डीएनए हिंदी: कई ज़रूरी चीजों के लिए भारत अभी भी आयात पर निर्भर है. यानी ये चीजें भारत में बनाई नहीं जाती हैं इसलिए उन्हें दूसरे देशों से मंगाना पड़ता है. मेडिकल सेक्टर (Medical Sector) में भारत काफी हद तक आयात पर निर्भर है. ऐसी ही एक चीज है MRI मशीन (MRI Machine). एक मशीन के पीछे दो से तीन करोड़ रुपये का खर्च आता है. इसका आयात करना काफी खर्चीला होता है और देश के आयात-निर्यात बैलेंस पर इसका बुरा असर पड़ता है. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (Allahabad University) की एक टीम ऐसा काम करके दिखाया है कि MRI मशीनें अब भारत में ही बनाई जा सकेंगी. इससे भारत आत्मनिर्भर होने की ओर एक और कदम बढ़ा देगा और मेडिकल सेक्टर को भी काफी मदद मिलेगी.
एमआरआई मशीनों के महंगा होने और उनके पार्ट्स का आयात किए जाने की वजह से देश में इनकी भारी कमी है. हर 10 लाख जनसंख्या पर भारत में एमआरआई मशीनों की संख्या सिर्फ़ 1.5 है. दूसरी तरफ विकसित देशों में यही संख्या 10 है. अब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रयासों के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि एमआरआई मशीनें बनाने में आने वाले खर्च को घटाया जा सकेगा.
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आत्मनिर्भर बनेगा भारत
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की इस टीम ने देश का पहला सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट सिस्टम डेवलप किया है. MRI मशीनों का अहम हिस्सा यही होता है. फिलहाल भारत में आने वाली सभी MRI मशीनें चीन से ही आयात की जाती हैं. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अविनाश चंद्र पांडेय की अगुवाई में इस स्वदेशी सिस्टम को डेवलप करने का काम इंटर यूनिवर्सिटी एक्सेलरेटर सेंटर (IUAC) ने किया है.
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इससे, भारत खुद ही MRI मशीनें बना सकेगा और आयात करने के लिए अपनी विदेशी मुद्रा खर्च नहीं करनी पड़ेगी. साथ ही, भारत उन देशों में शामिल हो जाएगा जो MRI मशीनें बनाते हैं.
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अब MRI मशीनें बनाकर आत्मनिर्भर होगा भारत, चीन से आयात करके खाली नहीं होगा देश का खजाना