डीएनए हिंदी: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी अपनी पार्टी के विस्तार में जुटे हैं. राष्ट्रीय स्तर के मुस्लिम नेताओं की अगर लिस्ट सामने आए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि असदुद्दीन ओवैसी टॉप पर रहेंगे.

असदुद्दीन ओवैसी को लेकर युवा मुस्लिम समुदाय में एक क्रेज है. बुजुर्ग भी उन्हें पसंद करते हैं. अपने तल्खी भरे  लहजे में बयान देने के लिए मशहूर ओवैसी पर अक्सर दूसरी पार्टियां सांप्रदायिक वैमनस्य बढ़ाने का आरोप लगाती हैं. कुछ ऐसे भी नेता हैं जो उन्हें भारतीय जनता पार्टी (BJP) की टीम बी बता देते हैं. कुछ उन पर ध्रुवीकरण का आरोप भी लगाते हैं.

सोशल मीडिया पर  ओवैसी की वीडियो और ऑडियो क्लिप खूब शेयर होती हैं. ओवैसी देशभर में अपनी पार्टी को मजबूत करना चाहते हैं. हैदराबाद ओवैसी का गढ़ है लेकिन महाराष्ट्र और अब बिहार में भी उनकी पार्टी को चुनावों में जीत मिली है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यूपी में भी ओवैसी इन दो राज्यों में मिली सफलता को दोहरा सकेंगे?

यूपी में कितना कमाल करेंगे ओवैसी?

उत्तर प्रदेश में बिहार जैसे सियासी समीकरण नहीं हैं. यहां मुख्य सियासी लड़ाई भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बनाम समाजवादी पार्टी (सपा) की है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस भी इस लड़ाई में शामिल हैं. मुस्लिम वोट सपा, बसपा और कांग्रेस में बंटे हैं. एक तबका ऐसा भी है जो बीजेपी के साथ भी है. ऐसे में दिग्गज पार्टियों के बीच राह बनानी ओवैसी के लिए बहुत आसान नहीं है. यूपी में लगभग 20 फीसदी मुस्लिम आबादी है जिसका असर 143 सीटों पर देखने को मिलता है. ओवैसी की तैयारी इन्हीं मुस्लिम बाहुल सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का है.

असदुद्दीन ओवैसी को मुस्लिमों का ही एक सेक्युलर तबका नापसंद करता है. यही वजह है कि लोकप्रियता के बाद भी उनका प्रचार-प्रसार इतना नहीं बढ़ा है कि उनकी पार्टी राष्ट्रीय स्तर की हो जाए. ओवैसी सार्वजनिक मंचों से बाबरी मस्जिद प्रकरण पर बोलते हैं. सुप्रीम कोर्ट के राम जन्मभूमि पर दिए गए फैसले को लेकर असंतुष्टि जाहिर कर चुके हैं. यह तब है जब पक्षकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान कर रहे हैं.

तमाम मुस्लिम संगठनों ने सु्प्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत किया था लेकिन तब से लेकर अब तक ओवैसी अपनी सभाओं में बाबरी मस्जिद विध्वंस का जिक्र करना नहीं भूलते हैं. नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर भी ओवैसी  हमलावर रहे हैं. ओवैसी का मानना है कि अब भारत में अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक समाज निशाना बना रहा है. 

असदुद्दीन ओवैसी के बयानों को विपक्ष दूसरी तरह से लेता है और उन्हें हिंदू विरोधी साबित करता है. यूपी का सियासी ढांचा ऐसा है कि अकेले न मुसलमान किसी चुनाव को जिता सकते हैं और न हिंदू. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जब असदुद्दीन ओवैसी को सेक्युलर मुसलमान नहीं पसंद करता है तो हिंदू क्यों करेंगे? कुछ उन पर हिंदू-मुस्लिम सौहार्द बिगाड़ने का भी आरोप लगाते हैं. ऐसे में केवल मुस्लिमों की बात करके ओवैसी यूपी में तो अपनी सियासी जड़ें नहीं जमा पाएंगे.

बनने से पहले टूट रहा ओवैसी का गठबंधन

असदुद्दीन ओवैसी यूपी में अपनी सेक्युलर छवि बनाने के लिए उत्तर प्रदेश की 100 विधानसभा सीटों पर अपने सहयोगियों के साथ चुनाव लड़ना चाह रहे हैं. ओवैसी ने इस गठबंधन को भागीदारी संकल्प मोर्चा का नाम दिया है. औवेसी के इस मोर्चे से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने किनारा कर लिया. दूसरी राजनीतिक पार्टियां भी तय नहीं कर पा रही हैं कि इनके साथ रहना है या नहीं. विश्लेषकों का कहना है कि रहने के नुकसान हो सकते हैं फायदे तो नजर नहीं आते. सपा, बसपा और कांग्रेस जैसी पार्टियां ओवैसी को साथ लेने से कतराएंगी भी क्योंकि ये सेक्युलर पार्टियां कहीं जाती हैं. असदुद्दीन औवैसी पर कट्टरता का ठप्पा उनके राजनीतिक विरोधियों ने जड़ दिया है.

AIMIM की कहां कितनी हैं सीटें?

महाराष्ट्र विधानसभा में एआईएमआईएम के 2 विधायक हैं. तेलंगाना विधानसभा में ओवैसी के 7 विधायक हैं. बिहार में पार्टी के 5 विधायक हैं. खुद असदुद्दीन ओवैसी हैदराबाद से सांसद हैं. महाराष्ट्र में सैयद इम्तियाज जलील भी अपनी सीट जीतने में कामयाब हो गए थे.

बिहार में कैसे जीतीं 5 सीटें

बिहार में जिन सीटों पर एआईएमआईएम को जीत मिली है उन सभी सीटों पर मुस्लिम आबादी ज्यादा है. पहले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस गठबंधन का इन सीटों पर दबदबा रहता था लेकिन 2020 के विधानभा चुनाव में ओवैसी की एंट्री ने समीकरण बदल दिए. बिहार विधानसभा क्षेत्र जोकीहाट, आमौर, बायसी, बाहुदरगंज और कोचाधामन में ओवैसी की पार्टी को जीत मिली है. जीते गए सभी कैंडीडेट मुस्लिम समुदाय से आते हैं. 

असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम अधिकारों को लेकर मुखर हैं. नागरिकता कानून (सीएए) और एनआरसी को लेकर ओवैसी लागतार बोलते रहे हैं. अल्पसंख्यक उत्पीड़न की बात वे भारत में सार्वजनिक मंचों से करते हैं. औवैसी सार्वजनिक मंचों पर अक्सर मुसलमानों से जुड़े मुद्दे उठाते रहे हैं. ऐसे में बिहार की मुस्लिम बाहुल इन विधानसभा सीटों पर दूसरी राजनीतिक पार्टियों के सारे समीकरण ध्वस्त हो गए और ओवैसी की पार्टी 5 सीटें जीतने में कामयाब हो गई.

पश्चिम बंगाल में मिली थी करारी हार

2021 में हुए पश्चिम बंगाल विधानभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM का प्रदर्शन शून्य रहा. मुस्लिम बहुल 7 सीटों पर इन्होंने अपने उम्मीदवार उतारे थे और हर जगह जमानत जब्त हो गई. मुस्लिम मतदाताओं ने अपना भरोसा तृणमूल कांग्रेस पर जताया था. ओवैसी अपनी छवि पश्चिम बंगाल में भुनाने में बुरी तरह से फेल हो गए थे. यूपी में असदुद्दीन ओवैसी अपनी छवि कितनी भुना पाएंगे यह सवाल तो भविष्य के गर्भ में है चुनावी सफर की राह उनके लिए आसान नहीं नजर आ रही है.

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UP Assembly elections 2022 AIMIM ASaduddin owaisi vs SP BSP Congress BJP
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क्या बिहार वाली सफलता यूपी में दोहरा पाएंगे असदुद्दीन ओवैसी?
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AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी (फाइल फोटो- फेसबुक)
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AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी (फाइल फोटो- फेसबुक)

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