डीएनए हिंदी: अस्सी या नब्बे के दशक में जन्म लिए बच्चों को कहा जाए कि तुम अपने स्कूल की किताब पढ़ो तो वे अपने स्कूल-कॉलेज की किताब कभी नहीं पढ़ना चाहते, लेकिन ऐसा नहीं कि वे कुछ पढ़ना ही नहीं चाहते. वे पढ़ना चाहते हैं लेकिन उनके मन-मुताबिक कुछ पढ़ने को मिले तब और आज की तारीख में ऐसी सामग्रियां, जो किसी उपन्यास या बेस्ट सेलर बुक की तरह रोचक लगे, हैं ही नहीं या बहुत कम हैं और जब ऐसी रोचक या पठनीय सामग्रियां पढ़ने को बच्चों या युवाओं को मिल जाए तो वे इन किताबों को एक या दो दिनों में ही पूरी निबटा देते हैं.

इस किताब में पाठक के पास ऑप्शन है वो किसी लेख या संपादकीय को पढ़ें, उसका विश्लेषण करें और आत्मसात करने के बाद ही दूसरे लेख की तरफ आगे बढ़ें, क्योंकि ये राइट-अप्स 1 घंटे के धारावाहिक के अगले एपिसोड के लिए एक हफ्ते का इंतजार नहीं कराते, बल्कि आप खुद अपने विचारों को पुष्ट होते महसूस कर दूसरे लेख की तरफ बढ़ चलेंगे.

जिंदगी के अनुभव हैं शामिल
राइट-अप्स के लेखक महज 21 की उम्र में आईआईटी में सफल हो चुके थे और इसके बाद आईआईएम और आईएएस (एलॉयड) तो उन्हें बहुत अच्छी तरह पता है कि आज की जेनरेशन को इंतजार नहीं पसंद, उन्हें जल्द खुशी हासिल करनी है और ये खुशी उनके मन मुताबिक चीजों से ही हासिल हो सकती है, तो इन सारी बातों को बहुत करीब से महसूस करते हुए ही उन्होंने राइट-अप्स के हर लेख में व्यावहारिकता का ध्यान रखा है और देश-दुनिया को लेकर उनका जो अनुभव है, उसे प्रस्तुत करने की कोशिश की है.

ये भी पढ़ें- Book Review: अपने समय की सच्ची कविताओं से बना एक जरूरी कविता संग्रह-इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी

युवाओं की पसंद के विषय 
मेरूदंडविहीन व्यक्ति किसी काम का नहीं होता, वैसे ही अनुभवहीन व्यक्ति की लेखनी से निकले हुए विचार घातक होते हैं, क्योंकि संपादकीय समाज का दर्पण होता है, जो समाज की विभिन्न बातों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करता है. उसमें लेखक की कर्मठता और साधना की झलक मिलती है. कहना गलत नहीं होगा कि संपादकीय किसी पत्र की अंतरात्मा होती है, उस अंतरात्मा की आवाज होती है. इसी बात को समझते हुए इस राइट-अप्स को तैयार किया गया है, ताकि बौद्धिकता को एक नई संकल्पनाओं के साथ खुलने और खिलने दिया जाए. 

युवाओं के लिए अरुचिकर पुस्तकें टेस्ट मैच की तरह बोरिंग हैं, उन्हें तो 20-20 मैच देखना है और इसी को ध्यान में रखते हुए लेखक ने कुछ ऐसे सेक्टर्स पर अपनी बात रखी है, जिस पर या तो रुचिकर या दूरदर्शी नजरों से किसी ने लिखा नहीं या लिखा तो अनुभव के अभाव में उन्हें कोई पढ़ना नहीं चाहता. लेखक ने जिन विषयों को चुना है, उन्में प्रमुख हैं- कृषि के क्षेत्र में नये खोज, भारत के हेल्थकेयर सिस्टम का दुनिया में डंका, ड्रोन टेक्नोलॉजी, औद्योगिक क्रांति, स्मार्ट सिटी, फ्यूल एडवांसमेंट, ग्रामीण विकास सहित रूस-यूक्रेन मामलों पर नजर बनाए रखते हुए अन्य विदेशी मामले, जिनसे भारत का सीधा सारोकार है.

ये भी पढ़ें- Book Review : मुगलों और राजपूतों से जुड़े इतिहास के नये पक्ष खोलती है 'औरंगजेब बनाम राजपूत- नायक या खलनायक' किताब

सोच बदलने की कोशिश
आप प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हों या पत्रकार हों या फिर किसी स्टार्टअप से जुड़े हों या फिर आंत्रप्रेन्योरशिप का सपना बुन रहे हों, विचारों की शीथिलता आज बड़ी चुनौती बन चुकी है. इस पुस्तक में आत्मनिर्भर भारत की बात हो या शिक्षा नीति या सरकार के द्वारा देश को एक नई दिशा देने की बात हो, लेखक के विचार हर उस बिन्दु पर एक नया सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दस्तावेज है, जिसे पढ़ने के बाद आप अपनी जरूरत के हिसाब से उसे कहीं भी फिट कर सकते हैं और चाहे विज्ञान हो या व्यवसाय, संस्कृति हो या विकासपरक सोच, इन राइट-अप्स को पढ़ने के बाद युवाओं या पाठकों का विचार जाग्रत होगा, उनकी सोच काफी हद तक प्रभावित होगी ये तय है.

ऐसा नहीं कि इन सेक्टर्स पर किसी ने नहीं लिखा अबतक, लिखा और खूब लिखा लेकिन उन लेखों में स्वजनित अनुभव की कमी दिखती है और समीर कुमार के लेखों में उनके निजी अनुभव हैं, जो उन्होंने लंदन, टोकियो, सिंगापुर सहित कई अन्य देशों में टॉप पॉजीशन पर काम के दौरान सीखे या महसूस किए. इस राइटअप की समीक्षा में इतनी बड़ी-बड़ी बातें कहीं गईं तो ये बस तारीफ करने जैसी नहीं है. 

लेखक का लंबा अनुभव
इसको साकार करने की प्रखर सोच के पीछे बेहतरीन प्रोफाइल वाले समीर कुमार हैं, जो फिलहाल भारत सरकार की संस्था प्रसार भारती के डिजिटल विंग PBNS के हेड हैं. समीर कुमार ने पिछले 3 वर्षों में प्रसार भारती को आगे बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. खास बात यह है कि समीर कुमार ने मई 2019 में डिजिटल प्रसार भारती को PBNS के नाम से शुरू कर एक ब्रांड की तरह स्थापित किया है.

समीर कुमार ने 13-14 वर्षों तक  लंदन, टोक्यो और सिंगापुर में ABN AMRO, Royal Bank of Scotland  और Deutsche Bank में उच्च पदों पर कार्य कर अनुभव हासिल किया है. समीर 2018 में मात्र 38 वर्ष की उम्र में एक रुपये के मासिक वेतन पर देशभक्ति की लालसा के साथ देश की प्रतिष्ठित न्यूज एजेंसियों में से एक हिंदुस्थान समाचार के CEO के रूप में उसे मुकाम तक ले जाने का प्रयास पहले कर चुके हैं.

समीर कुमार के वैश्विक व्यवसायिक परिचालन अनुभव और आध्यात्मिक उत्थान का मेल-जोल ही है ये राइटअप, जो देश की सांस्कृतिक विचारधारा को आनेवाले समय में जन-जन तक पहुंचाने में काफी कारगर होंगे.

एक जमाना वो था, जब पैरेंट्स बच्चों को बुलाने गली में जाते थे, अब तो बच्चा घर में ही मनोरंजन करता है। जरा सोचिए कितना बड़ा चैलेंज है इन बच्चों के बीच उनके इंट्रेस्ट की पुस्तकों को परोसना। समीर कुमार का ये राइट-अप्स युवाओं ही नहीं, हर वर्ग के लोगों को काफी पसंद आएगी, ऐसी उम्मीद है.

लेखक समीर कुमार, आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग और आईआईएम-कोलकाता से एमबीए करने के बाद आईएएस-अलाइड सर्विस छोड़कर लंदन, टोक्यो और सिंगापुर में लगभग 16 साल तक एबीएन एमरो बैंक, ड्यूश बैंक और आरबीएस जैसे दुनिया के टॉप बैंकों में बड़े पदों पर रहे. इस समय वे प्रसार भारती न्यूज सर्विस (पीबीएनएस) के प्रमुख हैं.

ये भी पढ़ें-  Book Review : स्त्री जीवन के संघर्ष का आईना है ‘इस जनम की बिटिया’ किताब की कविताएं

पुस्तक का नाम- ‘FIRST 100 WRITE-UPS’
लेखक- समीर कुमार
प्रकाशक- पीबीएनएस
किताब डिजिटली फ्री है.

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों पर अलग नज़रिया, फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर

Url Title
Book Review of FIRST 100 WRITE-UPS
Short Title
FIRST 100 WRITE-UPS: खास है ये किताब, इसमें हैं विचार, अवसर और समस्याओं के समाधा
Article Type
Language
Hindi
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
Book Review
Caption

Book Review

Date updated
Date published
Home Title

FIRST 100 WRITE-UPS: खास है ये किताब, इसमें हैं विचार, अवसर और समस्याओं के समाधान