डीएनए हिंदी : प्रतीक्षा दसवीं में हैं. इस साल बोर्ड की परीक्षा देंगी. दो सालों से प्रतीक्षा स्कूल से दूर हैं. अपनी दोस्तों से दूर हैं. हाई स्कूल के उनके दो महत्वपूर्ण साल बीत गए हैं. उन्हें लगता है कि स्कूल में पढ़ाई आसान थी. दोस्तों से बात-चीत हो सकती थी. लिखने और समझने का काम आसानी से किया जा सकता है. ऑनलाइन क्लासेज़ (Online Classes) में ऐसी बहुत सारी सुविधाएं ख़त्म हो गयी हैं.
प्रतीक्षा की तरह मोहित भी दसवीं में हैं. नोएडा के निजी विद्यालय में पढ़ने वाले मोहित उम्र के इस महत्त्वपूर्ण दौर में अपने सहपाठियों को बेइंतहा मिस कर रहे हैं. वे मम्मी-पापा के क़िस्सों में शामिल 'ग्रोइंग अप विद फ्रेंड्स के' पहलू को मिस कर रहे हैं. दोस्तों के साथ होने के अनुभव से पीछे छूट जा रहे हैं.
बारह साल के अयान इस साल छठी कक्षा में जाएंगे. स्कूल न जाने से उन्हें गेम खेलने के लिए ज़्यादा समय मिल जाता है पर वे अपने बेस्ट फ्रेंड से दो साल में दो बार भी नहीं मिल पाए हैं.
ओमिक्रोन (Omicron) के डर से घर में क़ैद तीसरी कक्षा के त्रयाक्ष बालकनी से दोस्तों से बात करते रहते हैं. दो सालों में स्कूल के दोस्तों की याद धुंधली पड़ने लगी है.
क्या कहते हैं पेरेंट्स
प्रतीक्षा के पिता और प्राध्यापक प्रभात रंजन अपनी बच्ची के स्कूल न जाने पर कहते हैं कि “इन दो सालों में प्रतीक्षा का अपना सर्कल छोटा हो गया है. वह कमरे तक सीमित रह गयी है, हालांकि ऑनलाइन क्लासेज़ (Online Classes) के साथ उसने ई-बुक पढ़ने की एक अच्छी आदत विकसित की है पर इन-पर्सन लर्निंग के जो फायदे थे वह ऑनलाइन में नदारद है. बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी लगभग ख़त्म हो गई है. पीयर ग्रुप और सहपाठियों के साथ व्यक्तित्व के विकास के लिए जो बॉन्डिंग हुआ करती थी, उसका ह्रास हो गया है. किशोर होते बच्चे अपने दोस्तों के साथ खुला करते थे. कोविड लॉकडाउन ने उनसे यह मौलिक सुविधा भी छीन ली है.”
मुमताज़ बारह साल के बच्चे की मां हैं और प्राइमरी के बच्चों को ट्यूशन देती हैं. मुमताज़ का कहना है कि जब से ऑनलाइन क्लास (Online Class) शुरू हुए हैं बच्चे इंटरनेट से चिपकने लगे हैं. उनकी स्क्रीन टाइमिंग बेहद बढ़ गयी है, साथ ही स्कूल का जो अनुशासन था वह भी ग़ायब हो गया है.
स्मिता हाउसवाइफ़ हैं और दो स्कूल जाते बच्चों की मां हैं. पिछले दो सालों से दोनों बच्चे ऑनलाइन क्लास अटेंड कर रहे हैं. क्लास के साथ-साथ उनके ट्यूशन और एक्स्ट्रा क्लास भी चल रहे हैं. स्मिता कहती हैं "कभी-कभी तो मुझे अच्छा लगता है कि दोनों बच्चे मेरे सामने हैं. मेरे साथ अब सुबह उठने की बाध्यता भी नहीं है जो बच्चों के रेग्युलर स्कूल के दौरान हुआ करती थी पर इन दो सालों में मेरा 'मी टाइम' खो गया है. बच्चों के स्कूल जाने के बाद का वक़्त मेरा अपना हुआ करता था, वह वक़्त कहीं गायब हो गया है. इन दो सालों में मुझे याद नहीं है कि मैंने अपने शौक से जुड़ा हुआ कोई भी काम किया हो.”
स्कूलों के हालात और बच्चों की पढ़ाई आंकड़ों में
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलांगना समेत देश के कई राज्यों में स्कूल अब भी बंद हैं, हालांकि इस दरमियान मुंबई ने यह फ़ैसला लिया कि 1 फरवरी से मुंबई के सारे स्कूल प्री प्राइमरी सहित सारी कक्षाओं के लिए खोले जाएंगे. अन्य राज्यों में अब भी स्कूल बंद हैं. उत्तर प्रदेश के स्कूल फिलहाल 15 फरवरी तक के लिए बंद हैं. दिल्ली में गुरूवार को दिल्ली आपदा प्रबंध प्राधिकरण (DDMA) की बैठक हुई. इस बैठक में लोगों की जीविका के बारे में फ़ैसला लेते हुए वीकेंड कर्फ्यू ख़त्म कर दिया गया पर दिल्ली के स्कूलों को खोलने पर कोई फैसला नहीं हुआ. इससे पहले 26 जनवरी को दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री श्री मनीष सिसोदिया ने कहा था कि “अब स्कूल नहीं खुले तो बच्चे एक पीढ़ी पिछड़ जाएंगे.”
यूनिसेफ़ (UNICEF) की मार्च 2021 में छपी एक रिपोर्ट का कहना था कि दुनिया भर में 16 करोड़ 80 लाख बच्चे साल भर या उससे अधिक से कोविड 19 (COVID) के लॉक डाउन की वजह से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. इस रपट के छपने के अगले महीने दुनिया भर के कोविड की दूसरी लहर का प्रकोप छा गया था और ओमिक्रोन तीसरी लहर लेकर आया है.
17 सितम्बर 2021 को कोविड की दूसरी लहर बीतने के बाद यूनिसेफ़ (UNICEF) द्वारा ज़ारी किए गए दूसरे रपट के मुताबिक़ स्कूली बच्चे दूसरी लहर तक 1.8 ट्रिलियन घंटे की स्कूली शिक्षा से वंचित रहे थे.
ऑनलाइन क्लास में टेक्निकल ग्रोथ तो हो रहा है पर इमोशनल नहीं
यूनिसेफ़ के दिए हुए आंकड़ों, बच्चों की बातों और पेरेंट्स के मतों को सुनने के बाद दिल्ली के एक सरकारी विद्यालय में बतौर प्रधानाचार्य कार्यरत अनीता भारती जी से बात की गयी. बच्चों के स्कूल खुलने के सवाल पर अनीता जी छूटते ही कहती हैं कि "बच्चों के स्कूल जितनी जल्दी हो सके कोविड (COVID) गाइडलाइंस का पालन करते हुए खुल जाने चाहिए. उनके साथ इतना अधिक प्रयोग अब उचित नहीं. ऑनलाइन क्लास (Online Class) में उनका टेक्निकल ग्रोथ तो हो रहा है पर मौलिक भावनात्मक विकास बाधित हो गया है. स्कूल में क्लास अटेंड करना, टीचर्स के बोलने पर लिखते जाना मोटर स्किल को बेहतर करता है. ऑनलाइन क्लास में इसकी कमी ख़ास तौर पर देखी जा सकती है. स्कूलों को बनाया गया होगा तो कुछ सोचकर ही बनाया गया होगा. विद्यार्थियों को एक ख़ास माहौल देने की संकल्पना होगी. ऑनलाइन क्लास के ज़रिये यह सब पूरा नहीं किया जा सकता है. इन सबमें सबसे ज़्यादा नुक़सान वंचित तबके के बच्चों का हो रहा है जिनके पेरेंट्स के पास ऑनलाइन क्लास (Online Class) के लिए आवश्यक डिजिटल डिवाइस उपलब्ध नहीं हैं, हालांकि दिल्ली सरकार ने अपने प्रदेश में कोविड लॉकडाउन के दौरान ऐसे बच्चों की पढ़ाई बाधित होने से बचाने के लिए हार्डकॉपी की ओर भी ज़ोर दिया पर कुछ भी स्कूल की कमी को पूरा नहीं कर सकता है. "
इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी के प्रेसिडेंट इलेक्ट और पटना के नामी मनोचिकित्सक डॉक्टर विनय कुमार बच्चों के स्कूलों के बंद रहने और उनकी मानसिक दशा पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं , "स्कूल का खुलना पेरेंट्स से अधिक बच्चों के लिए आवश्यक है. बच्चों की रियल लाइफ़ ख़त्म हो गई है. सब कुछ वर्चुअल हो गया है. पहले वे अपने दोस्तों से हाथ मिलते थे, गले मिलते थे, बातें करते थे, बहसें करते थे, यह सब वास्तविकता का अहसास था. ऑनलाइन क्लासेज (Online Classes) में यह छिन गया है. वेब वर्ल्ड या वर्चुअल दुनिया एक लूप की तरह है जिसमें आप सरकते जाते हैं. बच्चे लगातार स्क्रीन से जुड़े रहते हैं. क्लास के अतिरिक्त की ऑनलाइन गतिविधियों में भी भयंकर इज़ाफ़ा हुआ है. उन्हें समय से पहले और ज़रूरत से अधिक वेब एक्सपोज़र मिल गया है. टीनेज बच्चों में ख़ासकर एक क्राइसिस शुरू हो गया है. उनकी इमोशनल क्राइसिस को पेरेंट्स नहीं भर पा रहे हैं. इस वजह से बच्चे अकेले और दूर होते जा रहे हैं. वे समय से पहले कॉन्फ्लिक्ट, स्ट्रेस, एंग्जायटी, पर्सनालिटी डिसऑर्डर सरीखी समस्याओं से जूझ रहे हैं. जब से कोविड (COVID) का दूसरा लहर आया है, एक भी दिन ऐसा नहीं गया है जब कोई बच्चा मेरे पास कंसल्टेशन के लिए न आया हो. यह संख्या पहले से बहुत अधिक है. बहुत ज़रूरी है कि अब स्कूलों को खोल दिया जाए."
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