इस साल भारत 15 अगस्त को अपनी आजादी के 75 साल पूरे करने जा रहा है. इस उपलक्ष्य में देश में जोरो शोरों से आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा हैं. इतिहास में एक पुरानी कहावत है कोई भी लड़ाई तबतक नहीं जीती जा सकती जबतक उसके लिए आपके अंदर लड़ने का जुनून ना हो फिर चाहे वो आजादी की लड़ाई हो या किसी और चीज की. जिस तरह से भारतीय सेनाएं युद्ध के समय वॉर-क्राई (War Cry) के जरिए सैनिकों में जोश और जुनून भर देती हैं ठीक वैसे ही अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने और भारत को आजादी दिलाने के लिए नारों का इस्तेमाल हुआ. आज हम आप सभी के बीच उन वीर शहीदों, देशभक्त नेताओं और क्रांतिकारियों के नारों को लेकर आएं हैं जिन्होंने लोगों में जुनून भरा और आजादी पाने में अहम भूमिका भी अदा की. आइए आज इन नारों के जरिए हम उन महान लोगों को को याद करते हैं जिनके प्रभावशाली नारों ने देश के सभी वर्गों में आजादी की ऐसी आग लगा दी कि अंग्रेजों को देश छोड़कर भागना पड़ा.
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारत को आजादी दिलाने के उद्देशय से 21 अक्टूबर 1943 को 'आजाद हिंद सरकार' की स्थापना साथ ही 'आजाद हिंद फ़ौज' (azad hind fauj) का भी गठन किया. साल 1944 में पहली बार नेताजी ने बर्मा में भारतीयों के समक्ष दिए गए विश्व प्रसिद्द भाषण में इस नारे 'Give me blood and I shall give you freedom!” यानी कि "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा!" का इस्तेमाल किया था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस(netaji subhash chandra bose) के विचार बहुत क्रांतिकारी थे उनके विचारों ने आजादी की लड़ाई में भाग ले रहे करोड़ों लोगों के अंदर नया जोश भर दिया था.
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बिस्मिल अज़ीमाबादी (Bismil Azimabadi) आजादी के दीवाने वो शायर थे जिनकी नज़्म आज हर जुबां रहती है. उन्होंने साल 1921 में "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है" नाम से एक देशभक्ति नज़्म लिखी थी. इसी नज़्म को भारतीय क्रांतिकारी नेता राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil) ने एक मुकदमे के दौरान अदालत में अपने साथियों के साथ नारे के रूप में गाकर लोकप्रिय बनाया था.
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े हुए उर्दू शायर मौलाना हसरत मोहानी (Hasrat Mohani) ने साल 1921 में "इंकलाब जिंदाबाद" का नारा दिया था. जिसका मकसद था लोगों में चेतना पैदा करना जिससे वो सरकार के द्वारा हो रहे जुल्मों के खिलाफ लड़ सकें. इस नारे के मायने भगत सिंह (Bhagat Singh) और उनके साथियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे. इसी वजह से भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों ने दिल्ली की असेंबली में 8 अप्रेल 1929 को बम फोड़ते और पर्चें फेंकते हुए जोर-जोर से इस नारे को अपनी बुलंद आवाज से लोकप्रिय बनाया.
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आजादी की लड़ाई में "अंग्रेजो भारत छोड़ो" (Angrejo bharat chhodo) का नारा लिखने का श्रेय समाजवादी कांग्रेस नेता और बॉम्बे के तत्कालीन मेयर, यूसुफ मेहर अली (yusuf meherally) को जाता है. ऐसा माना जाता है कि उन्होंने 1942 में एक बैठक के दौरान महात्मा गांधी के समक्ष इस नारे को इस्तेमाल किए जाने का प्रस्ताव रखा था. भारत छोड़ो आंदोलन में इस नारे की काफी अहम भूमिक रही थी.
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वो कहते हैं ना जैसा नाम वैसा काम अपने नाम के आगे आजाद लगाने वाले महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) ने यह नारा दिया था. एक वक्त था जब चंद्रशेखर आजाद 'दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे' इस नारे को बोला करते थे तो हर युवा उनके पीछे -पीछे इस नारे को दोहराते थे. जिस शानदार तरीके से आजाद से मंच भाषण देते थे उनकी जोश भरी बातों से प्रेरित होकर हजारों युवा उनके साथ जान लुटाने को तैयार हो जाते थे.
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में यह नारा (Karo Ya Maro Nara ) आधिकारिक तौर पर 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने शुरू किया गया था. यह नारा गांधीजी के शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अस्तित्व में आया था. इस आंदोलन के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने "करो या मरो" का नारा देते हुए कहा कि था कि हम सब देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देंगे.
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"सारे जहां से अच्छा" या "तराना-ए-हिन्दी" असल में पहले कोई नारा नहीं बल्कि उर्दू भाषा में लिखी गई एक देशप्रेमी एक ग़ज़ल थी जोकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश हुकूमत (British government) के खिलाफ मील का पत्थर बनी. इतना ही नहीं आज भी देशभर में इसे देश-भक्ति के गीत के रूप में गाया जाता है. इसे मशहूर शायर मोहम्मद अल्लामा इकबाल (Muhammad Allama Iqbal) ने 1905 में लिखा और लाहौर के सरकारी कॉलेज में पढ़कर सुनाया था. उसके बाद देशभर में इस गाने को नारे और गजल के रूप में गाया जाने लगा.
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"सत्यमेव जयते" का नारा पंडित मदन मोहन मालवीय (Pandit Madan Mohan Malaviya) ने दिया था. यह नारा इतना लोकप्रिय हुआ कि आज यह भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य बन चुका है. यह वाक्य भारत के राष्ट्रीय प्रतीक (national emblem of india) के नीचे देवनागरी लिपि में भी लिखा हुआ है. पंडित जी ने इस नारे का इस्तेमाल साल 1918 में किया था. "सत्यमेव जयते" कई सौ साल पहले लिखे गए उपनिषद (मुण्डक-उपनिषद का सर्वज्ञात मंत्र 3.1.6) में से लिया गया एक मंत्र है. जिसका अर्थ होता है सत्य की हमेशा विजय होती है.
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"साइमन कमीशन वापस (simon go back) जाओ" का नारा कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य यूसुफ मेहर अली (Yusuf Meherally) ने दिया था. भारत में 3 फरवरी 1928 की रात में बंबई के मोल बंदरगाह पर पानी के जहाज से जिस समय साइमन कमीशन के सदस्य उतरे थे ठीक उसी समय यूसुफ मेहर अली ने "साइमन गो बैक" का नारे लगाना शुरू कर दिया था. इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठियां भी बरसाईं. इस लाठीचार्ज के विरोध में यूसुफ मेहर अली ने अदालत में शिकायत की और उन्हें जीत भी मिली. इसके बाद यूसुफ मेहर अली ने यूथ लीग के सदस्यों के साथ मिलकर पूरी बंबई में साइमन कमीशन के खिलाफ पोस्टर चिपकाना शुरू कर दिए थे.
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"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर रहूंगा" यह नारा बाल गंगाधर तिलक जी ने मूल रूप से मराठी भाषा में दिया था जोकि इस प्रकार से है:- "स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच". बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) को लोकमान्य तिलक भी कहा जाता है. लोकमान्य तिलक ब्रिटिश हुकूमत के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे. वे भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी भी रहे.
Short Title
10 क्रांतिकारी नारे जिन्होंने भारत को अंग्रेजों से आज़ादी दिलाने में निभाई थी अहम