डीएनए हिंदी: वो कहते हैं ना, 'एक सपना जादू से हकीकत नहीं बन सकता, इसमें पसीना, दर्द, संकल्प और कड़ी मेहनत लगती है. पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादों को, उसके मुक्कद्दर के सफेद पन्ने कभी कोरे नहीं होते' कुछ सालों पहले एक शख्स ने ऐसा ही एक सपना देखा. नाम था गौरव कुमार. गौरव एक रिसर्च स्कॉलर हैं और अपने दोस्त शिवेंद्र प्रताप के साथ मिलकर 'अभिक्षमता एजुकेशन फाउंडेशन' नाम से एनजीओ चलाते हैं. यह एनजीओ आठवीं क्लास तक के बच्चों को नवोदय, केंद्रीय स्कूलों के लिए मेंटरशिप देता है.
कैसे हुई थी शुरुआत?
2016 में आईआईटी बॉम्बे से पीएचडी करते समय गौरव एक ग्रुप से जुड़े जिसका नाम था 'ग्रुप फॉर रूरल एक्टिविटीज'. इस ग्रुप से जुड़ने के बाद गौरव ग्रामीण इलाकों के करीब रहने लगे. वे लोगों के बीच जाया करते थे यहां उनकी परेशानियों से जुड़कर उनकी समस्याओं का समाधान निकालने की कोशिश करते थे. इस दौरान उनकी नजर इन इलाकों में रह रहे छोटे बच्चों पर पड़ी. ये ऐसे बच्चे थे जो एक बेहतर कल के लिए पढ़ना चाहते थे लेकिन इसके लिए उनके पास ना तो जरिया था और ना ही कोई और रास्ता. गौरव ने सोच लिया था कि वो इन बच्चों को पढ़ाएंगे. उन्होंने ऐसा किया भी. गौरव हर रोज बस्ती में जाते और बच्चों को पढ़ाकर घर लौट आते. हालांकि कुछ समय बाद उनका ध्यान बच्चों के सामने आ रही एक अलग तरह की परेशानी पर पड़ा. वह यह कि ये बच्चे उनकी बात को महज कुछ समय तक ही याद रख पाते थे.
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गौरव बताते हैं, 'बच्चों को पढ़ाते वक्त मैंने गौर किया कि उनका बेस बेहद कमजोर है. यानी जो बच्चा आज आठवीं क्लास में है उसे सातवीं कक्षा के कॉन्सेप्ट्स भी क्लियर नहीं हैं. यही वजह है कि वो मेरी पढ़ाई गई चीजों को समझने से ज्यादा रटने पर ध्यान देते थे जो कि एक सही तरीका बिल्कुल नहीं था. मैंने खुद को थोड़ा और समय दिया और इस परेशानी का हल निकालने के बारे में सोचा. इसके बाद मैंने इन बच्चों के लिए खुद से कोर्स डिजाइन किया. मैंने सोच लिया था कि मैं इन बच्चों को एक नए सिरे से पढ़ाऊंगा. हालांकि राह आसान नहीं थी. मन में बहुत से सवाल थे. समझ नहीं आ रहा था कि कहां से इसकी शुरुआत करूं और कैसे?'
यहां गौरव का साथ दिया उनके दोस्त शिवेंद्र प्रताप ने. हरदोई के रहने वाले शिवेंद्र आईआईटी बॉम्बे से उनके साथ थे. गौरव कहते हैं, 'शुरुआत में पैसों की कमी थी मुंबई में एक्स्ट्रा किराया ना देना पड़े इसलिए हमने शिवेंद्र के घर का एक फ्लोर खाली कर बच्चों के लिए पढ़ने की जगह बनाई. यहां हमने 45 बच्चों से शुरुआत की. ये ऐसे बच्चे थे जो कहने को तो दूसरी-तीसरी क्लास में पढ़ते थे लेकिन उनके साथ भी कंसेप्ट की एकदम वही समस्या थी जो हमने पहले बच्चों के अंदर महसूस की थी. हालांकि बच्चों के मन में पढ़ने की इच्छा थी और हम उनकी इसी इच्छा को अपनी हिम्मत बनाते हुए आगे बढ़ते गए. आज उनमें से कई बच्चे सपनों की उड़ान उड रहे हैं.'
कोविड ने बच्चों की पढ़ाई पर गहरा असर डाला है. इस दौरान स्कूल बंद थे, हर कोई अपने घरों में कैद था. ऐसे में बच्चों की शिक्षा की ओर आपके क्या कदम रहे?
इस सवाल का जवाब देते हुए गौरव ने बताया, 'इसके लिए हमने प्रतिभा मॉडल की शुरुआत की. क्योंकि कई बच्चे ऐसे थे जिनके पास ऑनलाइन पढ़ाई का कोई जरिया नहीं था, ऐसे में हमारी फाउंडेशन से जुड़े टीचर्स डोर टू डोर जाकर बच्चों को पढ़ाया करते थे. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह से ख्याल रखा जाता था. खुले आसमान के नीचे 6-6 बच्चों का एक ग्रुप पहले की तरह ही अपनी पढ़ाई जारी रख रहा था. इसके अलावा बच्चों को लिखित नोट्स दिए जाते थे साथ ही समय-समय पर फाउंडेशन से जुड़े टीचर बच्चों के घर फोन कर उनकी समस्याओं का हल निकालने की कोशिश किया करते थे.'
'इसके अलावा हमने बच्चों तक स्मार्टफोन पहुंचाने का भी रास्ता निकाला. हमने एक कैंपेन चलाया जिसमें हम लोगों से उनके पुराने और खराब स्मार्टफोन लिया करते थे और उन्हें ठीक करा कर गरीब बच्चों तक पहुंचाया जाता था. हालांकि समस्या यहीं खत्म नहीं हुई अब बच्चों के पास स्मार्टफोन थे तो डिजिटल कंटेंट नहीं था. इसके लिए हमने BYJU'S से कोलैबोरेट किया. हम बच्चों तक स्मार्टफोन पहुंचाते थे और BYJU'S डिजिटल कंटेंट.'
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आने वाले 5 सालों में आप खुद को कहां देखते हैं?
गौरव कहते हैं, 'हमने अंकुर नाम के एक बच्चे को पढ़ाया था. जब अंकुर हमारे साथ जुड़ा था, उस वक्त वह पढ़ाई में बेहद कमजोर था. पांचवी क्लास तक हमारे साथ पढ़ने के बाद जब उसने अपने नए स्कूल में एडमिशन के लिए टेस्ट दिया उस वक्त मैंने अंकुर से एक सवाल किया था. मैंने उससे पूछा था कि तुम्हें लगता है कि एडमिशन होगा? इस पर अंकुर ने कहा कि सर क्यों नहीं जो सवाल पेपर में आए वह तो मैं कई बार पढ़ चुका हूं. बस अंकुर की यही बात मुझे हौसला दे गई. एक समय था जब मैं बच्चों की आंखों में एक डर देखा करता था, उनके जहन में एक झिझक रहा करती थी. आज जब मैं बच्चों के अंदर इस विश्वास को देखता हूं तो सोचता हूं कि यही तो मैं चाहता था. पिछले कुछ सालों में हमें अपने इस काम का बेहद पॉजिटिव असर देखने को मिला है. हमारी फाउंडेशन द्वारा पढ़ाए गए बच्चे कई बड़े-बड़े स्कूलों से जुड़े हैं. मुझे विश्वास है कि हम आगे भी ऐसे ही बढ़ते रहेंगे.'
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