डीएनए हिंदी: देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) ज्यादातर मरणोपरान्त ही दिया जाता है. ऐसे में अगर कोई शख्स कहे कि उसका सपना 'परमवीर चक्र' पाने का है तो इसका मतलब हुआ कि वह शख्स खुद अपनी जान हथेली पर लेकर निकला है. कारगिल युद्ध (Kargil War) में 3 जुलाई 1999 को शहीद हुए कैप्टन मनोज पांडे (Captain Manoj Pandey) ऐसे ही एक परमवीर थे जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. कैप्टन मनोज पांडे को उनकी बहादुरी और शौर्य के लिए 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया. जीते जी तो उनका यह सपना पूरा नहीं हुआ लेकिन शायद उन्हें भी यह पता था कि यह सम्मान वह अपनी जान न्यौछावर करके ही हासिल करेंगे. 

कैप्टन मनोज पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हुआ था. 25 जून 1974 को जन्मे कैप्टन मनोज पांडे सिर्फ़ 25 साल की उम्र में ही देश के लिए शहीद हो गए और उनका नाम हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गया. कैप्टन मनोज पांडे का मानना था 'कुछ लक्ष्य इतने अनमोल होते हैं कि अगर आप उन्हें हासिल करने में असफल रह जाएं तो उसमें भी मज़ा आता है.' छोटा-मोटा कारोबार करने वाले गोपीचंद पांडे और मोहिनी पांडे के बेटे मनोज पांडे ने स्कूल से ही अपनी दिशा तय कर ली थी. उन्होंने सैनिक स्कूल से पढ़ाई की. सैनिक स्कूल से पढ़ने की वजह से बॉडी बिल्डिंग और बॉक्सिंग जैसी चीजें उनका शौक बनती गईं. साल 1990 में वह एनसीसी के जूनियर डिवीजन के बेस्ट कैडेट भी चुने गए.

यह भी पढ़ें- Avrodh–The Siege Within वेबसीरीज में भारतीय सेना के अफसर ने ली एंट्री

मां से कहा था बर्थडे पर आऊंगा, तिरंगे में लिपटकर लौटे कैप्टन
डायरी लिखने के शौकीन कैप्टन मनोज पांडे की पर्सनल डायरी में लिखा था, 'अगर मेरे फर्ज के रास्ते में मौत भी आती है तो मैं कसम खाता हूं कि मैं मौत को भी हरा दूंगा.' कैप्टन अपना यह वादा तो नहीं पूरा कर सके लेकिन उन्होंने अपना फर्ज भरपूर निभाया और देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. कैप्टन ने अपनी मां से वादा किया था कि वह अपने जन्मदिन पर घर ज़रूर आएंगे. वह घर आए तो लेकिन जन्मदिन के कुछ दिन बाद वह भी तिरंगे में लिपटकर. वह अपनी मां से किया वादा तो नहीं निभा पाए लेकिन अपने मां-बाप के लिए गर्व का ऐसा मौका छोड़ गए जिससे वह हमेशा के लिए अमर हो गए.

अगर मेरे फर्ज के रास्ते में मौत भी आती है तो मैं कसम खाता हूं कि मैं मौत को भी हरा दूंगा- कैप्टन मनोज पांडे

सेना का अधिकारी बनने के लिए लंबी इंटरव्यू प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) में शामिल होने के लिए जब मनोज पांडे इंटरव्यू देने गए तो उनसे सवाल पूछा गया कि आप सेना में क्यों शामिल होना चाहते हैं? इस पर कैप्टन मनोज पांडे ने जो जवाब दिया, उसने हर किसी को हैरान करके रख दिया क्योंकि जो वह कह रहे थे उसका मतलब था कि मनोज पांडे खुद अपनी मौत चाहते थे.

यह भी पढ़ें- Nupur Sharma के खिलाफ Look Out Notice जारी, जानें क्या होता है ये नोटिस

परमवीर चक्र हासिल करना ही लक्ष्य
मनोज पांडे ने इंटरव्यू पैनल को जवाब दिया, 'मेरा सपना है कि मैं परमवीर चक्र हासिल करूं. सेना में शामिल होने का मेरा मकसद यही है.' कैप्टन मनोज पांडे ने एनडीए की परीक्षा पास कर ली और चार साल तक ट्रेनिंग में रहे. NDA के 90वें कोर्स से ग्रेजुएट होने के बाद उन्हें अपना पहला कमीशन गोरखा राइफल्स की 11वीं बटालियन में मिला.

मई 1999 में जब कारगिल में घुसपैठ शुरू हुई तो कैप्टन मनोज पांडे की बटालियन सियाचिन में अपना डेढ़ साल बिताने के बा लौट रही थी. उस समय तो इस बटालियन को पुणे में पोस्टिंग दी गई थी लेकिन कारगिल के हालात को देखते हुए कैप्टन मनोज पांडे की बटालियन को बटालिक सेक्टर में तैनात कर दिया गया.

यह भी पढ़ें- कौन हैं देश की पहली महिला जासूस? अब तक सुलझा चुकी हैं 80 हजार से ज्यादा केस

खालुबार की लड़ाई और कैप्टन की आखिरी जीत
खालुबार, जुबा और कुकरथाम कुछ ऐसी चोटियां ऐसी हैं कि वहां लड़ाई तो दूर की बात है चढ़ाई करना ही मुश्किल काम है. इस यूनिट की अगुवाई कर रहे थे कर्नल ललित राय. कैप्टन मनोज पांडे ने इस इलाके में दुश्मनों को नाको चने चबवा दिए थे और जुबार टॉप पर भारतीय सेना ने कब्जा कर लिया. बटालिक सेक्टर में भारतीय सेना मुश्किलों का सामना कर रही थी. कई जवान घायल और शहीद हो गए थे. मामला बेहद नाजुक था. कैप्टन पांडे 5वीं प्लाटून के कमांडर थे. उनकी यूनिट को खालुबार की ओर बढ़ने का आदेश मिला. 2 और 3 जुलाई की रात में जब उनकी पलटन आगे बढ़ी तो चारों ओर से दुश्मनों की गोलियां बरस रही थीं.

कुछ लक्ष्य इतने अनमोल होते हैं कि अगर आप उन्हें हासिल करने में असफल रह जाएं तो उसमें भी मज़ा आता है- कैप्टन मनोज पांडे

कैप्टन मनोज पांडे को जिम्मेदारी मिली कि दुश्मनों को खदेड़कर बाहर करें और तिरंगा लहराएं. कैप्टन मनोज पांडे ने ऐसी रणनीति बनाई कि उनकी टीम ने दुश्मनों को घेर लिया. दो पोजीशन पर कैप्टन मनोज पांडे ने आसानी से कब्जा भी कर लिया. तीसरी पर हमले के लिए वह जैसे ही आगे बढ़े, एक गोली ने उनके कंधे को चीर दिया और दूसरी ने उनके पैर को छलनी कर दिया. बुरी तरह घायल होने के बावजूद कैप्टन मनोज पांडे ने चौथी पोजीशन पर भी हमला कर दिया.

तीसरी पोजीशन के बाद कैप्टन मनोज पांडे ने चौथी पोजीशन पर ग्रेनेड फेंक दिया और खालुबार हासिल कर लिया. एक तरफ खालुबार पर तिरंगा लहराया दूसरी तरफ कैप्टन मनोज पांडे अपने सपने को पूरा करने की आखिरी यात्रा पर निकल चुके थे. खालुबार में शहीद हुए कैप्टन मनोज पांडे ने देश के लिए खालुबार हासिल करने के साथ ही अपने लिए परमवीर चक्र भी हासिल कर लिया.

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों पर अलग नज़रिया, फ़ॉलो करें डीएनए  हिंदी गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.  

Url Title
captain manoj pandey kargil war hero who joined army for param vir chakra
Short Title
पढ़िए परम वीर चक्र से सम्मानित कैप्टन मनोज पांडे की कहानी
Article Type
Language
Hindi
Created by
Updated by
Published by
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे कैप्टन मनोज पांडे
Caption

कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे कैप्टन मनोज पांडे

Date updated
Date published
Home Title

कैप्टन मनोज पांडे: परमवीर चक्र के लिए सेना के अफसर बने और कारगिल में शहीद होकर अमर कर दी कहानी