हिस्टेरेक्टॉमी (Hysterectomy) के बारे में आपने सुना होगा, सर्जरी के माध्यम से शरीर से गर्भाशय (What Is Hysterectomy) हटाने की प्रक्रिया को हिस्टेरेक्टॉमी कहा जाता है. कई देशों में जहां पहले हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी का बहुत अधिक प्रचलन था, अब उन देशों में ये सर्जरी कम हो गई हैं. लेकिन, भारत (Indian Women Health) में स्थिति कुछ और ही है...
हाल ही में जर्नल ऑफ मेडिकल एविडेंस में छपे एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में 25 से 49 साल की महिलाओं (Indian Women Hysterectomy) में से 4.8% का गर्भाशय निकाला जा चुका है, जिसमें कृषि श्रमिकों में सबसे अधिक यानी 6.8% प्रसार (Hysterectomy In India) देखा गया है.
कब पड़ती है हिस्टेरेक्टॉमी कराने की जरूरत?
आमतौर पर गर्भाशय में ट्यूमर होने, गर्भाशय का बढ़ने या ढीला पड़ने, श्रोणि में लंबे समय तक दर्द, अत्यधिक या लगातार रक्तस्राव होना (मेंस्ट्रुअल ब्लीडिंग), एंडोमेट्रियोसिस, फाइब्रॉएड, गर्भाशय कैंसर, गर्भाशय ग्रीवा या अंडाशय में कैंसर, प्रोलैप्स और यूटेराइन से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए यह सर्जरी की जाती है. लेकिन बिना किसी ठोस कारण के गर्भाशय निकाला जाना एक चिंता का विषय है..
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बिना ठोस कारण के सर्जरी
इस स्टडी में अहम क्षेत्रीय विविधताएं सामने आई हैं, रिपोर्ट्स की मानें तो दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में क्रमशः 12.6% और 11.1% की उच्चतम प्रसार दर दर्ज की गई है, वहीं असम में सिर्फ 1.4%. बता दें कि इन सर्जरी में से 67.5% निजी स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं में आयोजित की जाती हैं, जिससे मुनाफे के लिए कमजोर महिलाओं के शोषण के बारे में नैतिक चिंताएं पैदा होती हैं. इसके अलावा सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाएं, जिनका मकसद हेल्थ केयर तक पहुंच में सुधार करना है, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे कुछ राज्यों में कथित तौर पर दुरुपयोग की जाती हैं, जिससे गैर जरूरी सर्जरी होती हैं.
सोशियो-इकॉनमिक फैक्टर
यह स्थिति सामाजिक-आर्थिक और व्यावसायिक असमानताओं को उजागर करती है. रिपोर्ट्स के मुताबिक सामाजिक-आर्थिक फैक्टर इसमें अहम रोल अदा करता है. ग्रामीण महिलाओं में शहरी महिलाओं की तुलना में 30% अधिक गर्भाशय निकलवाने की संभावना होती है. वहीं खेत में काम कर रहे मजदूरों के लिए खास तौर से कड़ी मेहनत और कीटनाशक के संपर्क में आने के कारण भी ऐसा हो रहा है. इसके अलावा शिक्षा भी इस प्रवृत्ति को प्रभावित करती है, कम शिक्षा स्तर वाली महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं और अमीर लेकिन कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए प्रोसीजर को अफोर्ड करने की अधिक संभावना होती है.
बेवजह की हिस्टेरेक्टॉमी से बचना है जरूरी
इस स्टडी के नतीजोंं से पता चलता है कि गैर जरूरी हिस्टेरेक्टॉमी और उसके लॉन्ग टर्म इफेक्ट (मेनोपॉज, ऑस्टियोपोरोसिस और कार्डियोवेस्कुलर रिस्क) को रोकने के लिए प्रिवेंटिव केयर और अर्ली डायग्नोसिस कितना जरूरी है. रिसर्चर्स महिलाओं को उनकी हेल्थ और ट्रीटमेंट ऑप्शन के बारे में जानकारी के साथ सशक्त बनाने की सलाह देते हैं. इसके लिए जागरूकता जरूरी है.
तुरंत ध्यान देना है जरूरी
इस स्टडी में इन असमानताओं को दूर करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप पर जोर दिया गया है. इसके लिए पब्लिक हेल्थकेयर सिस्टम को बढ़ाना, गाइनेकोलॉजिकल काउंसलिंग तक पहुंच बढ़ाना, आक्रामक सर्जरी पर निर्भरता को कम करने के लिए मेंस्ट्रुअल और रिप्रोडक्टिव हेल्थ के बारे में जागरूकता बढ़ाना जरूरी है.
इसके अलावा अनैतिक प्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए निजी स्वास्थ्य सेवा प्रथाओं और बीमा योजनाओं की सख्त निगरानी जरूरी है. साथ ही लेबर इंटेंसिव सेक्टर में काम करने की स्थिति में सुधार और कीटनाशकों के हार्मफुल रिस्क को कंट्रोल करने पर ध्यान देना जरूरी है.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर्स से संपर्क करें.)
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Hysterectomy: भारत में महिलाएं क्यों निकलवा रही हैं गर्भाशय? डरा रहे हैं स्टडी के खौफनाक आंकड़े