कुछ महीने पहले की बात है. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पटना में थे. वे पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के घर पर भी गए. लालू और उनके परिवार के लोगों के साथ राहुल की लंबी बातचीत हुई. राहुल के साथ उनकी हंसती हुई तस्वीरें भी सामने आईं. वहां से निकलकर राहुल मीडियाकर्मियों से मिले और बिहार सरकार की जातीय जनगणना को फर्जी बता दिया. वही जातीय जनगणना जिसे बिहार में महागठबंधन की सरकार ने किया था और जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी. और तो और, लालू के बेटे तेजस्वी यादव तब डिप्टी सीएम हुआ करते थे और जातीय जनगणना को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रहे थे. राहुल तो इसके बाद लौट आए, लेकिन बिहार में कांग्रेस की भविष्य की सियासत का इशारा दे गए. मंगलवार शाम को अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह विधायक राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने राहुल की रणनीति को अमलीजामा पहनाने की शुरुआत कर दी. इस फैसले से कांग्रेस ने यह संकेत दे दिया कि बिहार में अपनी खोई राजनीतिक जमीन हासिल करने के लिए वह तैयार है और जरूरत हुई तो इसके लिए अपनी सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी राजद से अलग होने में भी उसे गुरेज नहीं है.
पुराना कांग्रेसी है परिवार
राजेश कुमार औरंगाबाद जिले के कुटुंबा से विधायक हैं. दलित समुदाय से आने वाले राजेश कुमार पूर्व सांसद दिलकेश्वर राम के बेटे हैं. अपने समय में दिलकेश्वर राम कांग्रेस में दलितों के बड़े नेता माने जाते थे. राजेश कुमार की कार्यशैली भी अपने पिता के जैसी है. वे सबको साथ लेकर चलने में भरोसा करते हैं. उनकी कार्यशैली पार्टी में मौजूद गुटबाजी पर अंकुश लगा सकती है.
जातीय समीकरण साधने की कोशिश
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले संगठन में बदलाव कर कांग्रेस ने जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश भी की है. शकील अहमद खान विधानसभा में कांग्रेस के नेता हैं. इन दोनों की मौजूदगी पार्टी को दो बड़े समुदायों के बीच पैठ बनाने में मददगार हो सकती है. इसके अलावा कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को भी बड़ी जिम्मेदारी दी है. उनके नेतृत्व में सूबे में रोजगार यात्रा निकाली जा रही है. सांसद पप्पू यादव को भी चुनाव से पहले अहम जिम्मेदारी मिलने की चर्चा है. ये दोनों कांग्रेस को भाजपा के सवर्ण और राजद के यादव वोट बैंक में सेंध लगाने में मदद कर सकते हैं.
लालू के लिए मैसेज
जातीय समीकरणों से इतर कांग्रेस ने राजेश कुमार को कमान देकर राजद को भी बड़ा संदेश दे दिया है. ये संदेश क्या है, इसकी चर्चा करने से पहले एक बार दिल्ली विधानसभा चुनाव को याद करते हैं. दिल्ली में चुनाव से पहले कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन की जोर-शोर से चर्चा चली थी. इसी दौरान कांग्रेस ने देवेंद्र यादव को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जो आप के साथ गठबंधन के विरोधी माने जाते थे. इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के आग्रह को दरकिनार करते हुए पार्टी दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ी. उसे एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन अरविंद केजरीवाल की पार्टी हार गई. कांग्रेस ने इससे यह साफ कर दिया कि वह अपना जनाधार वापस लाने की कोशिश कर रही है, लेकिन इसके लिए किसी की बैसाखी नहीं लेगी.
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बिहार में बदलेगी कांग्रेस की रणनीति?
ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस बिहार में भी दिल्ली वाला फॉर्मूला अपनाने की तैयारी कर रही है. पार्टी का एक तबकों सालों से मांग करता है कि उसे बिहार में राजद का साथ छोड़ देना चाहिए, लेकिन गांधी परिवार के साथ लालू यादव की नजदीकियां इसमें बड़ी बाधा बन रही थी. लालू हर मुश्किल वक्त में सोनिया और राहुल गांधी के साथ खड़े रहे. वैसे भी, राजद, कांग्रेस की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी है. इसलिए पार्टी नेतृत्व लालू को नाराज करने का जोखिम लेने से परहेज करता रहा. इसके चलते हालांकि कांग्रेस को नुकसान भी झेलना पड़ा और उसका रहा-सहा वोट बैंक भी साथ छोड़ गया. पार्टी अब ये समझ चुकी है कि राजद के साथ रहकर वह राज्य में अपना पुराना रुतबा हासिल नहीं कर सकती. पटना में उस दिन राहुल गांधी ने यही इशारा किया था और राजेश कुमार के मनोनयन के साथ लालू यादव के लिए संदेश भी एकदम लाउड और क्लीयर है. वो ये कि कांग्रेस अकेले चुनाव में उतरने के साथ राजद के वोट बैंक में सेंध लगाने की भी कोशिश कर सकती है. इसके दो बड़े फायदे हो सकते हैं. तात्कालिक रूप से देखें तो राजद के साथ गठबंधन बने रहने पर लालू, कांग्रेस को कम सीटें ऑफर करने की सोच भी नहीं सकते. लंबे समय के लिए इस फैसले से कांग्रेस की दूसरी पार्टी पर निर्भरता खत्म होगी और अपना खोया वोट बैंक हासिल करने में मदद मिलेगी.
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Bihar News: नया प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने राजद को दिया संदेश, चुनाव में होगा बड़ा 'खेला'!