डीएनए हिंदी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendr Modi) आगामी 17 सितंबर को अपना 72वां जन्मदिन मनाने जा रहे हैं. इस दिन वे देश को एक ऐसा तोहफा देंगे, जिसकी पिछले 70 साल से कमी महसूस की जा रही है. प्रधानमंत्री अपने जन्मदिन पर अफ्रीका के नामीबिया (Namibia) से लाए जा रहे 8 चीतों (Cheetah) को मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के कुनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में छोड़ेंगे.
इसके साथ ही एक बार फिर भारतीय धरती से विलुप्त हो चुका दुनिया का सबसे तेज प्राणी यहां के जंगलों में कुलांचे भरता दिखाई देने लगेगा. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल (Bhopal) से करीब 400 किलोमीटर दूर मौजूद कुनो में इस दिन को ऐतिहासिक बनाने के लिए कई साल से तैयारियां चल रही हैं, जो अब आखिरी चरण में हैं. आइए इन तैयारियों के बारे में जानते हैं.
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पहले जानिए नामीबिया से कुनो तक कैसे सफर करेंगे चीते
- 16 सितंबर को नामीबिया से 8 चीते लेकर स्पेशल कार्गो विमान उड़ान भरेगा
- 17 सितंबर के 5 नर व 3 मादा चीते लेकर यह विमान जयपुर एयरपोर्ट पहुंचेगा
- 02 हेलिकॉप्टर यहां से इन चीतों को लेकर कुनो पालपुर के लिए उड़ान भरेंगे
- 42 मिनट का रहेगा जयपुर से कुनो तक इन चीतों का सफर
हेलिकॉप्टर से पहुंचेंगे पीएम, बनाए गए 10 हेलीपैड
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय वायुसेना (Indian Airforce) के हेलिकॉप्टर से सीधे कुनो नेशनल पार्क पहुंचेंगे. इसके लिए श्योपुर PWD विभाग ने 10 हेलीपैड बनाए हैं. इनमें से 5 कुनो नेशनल पार्क के भीतर और 5 हेलीपैड कराहल बनाए गए हैं. मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक जेएस चौहान के मुताबिक, इसके बाद प्रधानमंत्री पार्क के अंदर बनाए गए 5 वर्ग किलोमीटर के विशेष बाड़े के गेट नंबर-3 से चीतों को अंदर छोड़ेंगे. इसके लिए खास व्यवस्थाएं की गई हैं. उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री के चीतों को विशेष बाड़ों में छोड़े जाने के बाद उन्हें करीब एक महीने तक क्वारंटीन रखा जाएगा.
कुनो पार्क में ऐसे होगा चीतों का रिहेबिलेशन
- कुनो पार्क में शुरुआती 2 से 3 महीने तक चीते 5 वर्ग किमी के संरक्षित एरिया में ही रहेंगे.
- इस एरिया को 8 फीट ऊंची फेंसिंग से घेर दिया गया है, जिसे तीन लेयर में बनाया गया है.
- बाहरी लेयर में सोलर से संचालित करंट छोड़ा गया है, जो बाहरी जानवरों को दूर रखेगी.
- इस संरक्षित एरिया में भी 8 बाड़े बनाए गए हैं, जिनमें चीतों को अलग-अलग रखा जाएगा.
- हर छोटे बाड़े की निगरानी के लिए 4 वॉच टॉवर और 4 पावरफुल कैमरे लगाए गए हैं.
- हर वॉच टॉवर 2 किमी एरिया की निगरानी करेगा, कैमरा 6 किमी तक का नजारा दिखाएगा
- चीतों के स्थानीय वातावरण का आदी होने के बाद यह फेंसिंग हटा दी जाएगी.
शिकार की नहीं होगी कमी, कुत्तों का हुआ विशेष टीकाकरण
चीतों को इस संरक्षित एरिया में शिकार की कोई कमी नहीं होगी. इस एरिया में पहले ही करीब 200 सांभर, चीतल व अन्य जानवर खासतौर पर लाकर बसाए गए हैं. इनकी जनसंख्या बढ़ने लगी है. इससे चीते को शिकार का भरपूर मौका मिलेगा.
इसके अलावा पार्क के चारों तरफ 5 किलोमीटर दायरे वाले गांवों में 1,000 से ज्यादा कुत्तों को एंटी-रेबीज टीके लगाए गए हैं. इससे चीतों के रेबीज का शिकार होने की संभावना कम हो जाएगी. वन अधिकारियों का कहना है कि यदि कोई पागल कुत्ता किसी तरीके से पार्क में घुस गया और वहां मौजूद जानवरों को काट लिया तो वे भी रेबीज का शिकार हो सकते हैं.
यदि चीते ने ऐसे जानवर या पागल कुत्ते का शिकार किया तो वह भी संक्रमित हो सकता है. सितंबर 2013 में एक पागल कुत्ते ने पन्ना टाइगर रिजर्व में तीन साल के एक बाघ P-212 की पूंछ काट ली थी. इसके बाद वहां वन विभाग को बाघों और जंगली जानवरों को एंटी-रेबीज डोज देनी पड़ी थी. इसे ध्यान में रखकर ही इस साल कुनो नेशनल पार्क के चारों तरफ भी अप्रैल से कुत्तों के टीकाकरण का अभियान चलाया गया था.
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चीते के लिए 25 गांवों और 5 तेंदुओं से छिना 'घर'
करीब 740 वर्ग किलोमीटर में बसे कुनो नेशनल पार्क में चीते को बसाने के लिए 25 गांवों के ग्रामीणों और 5 तेंदुओं को अपना 'घर' छोड़ना पड़ा है. इन 25 में से 24 गांव के ग्रामीणों को दूसरी जगह बसाया जा चुका है, जबकि 25वें गांव के विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है.
इसी तरह पार्क के जिस 5 वर्ग किलोमीटर एरिया को चीतों के शुरुआती घर के तौर पर बाउंड्री बनाकर संरक्षित किया गया है, उस एरिया में भी 5 तेंदुए बसे हुए थे. चीते और तेंदुए प्राकृतिक तौर पर दुश्मन होते हैं. इसी कारण इन तेंदुओं को भी पकड़कर दूसरी जगह छोड़ा गया है. इनमें से 4 तेंदुए पकड़े जा चुके हैं, जबकि 1 को पकड़ने का काम अभी भी जारी है.
1952 से विलुप्त घोषित हैं भारत में चीते
भारत में आखिरी चीता साल 1948 में छत्तीसगढ़ के कोरिया स्थित साल के जंगलों में मृत मिला था, लेकिन आधिकारिक तौर पर साल 1952 में चीते को भारत से विलुप्त घोषित किया गया था. इसके बाद साल 2009 से अफ्रीका से भारत में चीते लाने की कवायद शुरू की गई थी. इसे 'अफ्रीकन चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट इन इंडिया' नाम दिया गया था. इस कवायद ने मोदी सरकार के आने के बाद गति पकड़ी और अब चीते दोबारा भारत में दिखने जा रहे हैं.
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