यूपीएससी की सफलता की कहानी में कुछ गहन प्रेरणा से भर देती हैं और इंसान सोचने के लिए मजबूर हो जाता है कि कैसे अभावों के बीच भी निरंतर प्रयास और समर्पण के दम पर हम अपनी मंजिल हासिल कर सकते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी आईएएस गोविंद जायसवाल की है...
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उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक संघर्षशील परिवार में जन्मे गोविंद के पिता नारायण जायसवाल रिक्शा चलाकर परिवार का पालन-पोषण करते थे. अपनी आय बढ़ाने के लिए वह राशन की दुकान पर भी काम करते थे. शुरुआत में तो सबकुछ ठीक था लेकिन बाद में काफी आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा. इसके बावजूद नारायण ने बच्चों की पढ़ाई को प्रभावित नहीं होने दिया.
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गोविंद के शुरुआती साल मुश्किलों से भरे रहे. एक कमरे में रहते हुए जहां बिजली भी एक विलासिता थी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. आसपास के लोगों ने ताने मारने का कोई मौका नहीं छोड़ा और यहां तक कहा कि वह अपने पिता की तरह ही रिक्शा चलाएंगे लेकिन उनकी सफलता ने सबके मुंह पर ताला जड़ दिया. बचपन की एक घटना ने उनका जीवन पूरी तरह से बदल दिया.
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11 साल की उम्र में गरीबी की वजह से उन्हें अपमान सहना पड़ा जब उन्हें एक दोस्त के घर से भगा दिया गया. तब उनके एक दोस्त ने उन्हें समझाया कि ग़रीबों के साथ समाज में अक्सर ऐसा ही व्यवहार होता है और उन्हें नीचा दिखाया जाता है. दोस्त ने उन्हें सलाह दी कि एक प्रतिष्ठित पद ही उन्हें इस तरह से व्यवहार से बचा सकता है. एक आईएएस अधिकारी को समाज सम्मान की नजर से देखता है, यह सुनकर उन्होंने उसी दिन आईएएस अधिकारी बनने की ठान ली.
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ग्रेजुएशन की पढ़ाई खत्म होने के बाद गोविंद यूपीएससी की तैयारी में जुट गए लेकिन भीड़-भाड़ वाले घर में पढ़ाई करना मुश्किल था तो वह कोचिंग के लिए दिल्ली चले गए. सीमित संसाधनों के बावजूद उनके परिवार ने उनकी हरसंभव मदद की. लेकिन पैसे की इतनी कमी थी कि कई बार वह बिना खाना खाए रहे और बच्चों को गणित पढ़ाकर अपना खर्च चलाया. उनके पिता को अपनी जमीन तक बेचनी पड़ गई.
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साल 2006 में उनके दृढ़ संकल्प ने रंग दिखाया और उन्होंने 46वीं रैंक के साथ यूपीएससी क्रैक की और 22 साल की उम्र में आईएएस बनकर अपना सपना पूरा किया. अपनी पहली सैलरी से उन्होंने अपने बीमार पिता का इलाज करवाया . गोविंद जायसवाल फिलहाल भारत सरकार के हायर एजुकेशन डिपार्टमेंट में संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत हैं.
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रिक्शा चलाने वाले के बेटे ने कैसे क्रैक की UPSC? रुला देगी इस IAS की कहानी