डीएनए हिंदी: आमतौर पर 12-13 साल की उम्र में बच्चों से कठिन कामों या ज़्यादा गंभीरता की अपेक्षा नहीं की जाती. हालांकि, श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa ramanujan) ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने पूत के पांव पालने में दिखने वाली कहावत को इस छोटी उम्र में ही चरितार्थ करना शुरू कर दिया था. इतनी कम उम्र में ही रामानुजन ने गणित की बड़ी-बड़ी पहेलियों को पल भर में सुलझाने और नई-नई मैथमैटिकल थ्योरम बनाने को अपना शगल बना लिया था.
आप यहां यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि ये सब करने से पहले रामानुजन की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी. शायद यही कुछ वजहें थीं कि श्रीनिवास रामानुजन न सिर्फ़ भारत के बल्कि विश्व के सबसे महान गणितज्ञों में शुमार हुए. उनकी पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं श्रीनिवास के बारे में कुछ रोचक तथ्य:
शुरुआती जीवन
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म तमिलनाडु के इरोड में 22 दिसंबर 1887 को हुआ था. उनके पिता साड़ी की दुकान पर काम करते थे. रामानुजन के बारे में एक और रोचक बात कही जाती है कि तीन साल के हो जाने के बावजूद वह बोल नहीं पाते थे. उनके परिवार वाले यह मानने लगे थे कि यह बच्चा गूंगा ही रह जाएगा. इसी बीच 1889 में चेचक का प्रकोप फैला. रामानुजन और उनके सभी भाई बहन इस भयंकर बीमारी की चपेट में आए. लोगों को लगा कि अब तो बच्चों का बचना मुश्किल ही है. रामानुजन के बाकी भाई-बहन इस बीमारी की चपेट में आकर मर भी गए, लेकिन रामानुजन ठीक हो गए.
मां के पेट से ही सीखकर आए थे गणित!
रामानुजन इस कदर प्रतिभाशाली थे कि मात्र 12-13 साल की उम्र में उन्होंने अडवांस ट्रिग्नॉमेट्री याद कर ली थी और इसी के आधार पर वह खुद थिअरम बनाने लगे थे. इतना ही नहीं, खुद 7वीं कक्षा में पढ़ने वाले रामानुजन ग्रैजुएशन तक के छात्रों को पढ़ाने का माद्दा रखते थे.
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दोस्त की दी किताब ने रामानुजन को बना दिया 'गणितज्ञ'
रामानुजन की प्रतिभा और गणित में उनकी रुचि को देखते हुए उनके एक दोस्त ने उन्हें गणित की एक किताब दी थी. किताब का नाम था 'अ स्नॉपसिस ऑफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर ऐंड अप्लाइड मैथमैटिक्स'. लिखने वाले का नाम था जॉर्ज शूब्रिज कार. इस किताब में हजारों थ्योरम थीं. कुछ वेरिफाइड नहीं थीं तो कुछ पूरी तरह सिद्ध नहीं थीं.
रामानुजन ने अपनी गणितज्ञता की शुरुआत इसी किताब से की. उन्होंने न सिर्फ़ इन थ्योरम का काम पूरा किया बल्कि खुद की हजारो थ्योरम भी साबित कीं. इसी शुरुआत ने रामानुजन को रास्ता दिखाया और इस दुनिया को छोड़ने से पहले रामानुजन ने लगभग 3900 गणितीय थ्योरम दीं और उन्हें साबित भी किया.
फेल हुए तो छिन गई स्कॉलरशिप
बचपन में बीमारी झेलने वाले रामानुजन जब बड़े हुए तो उन्हें पैसों की तंगी ने घेर लिया. साल 1904 में मद्रास यूनिवर्सिटी में उन्हें स्कॉलरशिप मिलनी थी, लेकिन गणित से इतर विषय में फेल हो जाने के कारण रामानुजन के हाथ से वह स्कॉलरशिप भी जाती रही. साल 1910 की बात है, रामानुजन गंभीर रूप से पैसों की तंगी से गुजर रहे थे. इसी बीच उन्होंने इंडियन मैथमैटिकल सोसायटी के सचिव आर रामचंद्र राव को इंटरव्यू दिया. शुरुआत में रामचंद्र राव रामानुजन को समझ नहीं पाए, लेकिन बाद में उन्हें रामानुजन की क्षमता का अहसास हुआ तो उन्होंने आर्थिक मदद की.
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फिर नहीं रुके रामानुजन
साल 1911 में रामानुजन का पहला रिसर्च पेपर पब्लिश हुआ और धीरे-धीरे उन्हें पहचान मिलने लगी. उन्हें लगा कि अब उन्हें विदेश जाकर पढ़ाई करनी चाहिए. इसलिए उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर्स को चिट्ठियां लिखनी शुरू कीं. पहले तो दो चिट्ठियों का जवाब नहीं मिला. साल 2013 में जीएच हार्डी ने रामानुजन को जवाब दिया और उन्हें अपने साथ काम करने के लिए लंदन बुला लिया.
हार्डी ने कहा 'सबसे महान गणितज्ञ'
जी एच हार्डी ने उन दिनों गणितज्ञों की क्षमता मापने के लिए 0 से 100 अंकों वाला एक पैमाना बनाया. इस पैमाने पर हार्डी ने खुद को सिर्फ 25 अंक दिए, जर्मनी के महान गणितज्ञ डेविज गिल्बर्ट को 80 और श्रीनिवास रामानुजन को पूरे के पूरे 100 नंबर दिए.
गणित को क्या दिया?
इतनी कम उम्र में ही रामानुजन ने लगभग 3900 थ्योरम दीं. उनकी इनफाइनाइट सीरीज उनके महत्वपूर्ण कामों में से एक थी. जब उनकी मौत हुई तो उनकी आलमारी पर तीन नोटबुक और कुछ पन्ने मिले. इन्हीं नोटबुक में इनफाइनाइट सीरीज का भी जिक्र है. रामानुजन ने अपने इस नोटबुक में 1/pi को इनफाइनाइट सीरीज में प्रदर्शित करने के 17 तरीके लिख रखे थे. उनके नोटबुक में लिखे हजारों थ्योरम और उनके नतीजे आज भी दुनियाभर के गणितज्ञों को प्रोत्साहित करते हैं और गणित के क्षेत्र में उनका मार्गदर्शन करते हैं.
बीमारी से शुरुआत, बीमारी से अंत
बचपन में भी रामानुजन चेचक जैसी बीमारी से जूझ चुके थे. ऐसी ही एक बीमारी उनकी जवानी के दिनों भी उनकी मुश्किल बनी. साल 1919 में वह हेपेटिक अमीबासिस बीमारी से ग्रसित हुए और भारत लौट आए. भारत लौटने के बाद टीबी ने उन्हें जकड़ लिया. बीमारियों के जाल ने रामानुजन को ऐसा उलझाया कि सिर्फ 32 साल की उम्र में इस महान गणितज्ञ ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
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Srinivas Ramanujan
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