आईआईटी बीएचयू के पूर्व छात्र आचार्य जयशंकर नारायणन ने परिवर्तन की एक दिलचस्प कहानी पेश की है. कभी इंजीनियरिंग की दुनिया में अपना जीवन बिताने वाले आचार्य अब अपना जीवन वेदांत और संस्कृत की गहन शिक्षाओं को समर्पित कर रहे हैं. नारायणन की यात्रा प्रतिष्ठित आईआईटी-बीएचयू से शुरू हुई, जहां उन्होंने 1992 में अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की.
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टाटा स्टील में की नौकरी
इसके बाद उनका प्रोफेशनल करियर शुरू हुआ और उन्होंने टाटा स्टील में जॉब की. 1993 में जब वे अमेरिका चले गए तो उनके जीवन की दिशा ने एक अप्रत्याशित मोड़ ले लिया. यहीं पर उनकी मुलाक़ात स्वामी दयानंद सरस्वती के गहन ज्ञान से हुई जिनकी वेदांत की शिक्षाएं उन्हें बहुत प्रभावित करती थीं.
नारायणन ने एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में बताया, "मैं स्वामी दयानंद सरस्वती का शिष्य हूं. मैं तीन साल तक गुरुकुलम में रहा. उससे पहले मैंने 4 साल तक आईआईटी-बीएचयू में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की." इस मुलाकात ने उनके भीतर एक आध्यात्मिक चिंगारी जलाई और उन्हें दार्शनिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में गहराई से उतरने के लिए प्रेरित किया.
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1995 में भारत लौटकर ली वेदांत और संस्कृत की शिक्षा
1995 में नारायणन भारत लौट आए और गुरुकुलम में आवासीय पाठ्यक्रम में शामिल हो गए. उन्होंने खुद को वेदांत और संस्कृत के गहन अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया और खुद को इतना ज्ञानवान बनाया कि आज इन प्राचीन विषयों के शिक्षक बन चुके हैं.
अपनी यात्रा पर विचार करते हुए नारायणन ने पाया कि आईआईटी में प्रवेश जैसी शैक्षणिक उपलब्धियां हासिल कर शुरुआत में जरूरी था लेकिन धीरे-धीरे उनका प्रभाव कम होता गया. उन्होंने एएनआई को बताया, "सभी उपलब्धियां केवल कुछ समय के लिए बड़ी लगती हैं लेकिन कुछ समय बाद यह सामान्य लगने लगता है और आप अपने अगले लक्ष्य के लिए काम करना शुरू कर देते हैं. जब मैंने आईआईटी में प्रवेश लिया तो यह एक बड़ी उपलब्धि की तरह लगा, लेकिन मेरे जैसे कई अन्य लोग थे जिन्होंने वहां पहुंचने के लिए प्रवेश परीक्षा पास की. उसके बाद यह कोई बड़ी बात नहीं लगी."
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Acharya Jaishankar Narayanan
IIT से वेदांत तक का सफर... क्यों आचार्य जयशंकर नारायणन ने मोटी सैलरी वाली जॉब की बजाय चुना आध्यात्म का रास्ता?