डीएनए हिन्दी: देवभूमि हिमाचल के एग्जिट पोल (Himachal Exit Poll) ने इस बार सबको कन्फ्यूज कर दिया है. बीजेपी (BJP) की सरकार रिपीट होगी या फिर कांग्रेस की बनेगी, यह एग्जिट पोल के नतीजों से स्पष्ट नहीं हो पा रहा है. अगर बीजेपी सरकार दोबारा बनती है, इस बार इतिहास बनेगा. ऐसा 50 सालों बाद होगा कि जब प्रदेश में लगातार दो बार किसी पार्टी की सरकार बनेगी. 1972 में ऐसा हुआ था जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रिपीट हुई थी. उसके बाद के हर चुनव सत्ताधारी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. 50 सालों से वहां की यह परंपरा बन गई है कि एक बार कांग्रेस तो दूसरी बार बीजेपी की सरकार बनती है.
इस बार एग्जिट पोल भी कन्फ्यूज है. अधिकतर एग्जिट पोल में बीजेपी को कांग्रेस से ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. टीवी 9 के एग्जिट पोल में बीजेपी को 33 तो कांग्रेस को 31 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. जन की बात ने बीजेपी को 32 से 40 सीटें मिलने का अंदाजा लगाया है. वहीं, इसके अनुसार कांग्रेस को 27 से 34 सीटों के मिलने की संभावना जताई गई है.यानी हिमाचल में कुछ भी हो सकता है. अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो 50 साल की परंपरा कायम रहेगी. बीजेपी सरकार में लौटती है तो यह परंपरा टूट जाएगी.
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इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक, प्रदेश में कांग्रेस को 44 फीसदी वोट मिलने की संभावना जताई गई है. वहीं बीजेपी को 42 फीसदी. वोट शेयर में दोनों के बीच कड़ा मुकाबला है. अगर एग्जिट पोल नतीजों में तब्दील होता है तो इस बार सरकार बनवाने में निर्दलीय विधायकों का अहम रोल होगा.
हिमाचल में अगर कांग्रेस को सत्ता मिल भी जाती है तो चुनौती कम नहीं होगी. इसका बड़ा कारण है आम आदमी पार्टी की प्रदेश की राजनीति में प्रवेश. जहां-जहां आम आदमी पार्टी राजनीति की शुरुआत करती है, उस प्रदेश में धीरे-धीरे वह कांग्रेस को खा जाती है. हिमाचल की राजनीति में अब कांग्रेस को सतर्क रहने की जरूरत है.
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल से आते हैं. साथ ही हिमाचल से आने वाले अनुराग ठाकुर भी केंद्र में मंत्री हैं. अमित शाह और नरेंद्र मोदी के रूप में बीजेपी के पास ट्रंप कार्ड तो है ही. इसके बावजूद वह सत्ता से दूर रहती है तो उसे आत्मचिंतन करने की जरूरत है. आइए हम विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं कि बीजेपी को हिमाचल में सत्ता में वापसी के लिए क्यों संघर्ष करना पड़ रहा है.
हिमाचल प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है. यहां पर बड़ी संख्या में नौजवान फौज में जाते हैं. केंद्र की अग्निवीर स्कीम से यहां के नौजवानों में गुस्सा है. अगर प्रदेश में बीजेपी हारती है तो इसका बड़ा कारण अग्निवीर स्कीम हो सकता है.
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एक और कारण है. सरकारी नौकरी यहां के लोगों की पहली प्राथमिकता होती है. बड़ी संख्या में यहां सरकारी नौकर भी हैं. 2004 की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पेंशन स्कीम को खत्म कर दिया था. इस बार आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ने चुनावी वादे में इसे शामिल किया है. पुरानी पेंशन स्कीम भी बीजेपी के लिए घातक हो सकती है. शायद यही कारण है कि पिछले दिनों यह खबर आ रही थी कि आरएसएस ने मोदी सरकार को पुरानी पेंशन स्कीम फिर से लागू करने की सलाह दी है.
वीरभद्र सिंह की मौत के बाद नेतृत्व की समस्या से कांग्रेस से जूझ रही है. आपसी कलह भी कम नहीं है. कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा पर हैं. इसके बावजूद अगर कांग्रेस जीतती है तो इसके पीछे बीजेपी सरकार की नाकामी कारण बनेगी.
हालात ये थे कि हिमाचल में बड़ी संख्या में बीजेपी के बागी चुनावी मैदान में उतर गए थे. बताया जा रहा है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बागियों को फोन करके चुनाव नहीं लड़ने की सलाह दी थी. इसके बावजूद ज्यादातर बागी मैदान में डटे रहे. यह बता रहा है कि बीजेपी का संगठन धीरे-धीरे खोखला होते जा रहा है.
इस चुनाव में करप्शन भी एक मुद्दा रहा. आम हिमाचली की नजरों में सरकार में करप्ट लोगों का बोल-बाला है. खासकर आम आदमी पार्टी ने इसे मुद्दा बनाया.
हालांकि, 8 दिसंबर को ही यह पता चलेगा कि हिमाचल में किसकी सरकार बनने वाली है. 50 सालों से चली आ रही हिमाचल की परंपरा कायम रहती है या फिर बीजेपी दोबारा सत्ता में लौटती है.
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