डीएनए हिन्दी : सूखे को महाराष्ट्र की सबसे भीषण समस्याओं में गिना जाता है. यह न केवल फ़सल उत्पादन की सम्भावना को कम करता है बल्कि आम जनजीवन के लिए भी मुश्किलें खड़ी करता है. इन हालातों से लड़ने के लिए पुणे के इंजीनियर राहुल बकारे ने एक ऐसी मशीन बनाई है जिससे इस सूखे की समस्या से बहुत हद तक निजात मिल सकती है.
कैसे काम करती है यह मशीन?
राहुल की बनाई हुई मशीन का नाम बोर चार्जर है. यह रेन वाटर हार्वेस्टिंग के ज़रिये ज़मीन में अंदरूनी जल-स्तर को बढ़ाती है. इस मशीन में बोरवेल ज़मीन के अन्दर गहराई तक जाती है और वहां मौजूद भूजल के उस स्तर पर पहुँचती है जहाँ से पानी निकाला जा सकता है. भूजल का यह स्तर सैकड़ों सालों में धरती के भिन्न स्तरों से बारिश में बहाकर लाए गए जल से तैयार होता है पर यहाँ से लगातार पानी का निकाला जाना इसे सुखा देता है जबकि इसके ऊपर के स्तर में मौजूद पानी बोरवेल के चारों ओर बनाए गए पीवीसी केसिंग में ब्लॉक्ड रहता है.
बोर चार्जर अंडरवाटर कैमरे की मदद से धरती के भिन्न स्तरों की एंजियोग्राफी करता है और जब पानी का पता लग जाता है तब रोबोटिक आर्म की मदद से यह पानी निकासी वाले केसिंग पाइप में छेद करके धरती के ऊपर के स्तर में मौजूद पानी को नीचे पहुंचाता है जिससे पानी का बैलेंस बरक़रार रहता है और सूखे की समस्या का समाधान हो जाता है. यह पानी की क्वालिटी को भी बेहतर बनाता है.
बोर चार्जर के पीछे की प्रेरणा क्या थी?
राहुल एक सफल इंजीनियर थे और कभी विदेश में रहते थे. वे जब घर लौटे तो उन्होंने ज़मीन का एक टुकड़ा ख़रीद कर उसपर खेती करने की सोची पर आसपास के लोगों ने उन्हें सूखे का हवाला देते हुए खेती न करने की सलाह दी. राहुल सूखे की समस्या पर गौर करने लगे और उन्हें अहसास हुआ कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग के परंपरागत तरीके में कई खामियां हैं और वैज्ञानिक दृष्टि की कमी भी है. इसके बाद उन्होंने बोर चार्जर बनाने की सोची.
बोर चार्जर का फायदा
उनकी इस बोर चार्जर तकनीक ने पानी के स्तर को 600 फीट के स्तर से ऊपर उठाकर 200 और 50 फीट तक ला दिया है. राहुल के अनुसार भारत और पश्चिमी अफ्रीका के कुल इलाक़ों में क़रीब 1500 बोर चार्जर लगे हैं जिसने 165 करोड़ लीटर से अधिक पानी का संरक्षण किया है.
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