दिल्ली में प्रदूषण सिर्फ सर्दी की समस्या नहीं रह गई है. केन्द्रीय प्रदूषण नियामक बोर्ड (CPCB) द्वारा जारी आकड़ों के अनुसार, इस साल अप्रैल महीने में एक भी दिन दिल्ली वालों को साफ हवा नसीब नहीं हुई. आरती राय अपनी इस रिपोर्ट में बता रही हैं देश की राजधानी नई दिल्ली में रहने वाले लोग प्रदूषण की क्या कीमत चुका रहे हैं.
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कई सालों बाद ऐसा हुआ कि जब अप्रैल के महीने में एक भी दिन दिल्ली का AQI लेवल मध्यम या बेहतर स्तर पर नहीं आया.आकड़ों के मुताबिक, अप्रैल में दिल्ली का AQI लेवल औसतन 256 तक था जो 2016 के बाद से सबसे खराब स्थिति में हैं. दिल्ली में पिछले साल इसी महीने औसतन AQI 197 और 2020 में 110 दर्ज किया गया था . वही 2019 के अप्रैल में औसत AQI 211, 2018 में 222 , 2017 में 224 और 2016 में 269 तक दर्ज हुआ था. गौरतलब है कि अप्रैल 2020 में COVID लॉकडाउन के कारण दिल्ली वाले 14 दिनों के लिए "संतोषजनक" हवा में सांस ले पाए थे.
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केन्द्रीय प्रदूषण नियामक बोर्ड (CPCB) का कहना है कि इस साल AQI खराब होने की पीछे कई कारण हैं. इस बार अप्रैल महीने में गर्मी ने दशकों का रिकार्ड तोडा है. इसके अलावा पिछले कई हफ्तों से दिल्ली में बारिश नहीं हुई और राजधानी को धूल भरी आंधी का सामना करना पड़ा है. इसके अलावा गाड़ियों से निकलने वाला धुआं भी बड़ा कारण है.
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Greenpeace Southeast Asia analysis of IQAir की एक स्टडी के मुताबिक, दिल्ली में हर साल PM2.5 वायु प्रदूषण के कारण प्रति मिलियन आबादी पर 1800 मौतें हो रही है. साथ ही 'PM2.5' की वजह से 2020 में भारत की राष्ट्रीय राजधानी में लगभग 54,000 लोगों ने अपनी ज़िन्दगी गंवाई है. वही दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर WHO द्वारा निर्धारित 10 g/m3 सालाना औसत की सीमा से लगभग छह गुना ज़्यादा है,जो बेहद खतरनाक है. अगर इससे होने वाली आर्थिक नुकसान की बात करें तो देश की राजधानी को इससे 8.1 billion US$ (58,895 करोड़ रु) का नुकसान होता है, जो कि दिल्ली की GDP का 13 प्रतिशत है.
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WHO के अनुसार, भारत की राजधानी दिल्ली दुनिया के सभी बड़े शहरों के सबसे ज़्यादा प्रदूषित राजधानी है. यहां रेस्पिरेटरी बीमारियों और अस्थमा से मरने वालो की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है. दिल्ली में खराब गुणवत्ता वाली हवा की वजह से लगभग 2.2 मिलियन या 50% बच्चों के फेफड़ों काफी हद तक ख़राब है. वही WHO का ये कहना है कि भारत सरकार अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों को पूरा करने के लिए प्रदूषण को कम करती है तो दिल्ली के लोग अपनी जिन्दगी के औसतन 9.4 साल और जोड़ सकते हैं. साथ ही एक बार फिर दिल्ली की हवा साफ़ हो सकती है.
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IIT-Delhi ने हाल ही में एक शोध किया है जो कि PM2.5 के खतरे को ले कर देश को आगाह करता है. IIT-Delhi की इस स्टडी के मुताबिक, दिल्ली में ली जाने वाली हर सांस ज़हरीली है. दिल्ली की हवा में PM2.5 की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है, जिसके कारण कई लोगों को असमय मौत हो रही है. इस रिसर्च में PM2.5 बनाने वाले 15 प्रमुख कैमिकल कंपाउंड्स और उनके सोर्स को ट्रैक किया गया.
रिपोर्ट के अनुसार बायोमास, कोयला,वाहन का प्रदूषण,धूल आदि से निकलने वाले छोटे -छोटे कण जो हवा में घुल कर ज़हर फैला रहे है. PM 2.5 का 24 घंटे से कम अवधि का संपर्क भी खतरनाक साबित हो सकता है. दिल्ली में डीजल की गाड़ियां,धूल के कण,कंस्ट्रक्शन ,फसल जलने ने निकलने वाला धुएं के साथ दिल्ली की हवा में अमोनिया के साथ रिएक्ट करके अमोनियम नाइट्रेट बनाती है. जिसका महज दो दिनों का एक्सपोजर भी किसी बीमार व्यक्ति की जान जाने के खतरे को 3.89% तक बढ़ा देता है.
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PM 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर 2.5) यानी फाइन पार्टिकल्स हवा में वो मौजूद वो छोटे कण होते है जिनकी चौड़ाई ढाई माइक्रोन या उससे भी कम होती है. ये इतने छोटे हैं कि एक साधारण बाल से भी लगभग तीस गुना छोटे होते हैं. इसी वजह से हम इन्हे सामान्य तौर पर नहीं देख सकते, मगर सासों के जरिए ये हमारे शरीर में आसानी से अंदर जा कर गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते है. 10 माइक्रोमीटर से कम कण आपके फेफड़ों में गहराई तक पहुंच सकते हैं, और इनमें से कुछ आपके रक्तप्रवाह में भी शामिल हो सकते हैं. जिसकी वह से व्यक्ति को दिल के दौरे, स्ट्रोक और फेफड़ों के कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती है . रिपोर्ट के अनुसार 65 वर्ष से अधिक के बुजुर्गों,छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर ये ज़हरीली हवा सबसे ज़्यादा प्रभाव डाल रही है.