डीएनए हिंदी: लोकतंत्र में चुनाव में हार और जीत सामान्य गतिविधि है. पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने जहां बीजेपी के वर्चस्व को और मजबूती से स्थापित किया है, वहीं कांग्रेस के संगठन और अनुशासन की कलई भी खोल कर सबके सामने रख दी है. बीजेपी ने जिन तीन राज्यों में धमाकेदार जीत अर्जित की है उनमे से कम से कम छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को शुरू में साफ बढ़त दिखाई दे रही थी. लेकिन अब ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी को जीते हुए चुनाव हारने में महारत हासिल हो गई है. लेकिन मेरे ख़्याल से ये चुनाव इन तीन राज्यों में हार और जीत का नहीं बल्कि नेतृत्व के बदलाव का साक्षी बनने जा रहा है.
सबसे पहले अगर राजस्थान की बात करें तो इस पश्चिमी राज्य में बीजेपी की वापसी के साथ ही पिछले 25 साल से प्रदेश में चल रही अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे की पारी के अंत के तौर पर भी देखा जाना चाहिए. इस बार बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के हाथों में वो ताकत है कि अपनी पसंद का मुख्यमंत्री यहां पर बनाया जा सके. यह बात अब लगभग तय है कि बीजेपी इस बार नये चेहरे को वहाँ मुख्यमंत्री बनाएगी. ठीक उसी तरह विपक्षी कांग्रेस की बागडोर भी अशोक गहलोत से छिटक कर सचिन पायलट के युवा हाथों में जाएगी और एक क़िस्म से नयी कांग्रेस की राजनीति की शुरुआत राजस्थान में होगी.
कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दल आने वाले समय में एक नये नेतृत्व के साथ एक दूसरे से टकराते हुए और नई ऊर्जा के साथ राजस्थान के हितों की बात करते हुए आने वाले समय में दिखेंगे. साथ ही राजस्थान के युवा मतदाताओं को भी ये उम्मीद ज़रूर होगी कि जिन मुद्दों को सामने रखकर उन्होंने चुनाव में मतदान किया है उनका स्थाई समाधान इस बार नये मुख्यमंत्री निकाल पाएं.
ये भी पढ़ें- राजस्थान में गहलोत-पायलट के झगड़े ने कांग्रेस की 20 सीटों पर बिगाड़ा खेल
नए चेहरे के हाथ में होगी छत्तीसगढ़ की कमान?
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ की बात. इस राज्य में बीजेपी ने एक बेहद सुनियोजित कैंपेन चला कर सत्तारूढ़ कांग्रेस को बेदखल किया. कांग्रेस पार्टी जहां अति आत्मविश्वास और आपसी सिर फ़ुटोवल के चलते अपने घर को सम्भाल पाने में कामयाब नहीं रही वहीं बीजेपी ने बिना किसी चाहते और प्रदेश नेतृत्व के इस चुनाव में अपनी ज़ोरदार वापसी की . बीजेपी को जहां पूरे चुनाव के दौरान कोई भी जानकार जीत के क़रीब भी नहीं बता रहा था वहीं बीजेपी ने अपने कार्यकर्ता और केंद्रीय नेतृत्व के चलते के डैम पर जीत हासिल करके सबको चौंका दिया. इस प्रदेश में भी ये मान कर चल सकते हैं कि इस बार बीजेपी की सरकार का नेतृत्व कोई नया नेता ही करेगा. डॉ रमन सिंह को इस बार इस ज़िम्मेदारी के दिये जाने के बहुत कम संभावना है .जबकि कांग्रेस पार्टी को भी अब भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव के अलावा नये युवा चेहरे की तलाश करनी होगी जो आने वाले समय में कांग्रेस की आता में वापसी सुनिश्चित कर सकें .
हिन्दी पट्टी का तीसरा और सबसे अधिक सीट वाला राज्य मध्य प्रदेश. बीजेपी ने इस राज्य में 18 साल लगातार शासन करने के बाद भी दो तिहाई बहुमत के साथ एक बार फिर से धमाकेदार वापसी की है. तीन महीने पहले तक इस प्रदेश में भी कांग्रेस की जीत की प्रबल संभावना जताई जा रही थी . लेकिन यहाँ भी कमलनाथ के अहंकार और दिग्विजय सिंह की छवि और इन दोनों नेताओं के आपसी विवाद के चलते एक बार फिर कांग्रेस को हार का मुँह देखना पड़ा . कमलनाथ ने जिस मनमानी और अहंकार के साथ यहाँ राजनीति की वो मध्यप्रदेश के मतदाताओं ने अस्वीकार कर दी .इस राज्य में भी अब कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों को नये नेतृत्व की तलाश है .बीजेपी ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री के चलते को आगे नहीं करने के कारण ये क़यास लगाये जा रहे हैं कि अब शिवराज सिंह चौहान को बदलने का समय आ गया है .जिस तरह का प्रचंड बहुमत मध्य प्रदेश में बीजेपी को मिला है उसके बाद केंद्रीय नेतृत्व को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ फ़ैसला लेने में कोई दिक़्क़त भी नहीं होगी. ये भी लगभग तय है कि शिवराज की जगह भी कोई नया चेहरा इस बार बीजेपी का प्रदेश में नेता होगा .इसके लिए कई नाम हैं .जिनमे केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ,नरेंद्र तोमर और ज्योतियार्दित्य सिंधिया प्रमुख है .
लेकिन यहां कांग्रेस की स्थिति ज़्यादा ख़राब है. कांग्रेस को जहां अपने थके हुए प्रदेश के दोनो नेताओं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से छुटकारा मिल जाएगा वहीं दूसरी पंक्ति के तेज तर्रार नेता जीतू पटवारी का चुनाव हारना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है. कांग्रेस पार्टी को यहां भी युवा और मज़बूत नेतृत्व तलाश करना पड़ेगा.
इस चुनाव के परिणामों के बाद केवल नई सरकार नहीं बल्कि नयी राजनीति की इबारत भी लिखी जाएगी. हिन्दी पट्टी के तीनों राज्यों में जहां कांग्रेस को रेवंत रेड्डी जैसे युवा और चेहरे की तलाश होगी, वहीं बीजेपी को भी आने वाले लोकसभा चुनाव में अपनी कामयाबी को दोहराने के दबाव के बीच जनता की पसंद के हिसाब से नया नेतृत्व देना होगा.
'रवींद्र सिंह श्योरण'
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने खोले नए द्वार, युवा करेंगे अब राजनीति का उद्धार!