डीएनए हिंदी: भारत और पाकिस्तान के बीच बांग्लादेश की आजादी (Bangladesh Mukti Sangram) को लेकर साल 1971 में हुए युद्ध (1971 India Pakistan War) खत्म हुए 51 साल होने जा रहे हैं. शुक्रवार को देश इस युद्ध में जीत का 51वां विजय दिवस (Vijay Diwas) मनाने जा रहा है, लेकिन यदि आपको कोई ये कहे कि यह युद्ध दो देशों के बीच की तनातनी का नहीं बल्कि उनके सेनाप्रमुखों के बीच महज 1,000 रुपये के 'उधार' का था तो क्या कहेंगे? दरअसल उधार चुकाने का यह किस्सा इस युद्ध के दौरान भारतीय सेना प्रमुख रहे फील्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ (Field Marshal Sam Manekshaw) की हाजिरजवाबी से जुड़ा हुआ है, जिसे उनके और तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल याहया खान (General Yahya Khan) के बीच का 'बाइक कनेक्शन' भी कहा जाता है. आइए आपको बताते हैं क्या था वो किस्सा, जिसमें जनरल मानेकशॉ ने कहा था कि याहया खान ने 1,000 रुपये नहीं दिए, बदले में आधा देश दे दिया.
आजादी से पहले एकसाथ तैनात थे मानेकशॉ और याहया खान
दरअसल जनरल मानेकशॉ और जनरल याहया खान साल 1947 से पहले ब्रिटिश राज के दौरान एकसाथ भारतीय फौज में अधिकारी के तौर पर काम करते थे. बंटवारे के दौरान दोनों अधिकारी दिल्ली में सेना मुख्यालय (Delhi Army Headquarter) में तैनात थे. इस दौरान दोनों आपस में बहुत अच्छे दोस्त भी बन गए थे और काफी समय एकसाथ बिताया करते थे. मानेकशॉ के पास उस समय एक शानदार मोटरबाइक थी, जो बेहद कम लोगों के पास होती थी. यह मोटरबाइक याहया खान को बेहद पसंद थी.
पाकिस्तान जाते समय याहया ले गए थे बाइक
स्वतंत्रता के बाद जब देश दो हिस्सों में विभाजित हो गया तो आधी भारतीय फौज भी पाकिस्तान को दे दी गई. जनरल याहया खां ने भी पाकिस्तान जाने का निर्णय लिया. उन्होंने जनरल मानेकशॉ से अपनी मोटरबाइक बेचने का आग्रह किया. जनरल मानेकशॉ की बेटी माया दारूवाला (Field Marshal Sam Manekshaw Daughter Maya Daruwala) ने मीडिया से बातचीत में एक बार इस किस्से का जिक्र किया था. उन्होंने बताया कि मानेकशॉ ने अपनी बाइक बेचने से इनकार कर दिया, लेकिन बार-बार आग्रह करने पर वे उसे बेचने को तैयार हो गए.
पाकिस्तान जाकर भेजनी थी याहया को बाइक की कीमत
मानेकशॉ ने बाइक की कीमत 1,000 रुपये लगाई. याहया खां ने पाकिस्तान जाकर यह रकम जल्द ही भेजने का वादा किया. इसके बाद वह मोटरबाइक लेकर पाकिस्तान चले गए, लेकिन उन्होंने कभी भी सैम को यह रकम नहीं भिजवाई.
युद्ध में जीत से खत्म हुआ 24 सालों का इंतजार
मानेकशॉ ने इस उधार का जिक्र साल 1971 में ढाका में पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण करने के बाद किया. उन्होंने मजाक में अपने साथी अधिकारियों से कहा, मैंने याहया खान की तरफ से 1,000 रुपये की रकम का चेक भेजने का इंतजार 24 साल तक किया. उन्होंने वह चेक नहीं भेजा. आखिर याहया खान ने अपना आधा देश देकर 1947 में लिया गया यह उधार चुका दिया है.
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Vijay Diwas 2022: क्या था भारत और पाकिस्तान के जनरल का अनोखा बाइक वाला किस्सा