डीएनए हिंदीः  मैं बूचा (Bucha) हूं... यूक्रेन का एक छोटा सा शहर. मेरा इतिहास कई बड़े शहरों से भी सदियों पुराना है. मैंने द्वितीय विश्व युद्ध की भीषण त्रासदी को झेला है लेकिन आज यहां जो कत्लेआम मचा है वैसा कभी नहीं देखा. इंसानियत ने तो दम उस वक्त ही तोड़ दिया था जब 6 साल की बच्ची 'अहम' के इस युद्ध में गोलियों से छलनी कर दी गई. मेरा दिल हर उस हैवानियत का गवाह है जिसे आने वाली पीढ़ियां भी सदियों तक नहीं भूल पाएंगी. कैसे उन्हें इस असहनीय दर्द को सहने की शक्ति मिलेगी. बच्चे जब बड़े होंगे तो पूछेंगे कि लोग इतने हैवान कैसे हो गए. कैसे दुधमुंहे बच्चों से उनके पालनहार ही छीन लिए गए. 

मुझे आज भी वो दिन याद है जब पूरा शहर क्रिसमस पर झूम रहा था. कोरोना महामारी के बाद लोगों के चेहरों पर इतनी खुशी काफी समय बाद दिख रही थी. एक बार फिर मैं उन खुशियों का साक्षी बन रहा था जिसके लिए मेरी पहचान थी. नए साल में तो शहर मानो दुल्हन की तहत सजा हुआ था. एक अलग ही उत्साह में लोग खुशियां बांट रहे थे. सच बताऊं तो मैं भी लोगों को इतना खुश देख फूला नहीं समा रहा था. शायद उन्हें नहीं पता कि नया साल जैसे-जैसे बीतेगा, उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाएगी. 

यह भी पढ़ेंः सड़क पर लाशें, घर बने कब्रिस्तान, आंखों में आंसू...Bucha की तस्वीरें देख दुनिया बोली- मर गई इंसानियत

अब लोग कितने बदल गए हैं. अब ना लोग घर से बाहर निकलते हैं ना एक दूसरे से बात करते हैं. हर किसी की आंखों में अपनों को खोने का दर्द साफ नजर आता है. मेरा दिल भी आहत होता है... कैसे समझाऊं लोगों को कि जो चले गए अब वापस नहीं आएंगे. लोग आएंगे और इस मुश्किल घड़ी में उनका हाथ थामकर कहेंगे कि बस... अब जल्द सब बदल जाएगा... ऐसा सोच भी लें लेकिन नजर फिर एक नई लाश पर पड़ती हैं. सारी उम्मीदें फिर चकनाचूर हो जाती हैं. 

जिस सड़क पर बच्चे साइकिल चलाते थे, अपनों के साथ हाथ में हाथ थामे चलते थे, आज वो सड़कें खून से सनी पड़ी हैं. चारों ओर लाशों के ढेर... उफ्फ ये नजारा मेरे जीवन में दोबारा ना आए. सेना के टैंक जब मेरी छाती पर गुजरते हैं तो रूह अंदर तक सिहर उठती है. मैं अपना दर्द किसे सुनाऊं. कहां हैं वो मानवता के पुजारी जो एक इंसान ही मौत पर ही धरना शुरू कर देते हैं. अंतर्राष्ट्रीय मंचों को क्या मेरा दर्द नजर नहीं आ रहा. आएगा भी कैसे... यहां तो रोने वाले लोगों के आंसू तक सूख चुके हैं. 

यह भी पढ़ेंः Volodymyr Zelensky ने इस्लामिक स्टेट से की रूसी सेना की तुलना, लगाया यह बड़ा आरोप
  
उस नजारे को मैं कैसे भूल पाऊंगा जब पूरा परिवार ही बीच रास्ते गाड़ी में गोलियों का शिकार हो गया. 8 साल की बच्ची जब मौत से पहले चीख रही थी तो चाहकर भी कुछ ना कर सका. मानो वो बच्ची पूछ रही थी कि मेरी क्या गलती है... मैं तो अभी बहुत छोटी हूं. नहीं समझती कि ये राजनीति क्या होती है. क्यों लोग एक दूसरे की जान लेना चाहते हैं... पेट्रोल क्या है... नाटो क्या है... नहीं पता मुझे. मैं तो बस खुले आसमान में उड़ना चाहती हूं. अभी मैंने सपने देखना शुरू ही किया है. क्या अभी से मेरी आवाज बंद हो जाएगी? अगर लोग इतने ही निर्दयी हैं तो नहीं रहना मुझे ऐसी दुनिया में... जब मेरे अपने ही नहीं रहे तो मैं जीकर क्या करूंगी.   

2 अप्रैल को जब 280 से ज्यादा लोगों के शव एक साथ मिले तो दर्द से मैं भी कांप रहा था. काश मैं भी आंख बंद कर कह पाता कि यह सच नहीं सिर्फ सपना है. शायद वक्त को यही मंजूर है. लोगों के दर्द के लिए मेरे पास भी शब्द नहीं हैं. हे प्रभु अब बस भी करो... ऐसे युद्ध का अंत करो जिसमें सिर्फ घर ही नहीं उसमें रहने वाले लोग भी बचें. मुझमें उम्मीदें अभी भी बाकी हैं. एक बार फिर मैं लोगों को फिर खिलखिलाते देखूंगा. युद्ध का अंत चाहे तो जो हो लेकिन मैं एक बार फिर दुनिया की आंख में आंख डालकर कहूंगा कि हां मैंने त्रासदी की भीषण पीड़ा सही है लेकिन इस शहर के लिए जो सपना देखा है वो फिर पूरा होगा. लोग फिर पहले की तरह खिलखिलाएंगे. मैं दुनिया को बताऊंगा कि हां मैंने इस शहर को खंडहर होते देखा था लेकिन लोगों के जज्बे ने मुझे फिर पैरों पर खड़ा कर दिया है. 

गूगल पर हमारे पेज को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें. हमसे जुड़ने के लिए हमारे फेसबुक पेज पर आएं और डीएनए हिंदी को ट्विटर पर फॉलो करें.

Url Title
horrible and emotional story of bucha city of ukraine
Short Title
अब और नहीं सहा जाता... लाशों के ढेर पर कराहते शहर की कहानी नहीं देखी जाती
Article Type
Language
Hindi
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
horrible and emotional story of bucha city of ukraine  
Date updated
Date published
Home Title

अब और नहीं सहा जाता... लाशों के ढेर पर कराहते शहर की कहानी नहीं देखी जाती