुमार के बीच कई दौर की टेलीफोनिक वार्ता बीते कुछ दिनों में हुई है. बीजेपी से नाराजगी के बीच नीतीश कुमार और सोनिया गांधी के बीच हुई बातचीत ने बदलते सियासी समीकरणों को और हवा दे दी है. हालांकि जेडीयू की ओर से आधिकारिक तौर पर इस विषय में कुछ भी नहीं कहा गया है.
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क्या सिर्फ बीजेपी पर रणनीतिक दबाव बना रहे हैं नीतीश कुमार?
दावा यह भी किया जा रहा है कि नीतीश कुमार की बीजेपी पर दबाव बढ़ाने की यह रणनीति भर है. वह सिर्फ बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को संकेत देना चाहते हैं कि सूबे में अगर बीजेपी को सत्ता में बने रहना है तो नीतीश कुमार को खुश रखना है, नहीं तो दूसरे विकल्प हमेशा खुले हुए हैं. नीतीश कुमार विपक्ष के साथ जाने से भी परहेज नहीं करेंगे. ऐसा नीतीश कुमार पूर्व में भी कर चुके हैं.
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क्या एनडीए गठबंधन को छोड़कर जा पाएंगे नीतीश कुमार?
नीतीश कुमार को साल 2020 के चुनावी आंकड़े खटकते नजर आ रहे हैं. विधानसभा चुनाव में जेडीयू की परफॉर्मेंस बेहद खराब रही थी. जहां 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ अलगाव के बाद भी कुल 71 सीटें हासिल हो गईं थीं. वहीं अगर 2020 के आंकड़ों पर गौर करें तो सीटें 43 पर सिमट गईं थीं.
यह नीतीश मैजिक था या राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, इंडियन नेशनल लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) का महागठबंधन मैजिक, नीतीश कुमार सरकार बनाने में कामयाब हो गए थे. नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी की मौजूदगी खटक रही थी यही वजह थी कि वह एनडीए के साथ अलग हो गए थे. यूपीए का साथ ज्यादा दिन नहीं चला और उन्होंने आरजेडी से अपनी राहें अलग कर लीं. लेकिन 2020 के विधानसभा चुनावों में पुराने सहयोगी एनडीए के साथ जाने के बाद भी नीतीश कुमार का बड़ा घाटा हुआ. नीतीश कुमार की पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई.
अब क्या कर सकते हैं नीतीश कुमार?
नीतीश कुमार के साथ एनडीए से दूर जाना इतना आसान नहीं है. साल 2017 में जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन से किनारा किया था तो उन्होंने आरोप लगाया था कि आरजेडी के कई नेता भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं इसलिए वह इस पार्टी के साथ गठबंधन में नहीं बने रह सकते हैं. अब कांग्रेस के साथ नीतीश की नजदीकी अलग संकेत दे रही है. अगर सिर्फ कांग्रेस के 19 विधायकों के साथ नीतीश तो सरकार नहीं बना सकते हैं.
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दरअसल, बिहार में आरजेडी के विधायकों की संख्या सबसे ज्यादा है. आरजेडी के 79 विधायक हैं. बीजेपी के पास 77 सीटें हैं. जेडीयू के पास 43, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के पास 4, कांग्रेस 19, वाम दलों के पास 16 सीटें हैं. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के पास महज 1 विधायक बचा है. एक निर्दलीय विधायक भी है.
अकेले न तो बीजेपी में है दम, न ही JDU!
अगर नीतीश कुमार, एनडीए के साथ अपनी राहें अलग करते हैं तो उन्हें कम से कम 77 विधायकों की जरूरत पड़ेगी. भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने के लिए महज 45 विधायकों की. हालांकि अगर बीजेपी अलग गई तो यह तय है कि उसे विपक्ष में ही रहना है, जब तक कि महाराष्ट्र जैसी स्थिति पैदा न हो जाए. राह न तो नीतीश कुमार के लिए आसान है न ही बीजेपी के लिए. ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि सिर्फ तल्खियां ही हैं, न नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़ रहे हैं न ही बीजेपी नीतीश को खोने का जोखिम उठा सकती है.
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