डीएनए हिंदी: नवजात बच्चे के लिए मां का दूध ही सर्वोत्तम आहार है. यह लाइन सरकार ने कितनी बार और कई तरीकों से बेचने की कोशिश की है लेकिन इस पर डिब्बाबंद दूध बेचने वालों की मार्केटिंग भारी पड़ रही है. WHO और UNICEF ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है. आठ देशों में किए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है.
फॉर्मूला मिल्क थोपने की साजिश
रिपोर्ट के मुताबिक, फॉर्मूला मिल्क बाजार ने बहुत ही सोची-समझी साजिश के तहत योजनाबद्ध तरीके से माता-पिता के नवजात बच्चों की दूध पीने की आदतों के फैसलों को प्रभावित किया है. परिजनों को इस बात के लिए तैयार किया जा सके कि वो मां के दूध को कमतर आंकें और बाजार में बिक रहे डिब्बाबंद दूध को बेहतर समझें, इसके लिए प्रायोजित रिसर्च प्रकाशित की गई.
ऑनलाइन हेल्पलाइन बनाई गई, साथ ही डिब्बाबंद दूध को प्रोमोट करने के लिए मुफ्त गिफ्ट बांटे गए. यहां तक कि डॉक्टर्स और हेल्थ केयर वर्कर्स को भी तैयार किया गया कि वो नए माता-पिता को ऐसी सलाह दें जो उन्हें डिब्बा बंद दूध या फॉर्मूला मिल्क को इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करे. दुनियाभर में फॉर्मूला मिल्क का बाजार 55 बिलियन डॉलर से बड़ा है, यानी करीब 41 खरब रुपये का कारोबार है.
इन देशों में किया गया सर्वे
अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनीसेफ कई देशों की सरकारों, हेल्थ केयर वर्कर और बेबी फूड इंडस्ट्री से इस मार्केटिंग पर लगाम लगाने की अपील कर रहा है. यही वजह है कि 8500 माता-पिता के इंटरव्यू और 300 हेल्थ केयर वर्कर्स के इंटरव्यू के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है. बांग्लादेश, मेक्सिको, मोरक्को, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, चीन, यूनाइटेड किंगडम और वियतनाम, इन आठ देशों में यह सर्वे तैयार किया गया है.
इस दौरान सामने आया कि यूनाइटेड किंगडम में 84% माताओं को फॉर्मूला मिल्क की जानकारी थी जबकि चीन में 97 प्रतिशत और वियतमान में 92 प्रतिशत माताओं को फॉर्मूला मिल्क के बारे में बताया गया था. सर्वे में शामिल एक तिहाई महिलाओं ने बताया कि उन्हें किसी ना किसी हेल्थकेयर वर्कर ने ब्रांड का नाम लेकर फॉर्मूला मिल्क खरीदने और इस्तेमाल करने की सलाह दी थी.
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क्या आपने भी सुना है, 'फॉर्मूला मिल्क से बढ़ती है बच्चे की इम्युनिटी'? भ्रामक है यह दावा
यूनीसेफ के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर कैथरीन रसेल के मुताबिक, फॉर्मूला फीडिंग को लेकर किए जा रहे झूठे और भ्रामक दावे ब्रेस्टफीडिंग की आदतों को बदल सकते हैं जबकि मां और बच्चे दोनों की सेहत के लिए स्तनपान ही सबसे अच्छा है. सर्वे में यह भी समझने की कोशिश की गई कि इस तरह की एडवरटाइजिंग का कैसा असर पड़ रहा है.
बांग्लादेश में 98% तो मोरक्को में 49% महिलाएं केवल ब्रेस्टफीडिंग को ही बेहतर मान रही हैं. हालांकि इसके बावजूद स्तनपान को लेकर किए जा रहे भ्रामक दावे महिलाओं पर बुरा असर डाल रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनियों के भ्रामक प्रचार ये बताते हैं कि जन्म के पहले दिन के बाद से ही फॉर्मूला मिल्क फायदेमंद होता है. यह भी प्रचार किया जाता है कि केवल स्तनपान से बच्चे का पेट नहीं भरता. दावा यह भी है कि फॉर्मूला मिल्क के Ingredients बच्चे की इम्युनिटी बढ़ाते हैं. फॉर्मूला मिल्क से बच्चे का पेट भर जाता है और ब्रेस्ट मिल्क की क्वालिटी समय के साथ-साथ खराब हो जाती है.
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क्या सच है?
हालांकि हकीकत कुछ और ही कहती है. जन्म के पहले घंटे में स्तनपान बहुत जरूरी होता है. 6 महीने तक स्तनपान के अलावा बच्चे को किसी और चीज की जरूरत नहीं है. बच्चे को दो वर्ष की उम्र तक स्तनपान कराया जा सकता है. इन सबसे जीवन भर के लिए बच्चे की इम्युनिटी की नींव मजबूत होती है और मोटापे से भी बचाव होता है.
स्तनपान को बच्चे की पहली वैक्सीन कहा जाता है. इसमें मौजूद तत्व बच्चे को जन्म के समय की कई बीमारियों से बचाने का काम करते हैं. अगर मां बच्चे को नियमित ब्रेस्टफीडिंग करवाती है तो मां को भविष्य में डायबिटीज, मोटापे और कैंसर का खतरा कम रहता है लेकिन इन सब फायदों के बावजूद केवल 44% बच्चों को 6 महीने की उम्र तक स्तनपान नसीब हो पाता है. पिछले दो दशक में स्तनपान तो नहीं बढ़ा लेकिन इसी वक्त में फॉर्मूला मिल्क की सेल दोगुने से ज्यादा बढ़ गई है.
ब्रेस्टफीडिंग को प्रोमोट करने की जरूरत
WHO के मुताबिक, फॉर्मूला मिल्क के नाजायज प्रमोशन को रोकने के लिए कानून बनाए जाने चाहिए और उन्हें कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए. ब्रेस्टफीडिंग को प्रोमोट करने वाले काम करने चाहिए. इसके लिए मेटरनिटी लीव और पेटरनिटी लीव का वक्त बढ़ाने की जरूरत हो तो उसे बढ़ाया जाए. डॉक्टर्स को ऐसे प्रोमोशन लेने से मना किया जाए तो फॉर्मूला मिल्क को बेचने की वकालत करते हैं.
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मां के दूध का नहीं है कोई विकल्प, WHO को क्यों जारी करनी पड़ी चेतावनी?