रानिल विक्रमसिंघे बुधवार को औपचारिक तौर पर श्रीलंका के राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए हैं. विक्रमसिंघे इससे पहले देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं लेकिन इस बार उन्हें बहुत मुश्किल हालत में नेतृत्व करना है. उनके सामने अपार चुनौतियां हैं और देखना है कि वह कैसे इनसे बाहर निकलते हैं. हालांकि, श्रीलंका की राजनीति को करीब से जानने वाले जानते हैं कि विक्रमसिंघे राजनीति के कमबैक किंग हैं. वह एक नहीं बल्कि 2 बार राजनीतिक वनवास की हालत में जाने के बाद धमाकेदार तरीके से सत्ता में वापसी कर चुके हैं.
Slide Photos
Image
Caption
रानिल विक्रमसिंघे पिछले 45 साल से श्रीलंका की राजनीति में सक्रिय हैं. वह छात्र जीवन से ही राजनीति कर रहे हैं और 28 साल की उम्र में पहली बार संसद पहुंचे थे. यूएनपी पार्टी के सदस्य विक्रमसिंघे ने पहली बार प्रधानमंत्री का पद 1993 में संभाला था जब तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या की गई थी. दूसरी बार 2001 से 2004 के बीच वह प्रधानमंत्री रहे थे. 2015 से 2018 तक वह फिर प्रधानमंत्री बने थे लेकिन राष्ट्रपति सिरिसेना ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था. बाद में एक बार फिर कोर्ट से चुनाव जीतकर पीएम बने थे.
Image
Caption
रानिल विक्रमसिंघे की पार्टी का मजबूत गढ़ कोलंबो को माना जाता है लेकिन बावजूद इसके साल 2020 में हुए श्रीलंका चुनाव में उनकी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. इससे पहले 1977 के चुनाव में भी उनकी पार्टी का ऐसा ही हश्र हुआ था. विक्रमसिंघे को श्रीलंका की मीडिया में सिंहली भाषा में कमबैक किंग कहा जाता है. इसके पीछे वजह है कि जिस वक्त उनके राजनीतिक करियर को खत्म मान लिया जाता है वह धमाकेदार वापसी कर सबको चौंका देते हैं.
Image
Caption
रानिल विक्रमसिंघे के पहले कार्यकाल को काफी सराहा गया था और उन्हें आर्थिक सुधारों का क्रेडिट मिला था. विक्रसमिंघे को श्रीलंका की बिजनेस कम्युनिटी के बीच काफी पंसद किया जाता रहा है. आम तौर पर उन्हें श्रीलंका में आर्थिक सुधारों के लिए याद किया जाता है. विक्रमसिंघे फिर एक बार ऐसे वक्त में देश की कमान संभाल रहे हैं जब श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती है.
Image
Caption
रानिल विक्रमसिंघे के लिए माना जाता है कि वह श्रीलंका के मौजूदा बड़े नेताओं में सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय छवि रखते हैं. अलग-अलग देशों के साथ बेहतर कूटनीतिक और रणनीतिक संबंध बनाने में भी उन्हें माहिर माना जाता है. महिंदा राजपक्षे की चीन परस्त नीति से अलग वह भारत और अमेरिका जैसे देशों के साथ बेहतर संबंध बनाने को प्राथमिकता देते हैं.
Image
Caption
रानिल विक्रमसिंघे के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है. देश का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो चुका है और जरूरी चीजों की भारी किल्लत है. देश में महंगाई अपने चरम पर है. चीन के भारी कर्ज के बोझ तले श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की जिम्मेदारी अब विक्रमसिंघे को निभानी है. पूरी दुनिया की नजर उनकी नीतियों और कार्यप्रणाली पर रहेगी.
Image
Caption
रानिल विक्रमसिंघे को देश के अंदर भी कई मोर्चों पर संघर्ष करना है. राजपक्षे परिवार के राज में सिंहली राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के नाम पर तमिलों और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के उत्पीड़न की बातें भी की जाती रही हैं. ऐसे हालात में उन्हें देश को एकजुट रखने की चुनौती से भी पार पाना होगा. श्रीलंका के अलग-अलग हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं और विक्रमसिंघे को कानून व्यवस्था बनाए रखना होगाऔर जनता का भरोसा भी जीतना होगा.
Image
Caption
महिंदा राजपक्षे की विदेश नीति चीन परस्त थी और श्रीलंका ने इस दौर में पाकिस्तान से भी निकटता बढ़ाई थी. इसके उलट विक्रमसिंघे को चीन परस्त नहीं माना जाता है. श्रीलंका में उन्हें निवेश और आर्थिक सुधारों को अमली जामा पहनाने के लिए याद किया जाता है. विक्रमसिंघे का झुकाव अमेरिका और भारत जैसे देशों की ओर है. जर्जर हो चुकी देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए भी अमेरिका से अच्छे संबंध बनाना उनकी प्राथमिकता में होगा.