डीएनए हिंदी: दो बूंद जिंदगी की...ये दो बूंदें जिंदगी के लिए कितनी जरूरी हैं ये तो आप जानते ही हैं. साल 2014 से पहले इस पोलियो को देश से भगाने के लिए कितने जागरुकता अभियान चलाए जाते थे. टीवी, अखबारों में ऐड दिए जाते थे. घर-घर जाकर पांच साल से छोटी उम्र के बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाई जाती थी. तब कहीं जाकर हमारे देश को इस पोलियो रूपी राक्षस से छुटकारा मिला और 2014 में भारत को पोलियो फ्री देश घोषित किया गया लेकिन हमारे पड़ोसी देश के हालात ऐसे नहीं हैं. जी हां पाकिस्तान अब भी पोलियो की चपेट में है.
यह बात जितना हैरान करती है उतनी ही चिंताजनक भी है कि वहां के बच्चे अब भी इस खतरे से जूझ रहे हैं. यही वजह है कि वहां यानी कि पाकिस्तान में एंट्री से पहले वहां जाने वाले टूरिस्ट को पोलियो ड्रॉप पिलाई जाती है. हम यह बात काफी पहले से सुनते आ रहे थे लेकिन अब 21वीं सदी में इस तरह की बात परेशान करती है. जब चंडीगढ़ की संगीता बलूनी ने अपना एक्सपीरियंस शेयर किया तो हम हैरान रह गए कि आज भी पाकिस्तान पोलियो को नहीं हरा पाया है.
संगीता जी क्रिसमस के मौके पर करतारपुर कॉरिडोर घूमने के लिए पहुंची थीं. पाकिस्तान जाने की एक्साइटमेंट बहुत थी लेकिन वहां पहुंचकर अकेले घूमना एक अलग ही एक्सपीरियंस था.
पोलियो ड्रॉप पिलाने की बात लगी थी मजाक
आमतौर पर यह सुनने में बड़ा ही अटपटा लगेगा कि किसी देश में जाने से पहले पोलियो ड्रॉप पिलाई जाए. क्योंकि यह तो पांच साल से छोटे बच्चों को पिलाई जाती है. संगीता जी ने बताया, हम अपने पेपर्स लेकर अंदर जाने की फॉर्मैलिटीज पूरी कर रहे थे इतनें एक आर्मी के जवान ने आकर कहा कि मैडम अब आपको पोलियो ड्रॉप पिलाई जाएगी. मैं यह सुनकर हंस पड़ी कि सर आप कैसा मजाक कर रहे हैं लेकिन जब मैं आगे पहुंची तो यह एक कड़वी हकीकत थी. उन्होंने एक-एक यात्री को पोलियो ड्रॉप पिलाई और बाकायदा एक सर्टिफिकेट भी दिया. इस पर लिखा था वैक्सिनेटेड फॉर पोलियो.
पोलियो ड्रॉप पीने के बाद मैंने उनसे पूछा कि आखिर ऐसा किया क्यों जाता है तो उन्होंने बताया कि पाकिस्तान POLIO फ्री नहीं है. वहां से हमारे देश में किसी भी तरह की बीमारी घुसपैठ न कर ले बस इसी बात का ध्यान रखते हुए यात्रियों को पोलियो ड्रॉप पिलाई जाती है.
कैसा था Pakistan घूमने का एक्सपीरियंस
संगीता जी ने बताया, जब हम करतार पुर कॉरिडोर के लिए भारत की सीमा पार कर पाकिस्तान की बस में बैठे तो एक अलग ही अहसास था. बस से उतरे तो सभी को पाकिस्तान इमिग्रेशन की तरफ से पीले रंग का विजिटर कार्ड दिया गया. यह कार्ड हमारे भारतीय होने की पहचान थी. पाकिस्तानी यात्रियों को वहां नीले रंग का कार्ड दिया जाता है. यहां एंट्री की फीस के तौर पर बीस डॉलर यानी कि करीब 15,00 रुपए लिए जाते हैं. बात करें वहां के सैनिकों की तो वे काफी मददगार हैं. वे अकेले घूमने पहुंचे यात्रियों की बहुत मदद कर रहे थे.
गुरुद्वारे के अंदर जाने से पहले सुरक्षाकर्मी सभी को निर्देश देते हैं और बताते हैं कि वहां आप क्या कर सकते हैं और क्या नहीं. जैसे कि वहां से आप सोशल मीडिया पर कोई LIVE नहीं कर सकते है और न ही वीडियो कॉल पर बात कर सकते हैं. हां आप वीडियो बनाकर अपने फोन में लेकर जा सकते हैं. वहां घूमने का एक निर्धारित समय है. नियम तय है कि दिन ढलने से पहले आपको बॉर्डर पार कर अपने देश पहुंचना होता है. वापसी के दौरान भी सभी यात्रियों की चेकिंग होती है ताकि पक्का किया जा सके कि जो यात्री गए थे वही वापस आए हैं या नहीं. इसके अलावा गुरुद्वारे में घूमने के लिए दिया कार्ड भी वापस ले लिया जाता है. मतलब यह कि निशानी के तौर पर आप केवल आस-पास की दुकानों से खरीदा सामान लेकर ही लौट सकते हैं.
उन्होंने बताया, पाकिस्तान के लोकल लोग वहां खासतौर पर भारतीय लोगों से मिलने के लिए भी वहां आते हैं. एक पाकिस्तानी महिला ने तो मेरे साथ तस्वीर खिंचवाने की रिक्वेस्ट भी की थी. उनका कहना था कि यहां भारतीय लोगों को देखकर और उनसे मिलकर अच्छा लगता है. इसके अलावा बंटवारे के समय अलग-अलग देशों में बंट गए परिवार के लोग भी अब इस कॉरिडोर के जरिए अपनों से मिल पाते हैं. भारतीय बुजुर्ग वहां जाकर अपने बचपन की यादें ताजा करते भी नजर आते हैं.
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