अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) अब उत्तर प्रदेश विधानसभा के बजाय संसद में नजर आ रहे हैं. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली था जिस पर कई बड़े चेहरों के नाम की चर्चा चल रही थी. हालांकि, रविवार को सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए समाजवादी पार्टी प्रमुख ने ब्राह्मण चेहरा माता प्रसाद पांडे को सौंपी है. समझा जा रहा है कि ब्राह्मण मतदाताओं को अपने खेमे में करने के लिए उनकी ओर से यह कोशिश की गई है. नेता प्रतिपक्ष के लिए इंद्रजीत सरोज, रामअचल राजभर और तूफानी सरोज के साथ चाचा शिवपाल यादव का नाम भी चल रहा था.
ब्राह्मण वोट बैंक साधने की कोशिश
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन सफल रहा था. कांग्रेस के साथ आने से दलितों के वोट भी इंडिया गठबंधन को मिले हैं. अब 2027 को नजर में रखते हुए अखिलेश यादव की कोशिश बीजेपी के पारंपरिक ब्राह्मण वोट बैंक में सेंध लगाने की है. यही वजह है कि नेता प्रतिपक्ष का अहम पद उन्होंने माता प्रसाद पांडे जैसे पुराने और राजनीति के मंझे हुए चेहरे को दिया है.
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राजनीति के हैं पुराने खिलाड़ी
माता प्रसाद पांडेय राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं और छात्र जीवन से ही इसका हिस्सा रहे हैं. अब तक के सियासी सफर में इन्होंने पार्टियां भी बदली हैं और लगातार अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है. उन्होंने पहला चुनाव जनता पार्टी के टिकट से 1980 में लड़ा था और जीते थे. फिर लोकदल में शामिल हो गए और 1985 में वहां से जीतकर विधायक बने थे. 1989 में फिर जनता पार्टी में चले गए, लेकिन 1991 और 1996 में इन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
साल 2002 में इन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थामा और लगातार तीन बार विधायक बने, लेकिन 2017 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. 2022 में एक बार फिर अखिलेश यादव ने उन पर भरोसा जताया और फिर वहां से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. अब उन्हें नेता प्रतिपक्ष की बड़ी जिम्मेदारी मिली है.
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चाचा शिवपाल की जगह ब्राह्मण चेहरे को अखिलेश यादव ने क्यों जताया भरोसा?