Smita Patil की जिंदगी भी किसी फिल्म की कहानी की तरह है. महाराष्ट्र के बड़े राजनीतिक घराने में पैदा हुईं स्मिता ने फिल्मी दुनिया में बड़ा मुकाम तय किया. दमदार अभिनय से अलग स्मिता निजी जिंदगी में भी अपने दिल की सुनती थीं. उन्होंने राज बब्बर के साथ लिव इन में रहने का फैसला किया था, जो उस दौर में बहुत बोल्ड समझा गया. स्मिता की जिंदगी बहुत अलग थी, जानें उनके बारे में सब कुछ यहां.
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सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए सरकार ने 1985 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था. इसके अलावा, स्मिता को दो बार नेशनल अवॉर्ड भी मिला. भूमिका और चक्र में उनके अभिनय के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. चक्र के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था.
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पर्दे पर अपने सहज अभिनय से स्मिता ने लाखों फैंस बनाए. उन्होंने चरणदास चोर से फिल्मों की दुनिया में डेब्यू किया था. श्याम बेनेगल की फिल्मों ने स्मिता को अलग पहचान दी. बेनेगल कहते हैं, 'मंथन फिल्म में उन्होंने गांव की लड़की की भूमिका की थी. वह उस दौरान सेट पर ग्रामीणों की ही तरह रहती थीं और जमीन पर बैठ जाती थी. स्मिता का लुक इतना सिंपल था कि कोई भी उन्हें पहचान नहीं पाता था.'
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फिल्मी दुनिया की चकाचौंध से अलग स्मिता पाटिल का झुकाव सामाजिक कार्यों की ओर भी था. स्मिता ने 80 के दौर में कई महिला प्रधान फिल्मों में काम किया. इन फिल्मों में महिलाओं से जुड़े मुद्दे उठाए गए थे. नेशनल अवॉर्ड से मिली प्राइज मनी भी उन्होंने दान में दी थी. स्मिता खुद को फेमिनिस्ट कहती थीं और वह मुंबई में महिला संगठनों से जुड़ी भी थीं.
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स्मिता पाटिल की मुलाकात राज बब्बर से भीगी पलकों के सेट पर हुई थी. जल्द ही स्मिता शादी-शुदा राज बब्बर के प्यार में पड़ गईं. उन्होंने राज बब्बर के साथ रहना भी शुरू कर दिया था. हालांकि, उस दौरान इसके लिए उन्हें बहुत आलोचना भी झेलनी पड़ी.
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राज बब्बर के साथ उनके रिश्तों को लेकर उनकी मां काफी नाराज थीं. स्मिता ने मां की नाराजगी भी मोल ली और प्यार में दिल की सुनी. हालांकि, राज बब्बर के साथ जल्दी ही उनके मतभेद भी शुरू हो गए. बेटे प्रतीक बब्बर के जन्म के बाद उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई और आखिरकार 13 दिसंबर 1986 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
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स्मिता पाटिल की आखिरी इच्छा थी कि उन्हें सुहागन की तरह सजाकर विदा किया जाए. लेखिका मैथिली राव ने अपनी किताब में लिखा, 'स्मिता ने एक बार मजाक में मेकअपमैन से कहा था कि मैं मर जाऊं, तो सुहागन की तरह सजाना. स्मिता की आखिरी इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हें सुहागन की तरह सजाया गया.'