डीएनए हिन्दी: अभी हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) को कोई खास सफलता मिलती नहीं दिख रही है. फाइनल नतीजों के आने में तो अभी 2 से 3 दिन का समय है लेकिन एग्जिट पोल बता रहे हैं कि गुजरात (Gujarat) और हिमाचल (Himachal) में आम आदमी पार्टी को कुछ खास सीटें नहीं मिल रही हैं. फिर भी आम आदमी पार्टी की धीरे-धीरे बढ़ती ताकत से बीजेपी विरोध की पार्टियों में हड़कंप है. खासकर कांग्रेस (Congress) इससे ज्यादा चिंतित है. करप्शन के खिलाफ हुए जनआंदोलन से निकली यह पार्टी की फिलहाल दिल्ली और पंजाब में सरकार है. धीरे-धीरे यह पार्टी देश के अन्य हिस्सों में फैलना चाह रही है. इसी क्रम में वह कई राज्यों में चुनाव लड़ रही है.
इसको लेकर एक खास ट्रेंड देखने को मिल रहा है. जहां भी यह पार्टी राजनीति में एंट्री लेती है वहां के विपक्षी दल को खा जा रही है. खासकर कांग्रेस को. दिल्ली और पंजाब में कांग्रेसी खंडहर पर ही आम आदमी पार्टी ने अपनी सियासत की इमारत खड़ी की है. केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के इसी ट्रेंड को हम विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं.
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डेब्यू में ही AAP ने कर दिया था धमाका
आम आदमी पार्टी ने पहली बार केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली के सियासी पिच पर बैटिंग शुरू की. उसकी ओपनिंग धमाकेदार थी. इस चुनाव में 69 सीटों पर आम आदमी पार्टी लड़ी. पहले ही चुनाव में उसे 29.49 फीसदी वोट मिले. 70 सीटों वाली विधानसभा में वह 28 सीट जीतने में सफल रही. चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी की इस उपलब्धि का बड़े से बड़े सियासी पंडित अनुमान लगाने में नाकाम रहे.
सत्ताधारी कांग्रेस को 24.55 फीसदी वोट मिले और उसे सिर्फ 8 सीटों पर संतोष करना पड़ा. चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा वोट मिले. 33.07 फीसदी वोटों के साथ वह 31 सीट जीत पाई. और इसी चुनाव से शुरू हुई आम आदमी पार्टी की राजनीति.
इसके पहले चुनाव में (2008 में) कांग्रेस को 40.31 फीसदी वोट मिले थे वहीं बीजेपी 36.34 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रही थी. 2013 के चुनाव में इस नई पार्टी ने दोनों दलों के वोट शेयर में सेंध लगाई. कांग्रेस को ज्यादा डेंट किया.
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दिल्ली में चली केजरीवाल की लहर
दो साल बाद ही दिल्ली में फिर से विधानसभा चुनाव हुए. इस बार चमत्कार हो गया. इस चुनाव में लोगों ने आम आदमी पार्टी को कांग्रेस का विकल्प मान लिया. इस चुनाव में 54.30 फीसदी वोट हासिल करके आम आदमी पार्टी ने 67 सीटों पर जीत हासिल की. कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया. वह एक भी सीट जीतने में नाकाम रही. वोट शेयर भी घटकर 9.7 फीसदी पर पहुंच गई. हालांकि, बीजेपी के वोट शेयर में बड़ी गिरावट नहीं हुई. 32.2 फीसदी वोट हासिल कर बीजेपी सिर्फ 3 सीट जीत पाई.
इसके बाद 2020 के चुनाव में कांग्रेस और कमजोर हो गई. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी 53.57 फीसदी वोट हालिस करके 62 सीटें जीतने में सफल रही. बीजेपी को 38.51 फीसदी वोट मिले. उसने 8 सीटों पर जीत हासिल की. कांग्रेस एक बार फिर खाता खोलने में नाकाम रही. उसका वोट पर्सेंटेज भी गिरकर 4.26 फीसदी पर पहुंच गया.
पंजाब तक भी पहुंच गया AAP का तूफान
कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी ने यह खेल पंजाब में दोहराया. वह सिर्फ दूसरे चुनाव में ही पंजाब में सरकार बनाने में सफल रही. 2017 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने राज्य के चुनाव में दस्तक दी. केजरीवाल की यह पार्टी 23.7 फीसदी वोट हासिल करके 20 सीटें जीतने में सफल रही. दूसरे चुनाव में ही उसने सत्ता हासिल कर लिया.
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2022 के चुनाव से पहले पंजाब की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाली कांग्रेस आपसी कलह के दौर से गुजर रही थी. शिरोमणि आकाली दल पर पहले से ही करप्शन के आरोप लगे थे. ऐसे में राज्य में हुए चतुष्कोणीय संघर्ष में 42. 01 फीसदी वोट हासिल कर 117 सीटों वाली विधानसभा में 92 सीट जीतने में केजरीवाल की पार्टी सफल रही. कांग्रेस को सिर्फ 22.98 फीसदी वोट मिले. उसे 18 सीटों पर संतोष करना पड़ा. शिरोमणि आकाली दल 18.38 फीसदी वोट हालिस कर सिर्फ 3 सीटें जीत पाई. 6.60 फीसदी वोट के साथ बीजेपी के हाथ सिर्फ 2 सीटें लगीं.
पहली बार आम आदमी पार्टी ने गुजरात, हिमाचल और गोवा में भी दस्तक दी है. इन राज्यों में भी कांग्रेस कमजोर हो रही है और बीजेपी सत्ता में है. ऐसे में सियासी पंडित मान रहे हैं कि कांग्रेस नेतृत्व रणनीति तौर पर कमजोर है इसका फायदा भविष्य में आम आदमी पार्टी बन सकती है. अगर देश के एक या दो राज्यों में और आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाती है तो वह सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत विकल्प बनकर उभर सकती है.
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जानें, देश में कैसे धीरे-धीरे कांग्रेस को 'खा' रही है आम आदमी पार्टी!