डीएनए हिंदी: भारत में 2019 में सड़क दुर्घटनाओं के कारण 1.51 लाख से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई. आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग 70 प्रतिशत दुर्घटनाओं में युवा शामिल थे.
2020 में लापरवाही के कारण हुई सड़क दुर्घटनाओं से संबंधित मौत के 1.20 लाख मामले दर्ज किए गए. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कोविड-19 लॉकडाउन के बावजूद हर दिन औसतन 328 लोगों ने दुनिया को अलविदा कह दिया. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने 2020 की वार्षिक 'क्राइम इंडिया' रिपोर्ट में खुलासा किया कि सड़क दुर्घटनाओं में तीन साल में 3.92 लाख लोगों की जान चली गई.
आए दिन छोटी सी भूल के चलते कोई मां अपना बेटा खो रही है, किसी का घर उजड़ रहा है़, बच्चे अनाथ हो रहे हैं. ऐसा ही एक हादसा साल 2014 में नोएडा एक्सप्रेस-वे पर हुआ था. इस हादसे ने कई जिंदगियों को बदल कर रख दिया.
साल 2009 में बिहार के कैमूर से एक गरीब किसान परिवार का बेटा आंखों में कई सपने लेकर लॉ में ग्रेजुएशन करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली आया था. इस शख्स का नाम था- राघवेंद्र कुमार.
दिल्ली में राघवेंद्र के कई दोस्त बने लेकिन इन सब के बीच एक शख्स ऐसा भी था जिसके साथ उनका रिश्ता कुछ खास था. परिवार से दूर राघवेंद्र को कृष्ण कुमार में अपने बड़े भाई नजर आते थे. देखते-देखते कई साल बीत गए और दोनों के रिश्ते मजबूत होते चले गए.
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साल 2014 में राघवेंद्र रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त थे कि तभी उन्हें खबर मिली की कृष्ण का एक्सीडेंट हो गया है. आनन-फानन में कुछ अन्य दोस्तों के साथ राघवेंद्र कृष्ण को लेकर अस्पताल पहुंचे. वे किसी काम के चलते अपनी बाइक पर सवार होकर ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे से गुजर रहे थे कि तभी पीछे से एक ट्रक ने उनकी बाइक को टक्कर मार दी. इस दौरान उन्होंने हेलमेट नहीं पहना था और इसके चलते उनके सिर पर गहरी चोट आई. 8 दिन तक अस्पताल में इलाज चलने के बाद उनके दोस्त की सांसों की डोर आखिरकार टूट ही गई.
कृष्ण के परिवार ने अपने इकलौते लड़के को खो दिया और राघवेंद्र ने अपने भाई जैसे दोस्त को. राघवेंद्र कहते हैं कि कृष्ण के होते हुए इतने सालों में कभी उन्हें परिवार की कमी नहीं खली थी.
'वो नजारा मैं भूल नहीं पाया'
हालांकि अस्पताल में उन्हें यह बात इतनी महसूस नहीं हुई. राघवेंद्र बताते हैं कि दुख तो बहुत था लेकिन जैसे ही कृष्ण के घर पहुंचा तो वहां का नजारा देख दिल सहम गया. चारों ओर चीखें गूंज रही थीं. एक लाचार मां की आंखें अपने बच्चे के मृत शरीर को जिस तरह से देख रही थी वो नजारा मैं भूल नहीं पाया. बस उस दिन ठान लिया कि आज के बाद कोई मां इस तरह अपने बच्चे को ना देख पाए इसकी पूरी कोशिश करूंगा. मैं इस देश में बदलाव लेकर आऊंगा.
ऐसे बने हेलमेट मैन
राघवेंद्र ने इस घटना के बाद तय किया के वो अपने दोस्त की तरह किसी को मरने नहीं देंगे और उस दिन जन्म हुआ 'हेलमेट मैन' का. वही हेलमेट मैन जो आज भी आपको सड़क चलते लोगों को एक किताब के बदले हेलमेट बांटता नजर आ जाएगा.
दरअसल राघवेंद्र जानते थे कि अगर उस दिन उनके दोस्त ने हेलमेट पहना होता और वह ट्रक ड्राइवर सड़क नियमों से परिचित होता तो आज कृष्ण उनके साथ होते. यही वजह है कि राघवेंद्र ने बाइक सवार लोगों को फ्री में हेलमेट देने की मुहिम छेड़ दी. वह रोजाना अपने घर से दर्जनों हेलमेट लेकर निकलते और ऐसे लोगों को हेलमेट दान किया करते हैं जिन्होंने सफर के दौरान हेलमेट नहीं पहना होता था. देखते-देखते महीने बीत गए. इस बीच राघवेंद्र रोज की तरह ही लोगों के बीच हेलमेट बांट रहे थे तभी उनकी नजर एक बच्चे पर पड़ी. यह बच्चा सड़क पर मूंगफली बेच रहा था. राघवेंद्र ने बच्चे से बात की तो हैरान रह गए, मूंगफली बेचने वाला यह बच्चा अंग्रेजी में भी बात कर सकता था. बच्चे की काबिलियत देख राघवेंद्र ने उसे एक किताब खरीद कर दे दी और अपने काम को जारी रखते हुए आगे निकल गए.
हफ्ते बीते, एक दिन अचानक राघवेंद्र को अननोन नंबर से फोन आया. फोन के दूसरी तरफ से एक महिला ने बताया कि उनकी दी हुई किताब से मूंगफली बेचने वाले उस बच्चे ने परीक्षा में फर्स्ट क्लास हासिल की है. इस घटना ने राघवेंद्र के अंदर एक नई उम्मीद जगा दी. उन्होंने सोचा कि एक किताब देने से उन्होंने देश के एक नागरिक को जागरूक करने में मदद की है अब वह आगे चलकर खूब पढ़ेगा और बाकि चीजों के साथ-साथ ट्रैफिक नियमों के प्रति भी जानकारी हासिल करेगा.
बस उस दिन के बाद से उन्होंने फ्री में हेलमेट देना बंद कर दिया. इसके बदले उन्होंने 'एक किताब दो और हेलमेट लो' की नई मुहिम शुरू की. राघवेंद्र किताब के बदले लोगों को हेलमेट दिया करते हैं ताकि उन किताबों को वह अन्य गरीब बच्चों में बांट सकें और इससे देश में शिक्षा भी बढ़ती रहे.
अपनी मुहिम के बारे में हमसे बात करते हुए राघवेंद्र ने बताया कि अब तक वह 55,000 से ज्यादा हेलमेट का वितरण कर चुके हैं. इसके अलावा सड़क सुरक्षा को लेकर भी लाखों निःशुल्क पुस्तकों का वितरण हो चुका है.
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इस मुहिम में खर्च भी बहुत आता होगा?
इस सवाल का जवाब देते हुए राघवेंद्र ने बताया, 'इस मिशन के लिए मुझे अपनी नौकरी तक छोड़नी पड़ी है. नौकरी के दौरान जो जमा पूंजी पास थी वह भी खत्म हो चुकी है. ग्रेटर नोएडा में एक फ्लैट था उसे भी बेचना पड़ा.'
कहते हैं कि मानवीय कार्यों की अलख जगाने में दौलत नहीं जज्बे की जरूरी होती है इस बात को सही साबित करते हुए राघवेंद्र ने कहा, 'मुझे खुशी होती है. ऐसे सैंकड़ों परिवार हैं जो आज मेरे बांटे हेलमेट का प्रयोग कर रहे हैं और अपनी रक्षा कर रहे हैं.'
अभी भी कायम है हिम्मत
इन 8 सालों में राघवेंद्र ने अपना घर, जमीन, जमा पूंजी सब कुछ दांव पर लगा दिया, पत्नी के गहने भी बेच दिए. पत्नी की ज्वैलरी बेचकर उन्होंने एक ट्रक हेलमेट खरीदे और इन्हें उन लोगों तक पहुंचाया जिनके चालान बिना हेलमेट के काटे गए थे. मुहिम ने तेजी पकड़ी तो पुश्तैनी जमीन तक बेचनी पड़ी. हालत ऐसी है कि आज राघवेंद्र बैंक के 13 लाख के कर्ज में डूबे हुए हैं लेकिन हिम्मत अभी भी कायम है.
परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी कर चुके हैं तारीफ
राघवेंद्र कहते हैं, 'इस सब के बीच एक बात जो हमेशा दुख देती है वह यह कि इन 8 सालों में मुझे प्रशंसा तो झोली भरकर मिली लेकिन आज तक आर्थिक रूप से किसी ने कोई सहयोग नहीं किया. परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी तारीफ कर चुके हैं, कई बड़े मंचों पर सम्मानित हो चुका हूं लेकिन सरकार या किसी सामाजिक संगठन ने कोई सहयोग नहीं किया. मेरे साथ जो प्रशानिक अधिकारी जुड़ते हैं, वह भी हेल्प करने की जगह उल्टा मुझसे हेलमेट मांगते हैं. कहते हैं मदद कैसे करें आज तक आप दुनिया भर में फ्री हेलमेट बांटते आए हैं लेकिन हमें तो कुछ नहीं दिया. एक काम कीजिए कुछ हेलमेट यहां रख जाइए.'
‘Free Helmet for Bikers’
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) January 13, 2020
After losing his friend in a road accident, Shri Raghavendra Singh made his goal to make people aware of road safety. #RoadSafetyHeroes #RoadSafetyWeek pic.twitter.com/uQhAGex8it
जरूरत पड़ी तो गांव की जमीन भी बेच दूंगा
उन्होंने बताया, 'लोगों के फोन आते हैं हमारा बेटा 18 साल का होने वाला है आप उसके लिए हेलमेट भिजवा दीजिए. अभिनेता सोनू सूद ने एक न्यूज चैनल पर मेरी कहानी को लोगों के सामने रखा. मेरा मिशन एक चुनौती है, उस चुनौती का मैं दिन-रात डटकर सामना करता हूं. मेरे मां-बाप को इसके बारे में नहीं पता है उनकी नजरों में एक नालायक बेटा बनता जा रहा हूं लेकिन जरूरत पड़ी तो गांव की जमीन भी बेच दूंगा. पता नहीं शायद मेरा दोस्त ही मुझे इस लायक बना रहा है शायद ये उसी की दी हुई हिम्मत है.'
'हेलमेट मैन' राघवेंद्र कुमार आपसे कर रहे हैं अपने दिल की बात, उनकी बात मानेंगे तो आपको भी मिलेगा यह खास गिफ्ट#helmetman #roadsafety #roadsafetyawareness @helmet_man_ https://t.co/lUKhUQl8cP
— DNA Hindi (@DnaHindi) February 3, 2022
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Helmet Man: दोस्त की मौत ने बदल दी इस शख्स की जिंदगी, नौकरी छोड़ी और घर बेचा, अब बचा रहे हैं जीवन