डीएनए हिंदी: महाराजा सूरजमल का शहर, ऐतिहासिक इमारतों का शहर, राजस्थान का पूर्वी गेटवे कहा जाने वाला शहर, विदेशी मुस्कानों और देसी ठहाकों का शहर. लेकिन इस शहर का एक हिस्सा और भी है. जहां अर्थपूर्ण अंदाज में महिलाओं के हिलते हुए सिर कुछ और ही बयां करते हैं. हम बात कर रहे हैं भरतपुर से 2 किलोमीटर दूर जयपुर हाइवे पर बसे मलाहा गांव की. जिसके पास बने फ्लाइओवर पर तेज रफ्तार में दौड़ती गाड़ियां अचानक धीमी हो जाती हैं. यहां खड़ी महिलाएं अपनी ओर बुलाने का सीधा-सीधा न्योता देती हैं. दरअसल ये बेड़िया जाति के लोग हैं. पुराने जमाने से इनका पेशा देह व्यापार का रहा है.
21वीं सदी के ट्विटर और फेसबुक के इस भारत में आपका यकीन करना भले ही मुश्किल हो, लेकिन हकीकत यह है कि इस समुदाय के लोग आज भी 300 वर्ष पुरानी व्यवस्था ढोने को मजबूर हैं. बेड़िया समाज की महिलाएं अपनी जिंदगी बसर करने के लिए देह व्यापार का धंधा करती हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस समाज के पुरुष खुद ही अपनी बहन-बेटियों को इस दलदल में धकेलते हैं. वो महिलाओं को अपनी कमाई का जरिया मानते हैं.
'मैं तो बेड़िया हूं'
फरीदाबाद में रहने वाली 35 साल की बबीता (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि मुझे बचपन में ही इस पेशे में झोंक दिया गया था. यह पूछने पर कि इसकी शुरुआत कहां से हुई तो उन्होंने मुस्कुरा कर कहा, 'मैं तो बेड़िया जाति से हूं.' बबीता बताती हैं कि वो अकेली नहीं हैं बल्कि उनके घर में बाकी महिलाएं भी यही काम करती हैं. परिवार की अन्य महिलाएं दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत अन्य जगहों पर सेक्स वर्कर का काम करती हैं. बबीता का कहना है कि उसके पास कोई विकल्प नहीं था. उनके तबके की लड़कियां अक्सर किशोरावस्था में ही समाज की सहमति से वेश्यावृत्ति के धंधे में उतार दी जाती हैं.
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बबीता बताती हैं, 'हम पांच बहन-भाई हैं. मैं घर में सबसे बड़ी थी. मेरा परिवार भरतपुर से 2 किलोमीटर दूर दिल्ली-जयपुर पर बसे मलाहा गांव में रहता था. घर की माली हालत ठीक नहीं थी. मेरे पिता सुबह से शराब पीकर पड़े रहते थे. बड़ी होने के नाते मुझ पर ही घर संभालने की जिम्मेदारी थी. मैं उस वक्त 12 या 13 साल की थी, जब मेरे बाप ने मुझे एक अधेड़ उम्र के कारोबारी के यहां भेजा था. कारोबारी को कौमार्य भंग करने का सुख देने की एवज में मेरे पिता को 8,000 रुपये मिले थे, जो 22 साल पहले मेरे गांव की किसी लड़की को मिली सबसे बड़ी रकम थी.
'13 साल की उम्र में ही आंखों ने सब देखा'
बबीता फख्र के साथ यह भी बताती हैं कि आज भी भरतपुर, जयपुर के अमीर कस्टमर उसे खोजते हुए उस मलाहा गांव में आते हैं, जिसे पंक्षी का नगला नाम से भी पहचाना जाता है. लेकिन वो अब इस दलदल से बाहर आ चुकी हैं. वह अपने परिवार के साथ सुखद जिंदगी जी रही हैं. बबीता अपने पति और दो बच्चों के साथ हरियाणा के फरीदाबाद में रहती हैं. बबीता कहती हैं कि इन आंखों ने सब कुछ देखा है, बेवड़े बाप के जुल्म और देह व्यापार में घटती मां की मजबूरियां भी. 13 साल की उम्र में ही सात लोगों की रोटी की जिम्मेदारी उस पर आ गई थी. उनका कहना है कि आज भी बेड़िया समुदाय की हजारों स्त्रियां इस देह व्यापार के धंधे में हैं.
बबीता के साथ उनकी 25 वर्षीय बहन माया भी रहती हैं. वो दुहाई देती हैं कि यह हमारी परंपरा है. लेकिन माया सिस्टम पर सवाल भी खड़े करती हैं. कहती हैं 'कहां जाएं, क्या खाएं और बच्चों का पेट पालन कैसे करें. इस सवाल का जवाब कहीं नहीं मिलता. सरकारें भी हमारे बारे में कुछ नहीं सोचती हैं. जिससे हमारे समाज का भला हो सके.' माया कहती हैं, 'हमारे समाज की महिलाएं इस धंधे को छोड़ना चाहती हैं. अपने बच्चों को इस दलदल से दूर रखना चाहती हैं. लेकिन सरकार हमारे लिए कोई रोजगार का बंदोबस्त करे तो सही.'
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माया से जब पूछा गया कि बेड़िया समाज के मर्द, औरतों को जबरन इस पेशे में धकेलते हैं तो वे इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहती हैं, 'ऐसा नहीं है. मेरे परिवार में चाचा-ताऊ के मिलाकर पांच भाई हैं. उन्होंने बहुत कोशिश की हम शादी कर लें, लेकिन हमने साफ इनकार कर दिया. हमारे यहां जबरदस्ती नहीं राजी का सौदा होता है. लड़की खुद अपने मन से हां करती है तभी उसे इस धंधे में भेजा जाता है. इसे छोड़ने के लिए हमारे पास पूरी आजादी होती है, लेकिन हम इस दलदल में ऐसे फंस जाते हैं कि इससे निकलना बहुत मुश्किल होता है.' लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या 13 साल की लड़की को राजी करके भी देह व्यापार के धंधे में दाखिल करवाया जा सकता है?
बेड़िया बस्ती में लगा दी गई थी आग
माया पुलिस को अत्याचारों के बारे में भी बताती हैं. वह कहती हैं पुलिस कभी भी उनके घरों पर छापे मार देती है. उनके परिवार के मर्दों को उठाकर टॉर्चर किया जाता है. कई बार तो ऐसा हुआ कि प्रशासन ने बेडिया बस्ती में आग लगाकर उन्हें खदेड़ने का प्रयास किया लेकिन एक कुप्रथा को खत्म करने की यह उनकी अमानवीय कोशिश थी.
इस समुदाय की कितनी है जनसंख्या?
भरतपुर जिले में कलक्टर पद पर तैनात रहे एक पूर्व अधिकारी का कहना है कि बेडिया समुदाय में सदियों पुरानी इस परंपरा को पुलिस के डंडे के जोर पर खत्म नहीं किया जा सकता. सैंकड़ों सालों से बेड़िया समाज देह व्यापार को अपनी कमाई का जरिया मानता आ रहा है. मुगल काल में यह समुदाय नाचने गाने का काम करता था लेकिन बाद में रजवाड़े खत्म हुए तो इन लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया. ऐसे में समुदाय की महिलाएं देह व्यापार का धंधा करने लगीं. 2011 की जनगणना के अनुसार, इस समुदाय की कुल आबादी 80 हजार के करीब है. बेड़िया समुदाय की सबसे बड़ी आबादी राजस्थान और मध्य प्रदेश में रहती है.
पूर्व अधिकारी का कहना है कि अगर इस समाज में जागरूकता लानी है तो पहले उनकी जरूरतों को समझना होगा. उन्हें शिक्षा और रोजगार मुहैया कराना होगा. मैंने इस समुदाय के लोगों को बजबजाती झुग्गी-झोंपड़ियों में जिंदगी बसर करते देखा है. इन बस्तियों में बिजली और पानी की पर्याप्त सुविधा भी मय्यसर नहीं है. गांव के स्कूल में इनके बच्चों से छुआछूत भरा व्यवहार होता है. प्रशासन इनको वोटर या आधार कार्ड मुहैया कराने में भी दिलचस्पी नहीं रखता. ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को इस समुदाय के लोगों को समाज की मुख्यधारा में लाने की दिशा में पहल करनी चाहिए.
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बेड़िया जाति: आजादी के 76 साल बाद भी देह व्यापार के दलदल में फंसी महिलाओं की कहानी