हाल ही में शिवसेना (यूबीटी) के नेता अभिषेक घोषालकर की हत्या की जांच जारी है. फेसबुक लाइव के दौरान मॉरिस नोरोन्हा ने अभिषेक को गोली मारी थी और खुद की भी जान ले ली थी. इस हमले से ठीक पहले दोनों साथ ही बैठे थे. रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने मॉरिस के फोन की भी जांच की है और उसकी सर्च हिस्ट्री और ब्राउजिंग डेटा को इकट्ठा किया है. इस जांच में सामने आया है कि हत्या से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए मॉरिस ने इंटरनेट का इस्तेमाल किया था. उसके फोन में गूगल और यूट्यूब हिस्ट्री में ऐसी चीजें मिली हैं जो साफ करती हैं कि मॉरिस ने बंदूक चलाने से लेकर कई अन्य चीजों की जानकारी इंटरनेट से ही ली.

मुंबई के दहिसर में हुए इस हत्याकांड ने हर किसी को हैरान कर दिया था. इस हत्या के बाद पुलिस ने उस फोन को भी कब्जे में लिया जिससे फेसबुक लाइव किया जा रहा था. यह फोन मॉरिस नोरोन्हा का था. पुलिस को फोन की सर्च हिस्ट्री से पता चला है कि मॉरिस ने पिस्टल चलाना सीखने के लिए कई यूट्यूब वीडियो भी देखे थे.


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सबूत के तौर पर नहीं होती स्वीकार
बता दें कि गूगल सर्च हिस्ट्री या अन्य ब्राउजिंग हिस्ट्री को कोर्ट में सबूत के तौर पर नहीं स्वीकार किया जाता है. इसके बावजूद पुलिस को इस तरह की चीजों से जांच की दिशा तय करने में मदद मिलती है. इनके आधार पर पुलिस कई अन्य सबूत जुटा लेती है और अलग-अलग एंगल से जांच भी कर लेती है. इसी जांच के क्रम में मोबाइल लैपटॉप या अन्य गैजेट्स की फॉरेंसिक जांच कराई जाती है जिसमें फोन की कई साल का रिकॉर्ड मिल जाता है.


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नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई पुलिस ISIS से जुड़े कुछ मामलों में भी मोबाइल की सर्च हिस्ट्री से अहम नतीजों तक पहुंच चुकी है. कई बार पुलिस को फोन की फॉरेंसिक रिपोर्ट में अहम चैट भी मिल चुकी हैं जिससे बड़ी योजनाओं का खुलासा हुआ है. यही वजह है कि कोर्ट में सबूत के तौर पर स्वीकार न होने के बावजूद पुलिस फोन की सर्च हिस्ट्री जरूर चेक करती है.

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दहिसर हत्याकांड: आखिर Google History क्यों चेक करती है पुलिस?
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