बीते हुए वक़्त को अच्छा कहने का रिवाज है. भविष्य अक्सर गुज़रे ज़माने को कोसता नहीं है लेकिन हर बार ऐसा ही हो ये कहां मुमकिन है. 2021 के गुजरने में कुछ ही वक्त बाकी है, जिसे जीभर कोसने का मन करता है. यह साल त्रासदी का साल था. आशा की है कि कभी ऐसा वक़्त दुनिया न देखे. 2021 में कोरोना (Coronavirus) महमारी ने कहर बरपाया था. ऑक्सीजन (Oxygen) सिलेंडर के लिए तरसते लोग, अस्पताल में एडमिट होने के लिए कतार में लगे लोग, दवाइयों के लिए तरसते लोग. हर तरफ़ बेबस और लाचार लोग. ये लोग ही थे जिन्होंने त्रासदी को सहा, झेला और फिर विजयी मुस्कान के साथ उससे उबरे. लेकिन ऐसा था क्या? सांसों को खरीदने की ऐसी होड़ न जाने किस युग में मची होगी. जीवन के 80 और 90 दशक पार कर चुके कई बुज़ुर्ग कहते हैं कि ऐसी महामारी उन्होंने जीवन में कभी नहीं देखी जिसमें इंसान इतना बेबस नजर आया हो.
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हम कितनी सच्चाई से सच को झूठ कह देते हैं. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की किल्लत पर हाहाकार मचा था. देश का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं था ऑक्सीजन की किल्लत न हो. दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, केरल या जम्मू और कश्मीर हर जगह ऑक्सीजन की कमी की बात सामने आई. लोगों को सही वक्त पर ऑक्सीजन नहीं मिल पाया. लोग ऑक्सीजन एजेंसियों के पास कतार में लगे रहे, 24-24 घंटे इंतजार के बाद नंबर आया लेकिन केंद्र सरकार (Union Government) ने संसद में कह दिया कि दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से किसी भी मरीज की मौत नहीं हुई. ये मार्मिक तस्वीर सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हुई थी. एक महिला अपने पति को मुंह से ऑक्सीजन दे रही थी.
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स्वास्थ्य राज्य मंत्री प्रवीण पवार ने संसद में कहा था कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन (Oxygen) की मांग अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई थी. महामारी की पहली लहर के दौरान, इस जीवन रक्षक गैस की मांग 3095 मीट्रिक टन थी जो दूसरी लहर के दौरान बढ़ कर करीब 9000 मीट्रिक टन हो गई. किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने ऑक्सीजन के अभाव में किसी की भी जान जाने की खबर नहीं दी है.
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हकीकत ये थी कि मई और जून के महीने में अस्पतालों में बेड कम पड़ गए थे. कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही थी. परिजन एक बेड के लिए भटक रहे थे. जिन्हें बेड मिला था उन्हें अस्पताल ऑक्सीजन नहीं दे पा रहे थे. ऑक्सीजन की कालाबाजारी की भी कई खबरें सामने आई थीं. यह पहली बार था जब सांसों के लिए ऐसी हाहाकार मची हो. लोगों ने दावा किया था कि प्रशासन मौत की खबरें छिपा रहा है. लेकिन मौत के आंकड़े कहां छिपते हैं. सरकारी आंकड़े कहते हैं कि कोरोना से अब तक देश में 4,80,860 मौतें हो चुकी हैं. लोग इस सच पर सवाल खड़ा करते हैं.
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सांसों का संकट देश ने ऐसा कभी पहले देखा नहीं था. लोग पैसों से जिंदगी खरीदना चाह रहे थे लेकिन सब धरा-धराया रह गया था. टीवी ऑन करें तो रोते-बिलखते चेहरे दिखते थे. तंगहाली दिखती थी. प्रशासनिक उपेक्षा दिखती थी और बेबस लोग दिखते थे. दुनिया भारत को मदद भेज रही थी. दवाइयों से लेकर ऑक्सीजन तक लेकिन ये नाकाफी थे. अस्पतालों पर बोझ इतना था कि हर किसी तक मदद नहीं पहुंचाई जा सकती थी. डॉक्टरों की बेबसी साफ नजर आ रही थी कि क्या करें, जगह हो तो न एडमिट करें. एंबुलेंस स्कैम के भी कई मामले सामने आए.
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डॉक्टरों ने अपने आप को इस युग का देवता साबित किया. लोगों की जान बचाते-बचाते अपनी जान गंवा दी. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना महामारी के दोनों फेज में अब तक 1342 डॉक्टरों ने गंवा दी. डॉक्टर भगवान का रूप है, यह रूप भी बेबस नजर आया. उनके सामने मरीज़ दम तोड़ रहे थे और वे बेबस नजर आ रहे थे.
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कभी सोचा है कि श्मशान या कब्रिस्तान में लाश को जलाने या दफ़नाने के लिए टोकन लेना पड़ेगा? अपनी ही सरकार मौत के आंकड़े छिपाएगी. कोविड से मौत का सर्टिफ़िकेट लेने के लिए परिजन दर-दर भटकेंगे. यह सब हुआ है. कलई खुलने का डर हर सरकार को था. यही वजह है कि हर सरकार ने मौत के आंकड़े छिपाए हैं. मौत के बाद भी कतार में लाशें लगी थीं. ये हाल कश्मीर, दिल्ली से लेकर कन्याकुमारी तक नजर आया. कुछ चीजें छिपती नहीं हैं. अपनों की चीख़ों ने यह साफ कर दिया था मौतें हुईं हैं. महामारी ने बख़्शा किसी को नहीं है.
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पहली बार गंगा में इतनी बड़ी संख्या में तैरती लाशें दिखीं. बनारस, गाजीपुर से लेकर बक्सर तक कई जगहों पर दर्जनों लाशें मिलीं. बिहार सरकार ने कहा कि ये लाशें यूपी से आ रही हैं. यूपी सरकार ने कहा कि लाशें बिहार से आ रही हैं. गाजीपुर के गहमर इलाके में सबसे ज्यादा लाशें देखी गईं. शवों को कुत्ते नोच रहे थे. गिद्ध मंडरा रहे थे. प्रशासन को आनन-फ़ानन में लाशों को जमाकर दफनाना पड़ा. यह महात्रासदी थी, जिसे दुनिया देख रही थी.
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प्रयागराज के संगम तट पर लाशें दफनाई गईं. एक पत्रकार ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि वह अपने बड़े पिता की अंत्येष्टि के लिए प्रयागराज में संगम तट पर गया था. कोरोना की दूसरी लहर में आसपास के कई बुजुर्ग लोगों की जान चली गई थी. घाट पर भीड़ नजर आ रही थी. जब वे चिता को रखकर पीछे हटे तो भाई चिल्ला पड़ा. उसने कहा कि हटिए भइया, आपके पावों के नीचे लाश है. फिर देखा तो ऐसी ही लाशों का अंबार वहां लगा था. लोग जलाने की जगह शवों को दफना रहे थे. बात में प्रयागराज नगर निगम ने कई लाशों का अंतिम संस्कार भी करवाया. लेकिन रेत के तले दबे हर शव सिस्टम और सरकार पर ये सवाल खड़े कर रहे थे कि ऐसा क्या दोष था कि हमें अंतिम विदाई भी इतनी बेरुखी से मिली.
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ये साल बहुत बुरा था. ये वक्त अब न आए. इतनी त्रासदी शायद ही इंसान अब बर्दाश्त कर पाए. यह महामारी का साल था. आशा है कि ऐसा वक्त दोबारा फिर कभी नहीं दस्तक देगा.